टीवी दर्शकों के लिए क्या बोले तिवारी जी?

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तिवारी जी यानी रोहिताश्व गौड़ का टीवी दर्शकों के लिए एक नया बयान सामने आया है! रोहिताश्व गौड़ ने यूं तो तमाम शोज और फिल्मों में काम किया है पर उन्हें असली पहचान ‘भाबीजी घर पर हैं’ ने दिलाई। शो में उनका मनमोहन तिवारी का किरदार इतना पॉपुलर है कि लोग अब उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं। हालांकि, वह अपनी कॉमिक छवि को तोड़कर कुछ डिफरेंट करना चाह रहे हैं। यही वजह है कि वह ‘मिर्जापुर’ के कालीन भैया यानी पंकज त्रिपाठी की तरह किरदार तलाश रहे हैं। उनका मानना है कि ओटीटी की वजह से टीवी की ऑडियंस कम हो गई है।  को-स्टार्स के बदलने से बहुत मुश्किल होती है। इससे सीरियल की लाइफ पर असर पड़ता है। काफी हद तक दर्शक भी दूरी बना लेते हैं। रिप्लेस होकर आए कलाकार के लिए भी चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि ऑडियंस उसे पहले वाले ऐक्टर की तरह देखना चाहती है। हम पर भी दबाव होता है क्योंकि हमारी बहुत सी चीजें पुराने ऐक्टर के साथ फिक्स हो चुकी होती हैं। ऐसे में दोबारा केमिस्ट्री बैठाना आसान नहीं होता है। सौम्या टंडन के साथ मेरी सबसे अच्छी बॉन्डिंग रही। मैं उसे पूरी जिंदगी नहीं भूल सकता। वह केमिस्ट्री अब किसी और के साथ नहीं हो सकती। कहानी पहले से पता लग जाती है तो राइटर के साथ बैठकर उसे और खास करके लुक इमेजिन कर लेते हैं। कॉस्ट्यूम और मेकअप आर्टिस्ट के साथ डिस्कस करके एक फोटोशूट कर लेते हैं। उसके बाद आवाज पर काम करते हैं, तब जाकर कहीं एक किरदार निखरकर आता है।

पंकज त्रिपाठी जिस तरह ओटीटी में काम कर रहे हैं, मैं वैसा कुछ करना चाहता हूं। पंकज त्रिपाठी और नवाजुद्दीन सिद्दीकी की तरह किरदार निभाकर जो टाइप्ड इमेज हो गई है, उसे ब्रेक करना है। यामी गौतम के साथ मैंने ‘प्यार ना होगा कम’ में नेगेटिव रोल किया था। मैंने ‘जय हनुमान’ में गोस्वामी तुलसीदास का किरदार निभाया था, जो पूरी तरह से अलग था। मैं आगे भी रियलिस्टक किरदारों पर जोर दूंगा। फिल्म इंडस्ट्री आपको टाइपकास्ट कर देती है। वह आपको उसी नजरिए से देखने लगती है। एक ऐक्टर के लिए यह बहुत मुश्किल होता है कि कैसे अपनी इस छवि को ब्रेक किया जाए। जैसे मुझे जो वेब सीरीज के लिए कॉल आते हैं, ज्यादातर कॉमिक रोल ही होते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि अब कुछ डिफरेंट करना चाहता हूं।

ओटीटी पर अभी सेंसरशिप नहीं है तो बहुत सी चीजें खुले में हैं। उसमें गालियां भी चल रही हैं और कुछ ऐसे सींस भी, जो हम टीवी में नहीं दिखा सकते। टीवी की अपनी मर्यादा है। ओटीटी के खुलेपन का असर ये हो रहा है कि अचानक टीवी की ऑडियंस कम हो गई है। ओटीटी की तुलना में टीवी की व्यूअरशिप कम हुई है। लोगों से जब पूछो कि शो देखते हैं तो कहते हैं, हां मोबाइल पर। दर्शक कहीं-ना-कहीं वो चीजें देखना चाहते हैं, जो दिखाया जा रहा है। जिस वेब सीरीज में जरूरत है, वहां तो ठीक है लेकिन कुछ लोग टीआरपी के लिए गालियां और गंदे सीन डाल रहे हैं। ये गलत है, इससे बुरा असर पड़ रहा है।

हमारा यूथ आपको आउट डेटेड बताएगा। अब वो प्रेमचंद नहीं पढ़ना चाहते। अब ये गलत है या सही, ये नहीं पता लेकिन मेरे हिसाब से सेंसरशिप होनी चाहिए, नहीं तो बहुत सी चीजें हाथ से निकल जाएंगी। जो बीत गया सो बीत गया, आने वाले साल से यही उम्मीद है कि टीवी के हालात सुधरें। इसका ग्रो करना जरूरी है क्योंकि आज भी हम इसके माध्यम से घर-घर पहुंच रहे हैं। खासकर छोटे-छोटे शहरों में। मेरी जन्मभूमि कालका में अभी ओटीटी से ज्यादा टीवी देखा जा रहा है।

इंडस्ट्री एक बिजनेस है। यहां जो चेहरा चर्चित होगा, उसी को कैश किया जाएगा। मैं 1997 में मुंबई गया और संघर्ष शुरू कर दिया था। 2001 में मैंने वीर सावरकर का किरदार निभाकर बॉलिवुड में डेब्यू किया था। उसके बाद से ये खूबसूरत सफर जारी है। लोगों की नजरों में 2010 में ‘लापतागंज’ में आया था, जिसमें मैंने मुकुंदी लाल की भूमिका निभाई थी। असल जिंदगी में भी मेरा स्वभाव मुकुंदी लाल जैसा है। समाज के हित के लिए आवाज उठाने वाला, लोगों की मदद करने वाला और उनकी परेशानियों को हल करने वाला।

लखनऊ इससे पहले मैं अपने इसी शो के प्रमोशन के लिए को-स्टार्स के साथ आया था। उस दौरान हमने स्टेज पर एक स्किट भी किया था। शहर की बहुत सारी चीजें हमने अपने शो में भी अडॉप्ट की हैं। बहुत से ऐसे एपिसोड्स किए हैं, जिसमें लखनवी तहजीब को महत्व दिया गया है। खासकर हम नवाब भी बन चुके हैं, हमारे वे एपिसोड्स काफी पॉपुलर हुए थे। हमारे शो की भाषा में लखनवी जुबां का पता लगता है।