Friday, November 22, 2024
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हफ्ते में 70 घंटे काम करने के बारे में क्या कहते हैं बड़े-बड़े लोग?

आज हम आपको बताएंगे कि हफ्ते में 70 घंटे काम करने के बारे में बड़े-बड़े लोग क्या सुझाव देते हैं! ​सप्ताह में 70 घंटे का काम! देश की मशहूर टेक कंपनी इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की यह सलाह खूब चर्चा बटोर रही है। उद्योग जगत हो या बुद्धिजीवी वर्ग या फिर आम जनता, इस मूर्ति के इस सुझाव पर पूरी तरह भिन्न राय सामने आ रही है। एक वर्ग है जो इन्फोसिस संस्थापक की भावना का खुलकर समर्थन कर रहा है तो दूसरा वर्ग उतना ही जोरदार विरोध। इस बीच एक वर्ग ऐसा भी है जो दोनों विरोधी विचारों के बीच का रास्ता बता रहा है। मूर्ति के समर्थक राष्ट्र निर्माण का हवाला दे रहे हैं तो विरोधी इसमें शोषण का आधार देख रहे हैं। ऐसे में तीसरा पक्ष सुझाव दे रहा है कि राष्ट्र निर्माण का जुनून रखते हुए कामगारों के व्यक्तिगत हितों का भी ख्याल रखना जरूरी है। इसलिए काम और कामगारों के व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन साधते हुए ही कोई बात होनी चाहिए। सज्जन जिंदल ने मूर्ति के सुझाव का भरपूर समर्थन किया। उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, ‘मैं नारायण मूर्ति के बयान का तहे दिल से समर्थन करता हूं। इसका संबंध लोगों को निचोड़ने से नहीं है बल्कि यह समर्पण के बारे में है। हमें भारत को एक ऐसी आर्थिक महाशक्ति बनाना है जिस पर हम सभी गर्व कर सकें। 5 दिवसीय सप्ताह की संस्कृति वह नहीं है जिसकी हमारे आकार के तेजी से विकसित हो रहे राष्ट्र को आवश्यकता है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी प्रतिदिन 14-16 घंटे से अधिक काम करते हैं। मेरे पिता सप्ताह में 7 दिन 12-14 घंटे काम करते थे। मैं हर रोज 10-12 घंटे काम करता हूं। हमें अपने काम में और राष्ट्र निर्माण में जुनूनी बनना होगा। हमारी परिस्थितियां अद्वितीय हैं और हमारे सामने आनेवाली चुनौतियां विकसित देशों से भिन्न हैं। वे सप्ताह में 4 या 5 दिन काम कर रहे हैं क्योंकि उनकी पिछली पीढ़ियां लंबे समय तक और अधिक उत्पादक घंटे बिताती थीं। हम विदेशों में कम काम को अपना मानक नहीं बनने दे सकते! भारत की सबसे बड़ी ताकत हमारे युवा हैं और महाशक्ति बनने की हमारी यात्रा में इस पीढ़ी को आराम से ज्यादा काम को प्राथमिकता देनी होगी। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, आराम के अवसर मिलेंगे और 2047 के युवाओं को हमारे बलिदानों और परिश्रम का लाभ मिलेगा।’

इन्फोसिस के पूर्व सीएफओ मोहन दास पई ने कहा, ‘अभिजीत, कृपया वैल्यु जजमेंट करना बंद कर दें। आप न इन्फोसिस को जानते हैं और न ये कि वो करते क्या हैं। कुछ सबसे बड़ी, सबसे परिष्कृत वैश्विक कंपनियां अपना सबसे जटिल काम भारत से से कराती हैं। जब आप 20 अरब डॉलर रेवेन्यू बनाने जैसा कुछ कर लें तभी अपना मुंह खोलें। तब तक कृपया चुप रहें।’ दरअसल, पई डिफेंस एनालिस्ट अभिजीत अय्यर मित्रा को जवाब दे रहे थे। मूर्ति ने जिस पॉडकास्ट में 70 घंटे प्रति सप्ताह काम की बात कही, उसे पई ही होस्ट कर रहे थे।

बहरहाल, अभिजीत ने लिखा था, ‘बिल्कुल ठेठ भारतीय मिठाई दुकानदार वाला रवैया। यही कारण है कि इन्फोसिस एक गौरवशाली आईटी कुली प्रदाता कंपनी है जिसका मूल्यवान उत्पाद के लिहाज से कोई खास योगदान नहीं है।’ हालांकि, पई के जवाब में @muglikar_ ने लिखा, ‘पई साब, इस तर्क के साथ कि अभिजीत को रक्षा मामलों के बारे में नहीं बोलना चाहिए क्योंकि कोई कहेगा कि कृपया हथियार उठाएं और पहले लड़ें। आशा है कि आप 2015-16 में एमसीए वेबसाइट के विनाशकारी मुद्दे को नहीं भूले होंगे, जब इन्फोसिस की अक्षमता के कारण पूरा कॉर्पोरेट इंडिया का नाम खराब हुआ था।’

कैब एग्रीगेटर ओला के सीईओ भाविश अग्रवाल कहते हैं, ‘मैं मूर्ति के विचारों से पूर्णतः सहमत हूं। यह हमारा समय कम काम करने और अपना मनोरंजन करने का नहीं है। बल्कि यह हमारा क्षण है कि हम सब कुछ करें और एक ही पीढ़ी में वो सब तैयार कर दें जो अन्य देशों ने कई पीढ़ियों में किया है।’

वहीं, मेकमाईट्रिप के चीफ एचआर अधिकारी युवराज श्रीवास्तव भी इस बात से सहमत हैं, जिनका मानना ​​है कि इन्फोसिस के संस्थापक ने 70 घंटे की बात प्रतीकात्मक अर्थों में कही है, इसे शब्दशः लेने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘युवाओं के देश के रूप में हमें अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है और यह सुनिश्चित करना है कि उत्पादकता प्रभावित न हो। आज बाजार की मांग, व्यापार, देश, जिस विकास दर की हम उम्मीद कर रहे हैं, उसका मतलब है कि देश को आगे ले जाने के लिए हर किसी को बहुत कुछ करने की जरूरत है।’

बिजनस ट्रांसफॉर्मेशन लैब तलाववी के सीईओ राजेश पद्मनाभन कहते हैं, अलग-अलग अपेक्षाओं के साथ मिलकर काम करने वाले वर्क फोर्स की पांच पीढ़ियों को पिछले जापानी या जर्मन मॉडल पर वापस जाने के बजाय आपसी सहमति से नया क्रांतिकारी मॉडल खोजने की जरूरत है। टेक्नॉलजी के उपयोग से स्मार्ट वर्किंग, पारदर्शिता के उपायों के साथ कामकाज में लचीलापन जैसे पहलुओं को शामिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि घंटों में बांधने के खिलाफ विद्रोह हो रहा है।

प्रॉपटेक यूनिकॉर्न नोब्रोकर के सीईओ अमित अग्रवाल कहते हैं, ‘एक खास वक्त के बाद व्यक्ति बौद्धिक रूप से सतर्क नहीं रह सकता है। अगर आउटपुट पर असर पड़ता है तो क्या फायदा? मैं आम तौर पर अपने कर्मचारियों से, चाहे वे किसी भी उम्र के हों, लंबे समय तक काम करने के लिए नहीं कहूंगा, जब तक कि यह ग्राहक की आपातकालीन स्थिति या अग्निशमन की स्थिति न हो। मैं उन्हें उत्पादक ढंग से काम करने, आउटपुट पर ध्यान केंद्रित करने और वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। आउटपुट महत्वपूर्ण है, घंटे नहीं।’

कर्नल रोहित देव कहते हैं, ‘महान आत्मा। वर्तमान में किन-किन कंपनियों में 70 घंटे की कार्य संस्कृति है और उनका पारिश्रमिक क्या है? सर्वोत्तम कार्य नैतिकता को बनाए रखते हुए ऐसी प्रेरक कार्य स्थितियां प्राप्त करने के लिए आपका क्या प्रस्ताव है? हमें ऐसी प्रगति के लिए अच्छी योजना बनानी चाहिए और आप जैसे अग्रणी लोगों को इसका नेतृत्व करना चाहिए। शुभकामनाएं एवं हार्दिक शुभकामनाएं। जय हिन्द।’ @WeTheSahuJi लिखते हैं, ‘भारत के भविष्य के बारे में चिंतित: व्यक्तिगत कल्याण पर कॉर्पोरेट महाशक्ति की स्थिति को प्राथमिकता क्यों दें? इन्फोसिस और टीसीएस जैसी स्थापित कंपनियां युवा कर्मचारियों को बहुत कम वेतन देकर लंबे वक्त तक काम की मांग करती हैं। यह राष्ट्र-निर्माण नहीं है; यह लाभ-केंद्रित शोषण है।’ अभिनव कुमार @singhabhinav कहते हैं, ‘अधिक काम करने की संस्कृति तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकती है। सच्चे विकास के लिए एक स्वस्थ, प्रेरित कार्यबल आवश्यक है। आशा है मूर्ति को इसका अहसास होगा।

इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने हाल ही में 3one4 कैपिटल के पॉडकास्ट पर कहा कि भारतीय युवाओं को प्रॉडक्टविटी बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर देश की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए सप्ताह में 70 घंटे तक काम करने की जरूरत है। 77 वर्षीय मूर्ति ने राष्ट्र-निर्माण, प्रौद्योगिकी और भारत के वर्क कल्चर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की। उन्होंने कहा, ‘भारत की वर्क प्रॉडक्टिविटी दुनिया में सबसे कम में से एक है। जब तक हम अपनी कार्य उत्पादकता में सुधार नहीं करते, जब तक हम सरकार में किसी स्तर पर भ्रष्टाचार को कम नहीं करते, जैसा कि हम पढ़ते आ रहे हैं, मुझे इसकी सच्चाई नहीं पता, जब तक हम इन निर्णयों को लेने में अपनी नौकरशाही की देरी को कम नहीं करते, हम नहीं कर पाएंगे। उन देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो जिन्होंने जबरदस्त प्रगति की है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘हमें अनुशासित रहने और अपनी कार्य उत्पादकता में सुधार करने की आवश्यकता है। मुझे लगता है कि जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, सरकार क्या कर सकती है? हर सरकार उतनी ही अच्छी होती है जितनी लोगों की संस्कृति। और हमारी संस्कृति को अत्यधिक दृढ़निश्चयी, अत्यंत अनुशासित और अत्यंत परिश्रमी लोगों की संस्कृति में बदलना होगा। यह परिवर्तन युवाओं से आना चाहिए क्योंकि वे इस समय हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं, और वे ही हैं जो हमारे देश का निर्माण कर सकते हैं।’ मूर्ति ने 2020 में भी कोविड महामारी में बेहाल हुई अर्थव्यवस्था में दोबारा जान फूंकने के लिए अगले दो से तीन वर्षों तक सप्ताह में 60 घंटे काम करने का आग्रह किया था।

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