आज हम आपको बताएंगे कि भारत के जलवायु की रिपोर्ट आखिर क्या कहती है! मूडीज ने कुछ समय पहले विकेन्द्रीकृत डिजिटल पहचान पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। भारतीय न्यूज मीडिया ने इसे आधार पर हमले के रूप में पेश किया। आधार भारत ही नहीं, दुनिया का यूनीक डिजिटल आइडेंटिटी सिस्टम है जो अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है। भारत के एक अरब से अधिक नागरिकों की पहचान का डेटा समेटे हुए आधार सिस्टम अब सर्वव्यापी हो चुका है जो सरकारी प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण डीबीटी जैसी कई सार्वजनिक और निजी सेवाओं तक आसानी से पहुंचने के लिहाज से बहुत उपयोगी है। आधार के उपयोग से ऑनलाइन पेमेंट, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवाओं आदि तक पहुंच बहुत आसान हो गई है। भारत सरकार ने भी आधार पर मूडीज की रिपोर्ट को यह कहकर खारिज कर दी कि यह ‘प्राइमरी या सेकेंडरी, किसी तरह का आंकड़ा या किसी रिसर्च का हवाला नहीं देती है’ और इसलिए यह ‘आधारहीन’ है। हमने मूडीज की रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ा और महसूस किया कि रिपोर्ट में कई देशों में आइडेंटिटी सिस्टम को शामिल की पड़ताल करते हुए उनकी चुनौतियों पर चर्चा की गई है। उदाहरण के लिए, इसमें उल्लेख किया गया है कि जर्मन सरकार का डिजिटल आईडी सिस्टम का पर्याप्त उपयोग नहीं हो रहा है क्योंकि 10% से भी कम जनता इसका उपयोग कर रही है।
आठ पन्नों की रिपोर्ट में आधार पर टिप्पणी मात्र तीन छोटे पैराग्राफ में हैं। इसमें आधार को ‘दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल आईडी प्रोग्राम’ बताकर सही बात की गई है। इस रिपोर्ट में आधार पर आलोचनात्मक टिप्पणी यह है, ‘हालांकि, इस सिस्टम को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें ऑथराइजेशन इस्टेब्लिश करने का बोझ और बायोमेट्रिक विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं शामिल हैं। अक्सर ग्लिच भी आते रहते हैं और विशेष रूप से गर्म, आर्द्र जलवायु में शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों के लिए बायोमेट्रिक टेक्नॉलजी की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है।’
हम सरकार के इस दावे से सहमत हैं कि मूडीज ने कोई प्राथमिक या द्वितीयक आंकड़ा या शोध का हवाला नहीं देकर खराब काम किया है। लेकिन हम इस पर प्रासंगिक रिसर्च रिपोर्ट पेश कर रहे हैं। इंडिय स्कूल ऑफ बिजनस के हमारे सहयोगियों ने एक शोध पत्र, ‘गरीबों के लिए फिनटेक: क्या तकनीक की नाकामयाबी से वित्तीय समायोजन में बाधा आती है? में 2014 से 2018 के आधार एनेबल्ड पेमेंट सिस्टम AEPS से ट्रांजेक्शन के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि औसतन 17% लेनदेन बायोमेट्रिक मिसमैच के कारण विफल हुए, जिसमें कुल ट्रांजेक्शन फेल्योर रेट 34% था।
इसके अलावा, हमें फील्ड विजिट के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को सक्षम बनाने में जुटे कई फ्रंटलाइन वर्कर्स ने बताया कि फिंगरप्रिंट आधारित बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन कभी-कभी ग्राहकों की उंगलियों की त्वचा बहुत चिकनी न होने के कारण विफल हो जाता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश शारीरिक श्रम करते हैं। उन्होंने आगे बताया कि इसका विकल्प आईरिस बेस्ड स्कैन है, लेकिन ऐसे स्कैनर हर जगह तैनात नहीं किए जाते हैं क्योंकि वे महंगे होते हैं। दूसरी तरफ, देश के कुछ हिस्सों में महिलाएं सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों से इसके लिए घूंघट उठाने को तैयार नहीं होती हैं।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम ने आधार आधारित भुगतान प्रणाली पर हाल में जो आंकड़े दिए उनसे पता चलता है कि अगस्त 2023 में प्रत्येक 100 ट्रांजैक्शन में 23 असफल रहे। इसके लिए बायोमेट्रिक मिसमैच के अलावा अन्य कारण भी शामिल हैं। चूंकि एईपीएस बैंक खातों से डीबीटी के लिए नकदी निकासी का एक प्रमुख तरीका है, इसलिए ये बायोमेट्रिक संबंधी चुनौतियां निश्चित रूप से चिंताजनक हैं क्योंकि ग्राहकों को वहां जाने को मजबूर होना पड़ सकता है जहां आईरिस स्कैनर उपलब्ध हो। इन बायोमेट्रिक संबंधी विफलताओं से निपटने के लिए इनोवेशन की आवश्यकता है। वास्तव में, आधार को मैनेज करने वाली संस्था यूआईडीएआई ने हाल ही में चेहरा आधारित ऑथेंटिकेशन का विकल्प पेश किया है। अच्छी बात यह है कि इसके लिए अलग से महंगे उपकरणों की जरूरत नहीं पड़ती है। उदाहरण के लिए, डिजीयात्रा काफी प्रभावी ढंग से फेस बेस्ड ऑथेंटिकेशन का उपयोग करता है।
आधार जैसा सेंट्रलाइज्ड आईडी सिस्टम का सामना सुरक्षा और गोपनीयता की कमजोरियों से भी होता है। दरअसल, आईडी, सर्टिफिकेट और ट्रांसक्रिप्ट जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज जमा करने वाला डिजिलॉकर या क्लाउड स्टोरेज सर्विस जैसा कोई भी सिस्टम जहां संवेदनशील जानकारी सेंट्रलाइज्ड सर्वर पर जमा किया जाता है, उस पर बाहरी हैकिंग का खतरा बना रहता है। साइबर सिक्यॉरिटी सिस्टम के विशेषज्ञ हमें लगातार चेतावनी देते हैं कि सिर्फ इसलिए कि संवेदनशील जानकारी संग्रहीत करने वाले सर्वर को हैक नहीं किया गया है, इसकी कोई गारंटी नहीं है कि इसे भविष्य में हैक नहीं किया जाएगा। इसके विपरीत, डेटा जितना अधिक संवेदनशील होगा, उतनी ही अधिक संभावना है कि अंततः उसे हैक कर लिया जाएगा।
आधार के शुरू होने के कई सालों बाद विकसित किए गए डिजियात्रा में, आईरिस/उंगलियों के निशान या चेहरे के अलावा कोई अन्य बायोमेट्रिक या कोई अन्य डेटा कहीं भी सिस्टम में एकत्र या संग्रहीत नहीं किया जाता है। ब्लॉकचेन टेक्नॉलजी का उपयोग करके वेरिफिकेशन और ऑथेंटिकेशन किया जाता है जो संवेदनशील डेटा की गोपनीयता को बरकरार रखता है।
डिजिटल क्रांति स्थायी है। हालांकि, हमें किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए सुधार और इनोवेशन जारी रखना चाहिए। न तो इतनी आत्मसंतुष्टता कि ‘अभी तक आधार में कोई सेंध नहीं हुई है’ और न ही इतनी आलोचना कि ‘आधार कई वंचित लोगों को धोखा दे चुका है’ उचित है। डिजिटल इंडिया की कहानी को एक ग्लास के आधा खाली या आधा भरा हुआ के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में भारत के लिए ग्लास बहुत बड़ा है।