समलैंगिकता पर क्या कहता है कानून?

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समलैंगिकता पर कानून के अलग ही नियम बताए गए हैं! शादी यानी किसे के भी जीवन का सबसे अहम पड़ाव और कानून किसी को भी अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनने की आजादी देता है। कोई भी लड़का या लड़की अपने लाइफ पार्टनर को चुनने के लिए आजाद हैं। वो अपनी पसंद से शादी कर सकते हैं, लेकिन इन दिनों शादी को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है और ये है सेम सेक्स मैरिज या फिर समलैंगिक विवाह। यानी जब एक ही जैंडर के लोग आपस में शादी करना चाहे। लड़का, लड़के से और लड़की, लड़की से। हमारे देश में अब तक न तो कानून इसकी इजाजत देता है और न ही भारतीय समाज इसे स्वीकार करता है। समलैंगिक शादी को लेकर हम आगे इस पर बात करेंगे, लेकिन उसके पहले जान लीजिए कि समलैंगिकता को लेकर कानून और हमारा समाज क्या सोचता है। भारत में चंद साल पहले तक समलैंगिकता गैरकानूनी थी। यानी सेम जेंडर सेक्स को गलत माना जाता था। ऐसे रिश्ते अवैध होते थे। ये आज से नहीं बल्कि ब्रिटिश काल से ही लागू था। साल 1860-62 में आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध घोषित किया गया था और देश आजाद होने के बाद भी ये बदस्तूर जारी रहा। सालों बाद 2001 में पहली बार एक गैरसरकारी संस्था नाज फाउंडेशन ने धारा 377 के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इसके बाद हाइकोर्ट ने समलैंगिकता मान्यता दी। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और एक बार फिर समलैंगिकता अवैध घोषित हुई।

देश में समलैंगिकता को लीगल करने के लिए गे और लेस्बियन प्रदर्शन करते रहे। एलजीबीटी लगातार मांग करता रहा कि ऐसे रिश्तों को मंजूरी दी जाए। आखिरकार साल 2018 में धारा 377 को मान्यता मिल गई और इसे अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया। समलैंगिकों को आम नागरिकों की तरह ही अधिकार मिल गए। पूरे देश में ऐसे लोगों ने खुशी का इजहार किया। हालांकि इसके बावजूद समाज ऐसे रिश्तों को कभी भी खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पाया, लेकिन इसे कानूनी रूप मिलने की वजह से ऐसे लोगों के लिए चीजें आसान हो गई।

जब समलैंगिकों को समानता का अधिकार मिल गया तो एक नई मांग उठने लगी और ये मांग है समलैंगिक शादी की। यानी अगर सेम सेक्स के दो लोग शादी करते हैं तो उसे कानूनी रूप से मान्यता मिले। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई चल रही है। सरकार इस मांग के खिलाफ खड़ी है। समाज का एक बड़ा वर्ग इसे गलत बता रहा है, तो समलैंगिक इसे उनके अधिकारों के तहत बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में बदलाव की मांग की गई है। स्पेशल मैरिज एक्ट साल 1954 में बनाया गया था और इसके तहत हर नागरिक को ये संवैधानिक अधिकार दिया गया है कि वो जिस धर्म या जाति में चाहे शादी कर सकते है। इसके लिए लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल रखी गई है।

समलैंगिक विवाह के पक्ष में रखी गई याचिका में इस एक्ट में बदलवा करने की मांग की गई है और कहां गया है कि इस एक्ट में शामिल शब्द लड़का और लड़की की जगह व्यक्ति शब्द का इस्तेमाल किया जाए। साथ ही उम्र को लेकर भी इस याचिका में बदलाव की मांग की गई है। याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर किसी लड़के की लड़के से शादी होती है तो उम्र 21 साल रखी जाए जबकि अगर लड़की की लड़की से शादी होती है तो उम्र 18 साल तय की जाए।

समलैंगिक शादी को कई देशों में पहले ही मान्यता दी जा चुकी है। दुनिया के 34 देशों में समलैंगिक शादियां पहले ही मान्य हैं, जिनमें कई बड़े देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, साउथ अफ्रीका शामिल हैं। इस मामले में कोर्ट में दोनों पक्ष अपनी-अपनी तरह से दलील दे रहे हैं। कोर्ट का फैसला इस शादी पर क्या होगा ये अभी नहीं कहा जा सकता,सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई चल रही है। सरकार इस मांग के खिलाफ खड़ी है। समाज का एक बड़ा वर्ग इसे गलत बता रहा है, तो समलैंगिक इसे उनके अधिकारों के तहत बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में बदलाव की मांग की गई है। स्पेशल मैरिज एक्ट साल 1954 में बनाया गया था और इसके तहत हर नागरिक को ये संवैधानिक अधिकार दिया गया है कि वो जिस धर्म या जाति में चाहे शादी कर सकते है। इसके लिए लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल रखी गई है। लेकिन समाज में ज्यादातर लोग इस तरह की शादी के खिलाफ हैं। इतने सालों बाद भी समलैंगिकता को ही समाज ने खुले दिल स्वीकार नहीं किया है और ऐसे में शादी जैसे पवित्र रिश्ते पर ये नई चोट भारतीय समाज के लिए पचाना आसान नजर नहीं आ रहा।