क्या कहता है जमानत का कानून?

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आज हम आपको बताएंगे की जमानत का कानून क्या कहता है! जेल का नाम सुनते ही आम आदमी की हवाइयां उड़ जाती हैं। जेलों का जरूरत से ज्‍यादा भरा होना भी एक बड़ी वजह है। इसमें एक पहलू बड़ा दिलचस्‍प है। ये जेलें अपराधियों से कम, अंडरट्रायल से ज्‍यादा भरी हुई हैं। दूसरे शब्‍दों में कहें तो जिन लोगों का दोष सिद्ध नहीं हुआ है, उन्‍होंने जेल में भीड़ बढ़ा रखी है। देश की जेलों में बंद करीब 77 फीसदी भीड़ इन्‍हीं की है। एनसीआरबी के अनुसार, दिसंबर 2021 तक 4,27,165 लोग अंडरट्रायल हैं। यानी इन पर किसी न किसी तरह का मुकदमा चल रहा है। इनमें से 11,490 ऐसे हैं जो पांच साल से ज्‍यादा समय से जेल में हैं। लेकिन, ट्रायल तक शुरू नहीं हुआ है। यह क्रिमिनल जस्टिस डिलीवरी सिस्‍टम की दुखद तस्‍वीर पेश करता है। अंडरट्रायल जूडिशियल कस्‍टडी में तीन प्रमुख कारणों से रहते हैं। पहला, कोर्टों का बेल देने से मना करना क्‍योंकि याची नॉन-बेलेबल ऑफेंस में आरोपी होता है। दूसरा, गरीब कैदी जमानत नहीं दे सकते। तीसरा, अशिक्षित कैदी सेक्‍शन 426ए के तहत अपने अधिकारों को नहीं जानते हैं। अंडरट्रायल के एजुकेशन प्रोफाइल का विश्‍लेषण करने से पता चलता है कि अनपढ़ों की जेल में संख्‍या पढ़े-लिखों की तुलना में ज्‍यादा है। जो 15 दिनों से ज्‍यादा ऐसे अपराध में कस्‍टडी में हैं जिनमें अधिकतम सजा 7 साल से कम है, सीनियर सिटीजन जो 3 महीने से ज्‍यादा समय से ऐसे अपराध में कस्‍टडी में हैं जिनमें अधिकतम सजा 10 साल से कम है। जो आईपीसी सेक्‍शन 304 या 307 के तहत 6 महीने से ज्‍यादा समय से जेल में हैं। रिश्‍तेदार जो आईपीसी सेक्‍शन 304 बी (दहेज) के तहत एक साल से ज्‍यादा समय से जेल में हैं।

जो ऐसे क्रिमिनल कोड सेक्‍शन के तहत जेल में हैं जो अंडरट्रायल के अधिकारों से डील करती हैं जिनमें हिरासत अधिकतम अवधि से आधे से ज्‍यादा है। ये जेलें अपराधियों से कम, अंडरट्रायल से ज्‍यादा भरी हुई हैं। दूसरे शब्‍दों में कहें तो जिन लोगों का दोष सिद्ध नहीं हुआ है, उन्‍होंने जेल में भीड़ बढ़ा रखी है। देश की जेलों में बंद करीब 77 फीसदी भीड़ इन्‍हीं की है। एनसीआरबी के अनुसार, दिसंबर 2021 तक 4,27,165 लोग अंडरट्रायल हैं। यानी इन पर किसी न किसी तरह का मुकदमा चल रहा है। इनमें से 11,490 ऐसे हैं जो पांच साल से ज्‍यादा समय से जेल में हैं। लेकिन, ट्रायल तक शुरू नहीं हुआ है। यह क्रिमिनल जस्टिस डिलीवरी सिस्‍टम की दुखद तस्‍वीर पेश करता है। अंडरट्रायल जूडिशियल कस्‍टडी में तीन प्रमुख कारणों से रहते हैं। पहला, कोर्टों का बेल देने से मना करना क्‍योंकि याची नॉन-बेलेबल ऑफेंस में आरोपी होता है।कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने हत्‍या के आरोपियों तक को बेल दी है। आसिम कुमार हरनाथ भट्टाचार्य बनाम एनआईए (2021) और इंद्रानी मुखर्जिया बनाम सीबीआई (2022) इसका उदाहरण हैं।

बेल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख नरम रहा है। हालांकि, हाईकोर्टों का रवैया शीर्ष न्‍यायालय के उ‍लट देखा गया है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के एक ऑर्डर पर रोक लगा दी थी। इसमें ट्रायल कोर्ट जज को केस में बेल देने के आधार को जस्टिफाई करने को कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के आदेश जिस्ट्रिक्‍ट जूडिशियरी की स्वतंत्रता को कम करते हैं। लेकिन, सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्टों और उनके कामकाज के तरीके पर कितना कंट्रोल है? संविधान का अनुच्‍छेद कहता है कि सुप्रीम कोर्ट का दिया आदेश सभी कोर्टों के लिए बाध्‍यकारी है।

हालांकि, हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट की सबऑर्डिनेट नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के पास सुपरविजन की शक्ति नहीं है।ये जेलें अपराधियों से कम, अंडरट्रायल से ज्‍यादा भरी हुई हैं। दूसरे शब्‍दों में कहें तो जिन लोगों का दोष सिद्ध नहीं हुआ है, उन्‍होंने जेल में भीड़ बढ़ा रखी है। देश की जेलों में बंद करीब 77 फीसदी भीड़ इन्‍हीं की है। एनसीआरबी के अनुसार, दिसंबर 2021 तक 4,27,165 लोग अंडरट्रायल हैं। यानी इन पर किसी न किसी तरह का मुकदमा चल रहा है। इनमें से 11,490 ऐसे हैं जो पांच साल से ज्‍यादा समय से जेल में हैं। लेकिन, ट्रायल तक शुरू नहीं हुआ है। यह क्रिमिनल जस्टिस डिलीवरी सिस्‍टम की दुखद तस्‍वीर पेश करता है। अंडरट्रायल जूडिशियल कस्‍टडी में तीन प्रमुख कारणों से रहते हैं। पहला, कोर्टों का बेल देने से मना करना क्‍योंकि याची नॉन-बेलेबल ऑफेंस में आरोपी होता है। सिर्फ हाईकोर्ट के पास वह शक्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने खुद यह बात तिरुपति बालाजी डेवलपर्स बनाम स्‍टेट ऑफ बिहार, 2002 केस में कही थी। बेल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को उसी रोशनी में देखना चाहिए। बेल में सुधार के लिए जरूरी है कि हाईकोर्टें ट्रायल कोर्टों को सुपरवाइज करें।