Friday, November 22, 2024
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क्या चाहते हैं ललन सिंह? जानिए बिहार की राजनीति!

नीतीश कुमार के साथी रहे ललन सिंह को कौन नहीं जानता! कभी नीतीश कुमार के पेट में दांत का पता लगाने वाले ललन सिंह आजकल पूरे रौ में दिखते हैं। बाकी उनके छांव में। ये जेडीयू का ताजा हाल है। द्रौपदी मुर्मू के नामांकन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ललन बाबू पुकारते हुए जब उन्हें अगली कतार में बुलाया तभी से मुझे लग रहा था कि जेडीयू में हैसियत बढ़ गई है। हालांकि तब तक आरसीपी सिंह आउट नहीं हुए थे। दो दिन पहले पटना के प्रेस कॉन्फ्रेंस में ललन सिंह ने भाजपा को गिना-गिना कर कोसा और पीठ में छुरा घोपने वाला बताया। कई फैक्ट्स बड़ी चालाकी से बताए और छिपाए। फिर दिल्ली पहुंचे। लालू प्रसाद से आशीर्वाद लेने। आज लालू यादव जिस हद तक पहुंच चुके हैं उसके लिए एक हद तक जिम्मेदार ललन सिंह ने मिलन के बाद कहा अब भाजपा को छोड़ेंगे नहीं।

सच्चाई है कि ललन सिंह ने किसी को नहीं छोड़ा। लालू यादव को भी नहीं और नीतीश कुमार को भी नहीं। फिर तेजस्वी यादव-नीतीश कुमार के मिलन से वो इतने उतावले क्यों हो रहे हैं? 24 साल की दोस्ती का हवाला देकर ललन सिंह ने 2009 में नीतीश के बारे में कहा था कि लालू जी तो पेट में दांत कहते रहते हैं, दांत है कहां हमको मालूम है, सर्जरी कर निकाल देंगे। फिर इतने ही साल की दोस्ती के बाद आरसीपी बाहर हुए हैं। नीतीश कुमार के बारे में कोई नहीं बता सकता कि वो क्या सोचते हैं और क्या करेंगे। ये बात जेपी के समय साथ रहे सुशील मोदी ने दोहराई है। जॉर्ज के साथ क्या हुआ। शरद यादव क्या से क्या हो गए। ये सब जानते हैं। आरसीपी उसकी कतार का अगला हिस्सा हैं। अगला कौन होगा कहना मुश्किल है। वैसे नंबर ज्यादा सक्रिय रहने वाले का ही आता रहा है।

नीतीश किसी भी बड़े काम की शुरुआत करते हैं। फिर किसी को आगे करते हैं। अभी ललन सिंह आगे हैं। तब भी थे जब चारा घोटाले का मामला उछला था। लालू के खिलाफ चारा घोटाले में पीआईएल दायर करने वालों में ललन सिंह थे। नीतीश कुमार नहीं। चुन-चुन कर सबूत भी लाए। इस काम में लगे रविशंकर प्रसाद, सुशील मोदी, सरयू राय और शिवानंद तिवारी सब इस सच्चाई की तस्दीक कर सकते हैं। वहां से लेकर मॉल-मिट्टी घोटाले तक में ललन सिंह और नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार की गंगा देखी। अब उनमें सामाजिक न्याय का रहनुमा नजर आएगा। खैर, राजनीति में शुचिता पर बहस करना ही बेमानी है, बशर्ते सभी तरफ से हो।

नीतीश के सलाहकार

पटना वाली पीसी में तो ललन सिंह ने अपनों को भी नहीं छोड़ा। शुरुआत करते ही पूछा – उपेंद्र कुशवाहा जी, मैंने आपका नाम ठीक से लिया है न। कमाल है। राष्ट्रीय अध्यक्ष को पार्टी के संसदीय बोर्ड के चेयरमैन का नाम नहीं पता। इसके बाद गठबंधन धर्म की परिभाषा बताई। उस परिभाषा के मुताबिक सारी गलती भाजपा की है। नीतीश कुमार तो हमेशा गठबंधन धर्म का पालन करते रहे। इसके लिए भाजपा-जदयू दोस्ती के इतिहास को ऐसे मरोड़ा कि सत्य शर्म से आत्महत्या कर ले। बताया कि 2005 में हम 88 सीट लाए लेकिन भाजपा को साथ रखा। सिर्फ ये नहीं बताया कि तब भाजपा 102 सीटों पर लड़ी थी और जदयू 139 सीटों पर। फिर 2010 का जिक्र किया जब जेडीयू को 115 सीटें आईं। तब जेडीयू सरकार बना सकती थी लेकिन गठबंध धर्म का पालन किया। ललन सिंह ने सिर्फ इतना छिपाया कि भाजपा 102 सीटों पर लड़कर 91 जीती थी। 139 सीटों पर जेडीयू। 2020 में तो मामला 50-50 पर पहुंचा था। जब नीतीश 43 पर आ गए। इस बीच जब-जब जेडीयू अकेले लड़ी क्या हस्र हुआ, ये ललन सिंह ने नहीं बताया। न ही इस सामान्य ज्ञान को सार्वजनिक किया कि लालू के जंगलराज से लड़ने नीतीश निकले थे और भाजपा हमेशा उनके साथ खड़ी रही।

उन्होंने इसका खुलासा जरूर कर दिया कि 2017 में जेडीयू के किन नेताओं ने नीतीश कुमार को महागठबंधन सरकार से अलग होने की सलाह दी थी। आरसीपी के बारे में उन्होंने कहा कि एक तो भाजपा के एजेंट बन गए। दूसरा, बगल में बैठे हैं संजय झा। ये हैं पार्टी में। तीसरे जो राज्यसभा के उपसभापति हैं, हरिवंश जी। इकलौते थे जो कल मीटिंग में नहीं आए थे, लेकिन मैंने फोन किया तो बोले हैं कि वो नीतीश जी के साथ हैं। एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को ओछी राजनीति का शिकार बनाना कहां से उचित है। चौथे वो जो राष्ट्रपति के सलाहकार बन गए। इशारा वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह की तरफ था। मानो ललन सिंह 2017 में लालू का साथ छोड़ने पर बहुत निराश थे और अब भाजपा से गठबंधन तोड़ने में वही सबसे आगे। वो ये भी बताना भूल गए कि राबड़ी देवी ने उनके लिए किन अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। इस तरह सार्वजनिक मंच से अपनी पार्टी के नेताओं और पार्टी के बाहर के लोगों पर लांछन लगाना कितना सही है, वो जानें पर इससे एक संदेश साफ जाता है। जेडीयू के भीतर कोई सुरक्षित नहीं है।

ये भी जानना जरूरी है कि आरसीपी जो काम पार्टी के लिए करते थे, वही काम ललन सिंह भी किया करते थे। पार्टी फंड में गड़बड़ी के आरोप में ही 2009 में उन्हें जेडीयू से बाहर जाना पड़ा था। और जब 2013 में कमबैक हुआ, मंत्री बनाए गए तो भूमिहार जाति से ही आने वाले जेडीयू नेता नीरज कुमार ने सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था – जो नेता का नहीं होगा, पार्टी का नहीं होगा, जिसकी नीति और नीयत में हमेशा खोट रहता है वो कार्यकर्ताओं के अपमान का प्रतीक होता है। वही ललन सिंह आज पार्टी के भीतर एजेंट की तलाश कर रहे हैं और उन सलाहकारों को टारगेट कर रहे हैं जिन्होंने नीतीश को भाजपा के साथ दोबारा हाथ मिलाने के लिए कहा था। ऐसा करते समय वो याद दिलाना भूल जाते हैं कि जेडीयू में एक ही नेता हैं नीतीश कुमार और सभी फैसले वही लेते हैं। सलाह से फर्क नहीं पड़ता। और सलाहकार बदलते रहते हैं।

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