क्या कहती है बिहार की राजनीति?

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हाल ही में हुए उपचुनावों में बिहार की राजनीति में बहुत कुछ कह दिया! बिहार में सियासत के शतरंज की बिसात बिछी हुई है। बिहार में शह मात का खेल जारी है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बीजेपी रथ को रोकने के लिए एक हो गए हैं। इधर बीजेपी महागठबंधन में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। नये दोस्तों की तलाश कर रही है ताकि 2024 से पहले बिहार में एनडीए का कुनबा बढ़े। दूसरी ओर बिहार में हुए उपचुनाव के रिजल्ट आने के बाद दोनों पक्षों की ओर से तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन इस चुनाव परिणाम ने बीजेपी को बड़ी नसीहत भी दे दी। साथ ही ये भी बता दिया कि बिहार बीजेपी में अब भी लीडरशिप की कमी है। अगर ऐसा नहीं होता तो बिहार बीजेपी उपचुनाव में अपने ‘Chirag प्लान’ को देर से प्रयोग नहीं करती तो लड़ाई बराबरी पर खत्म नहीं होती। हालांकि बीजेपी का प्लान Chirag का सफल होना नीतीश-तेजस्वी के लिए खतरे की घंटी भी है।

बीजेपी अपने ‘Chirag प्लान’ यानी चिराग पासवान को अगर मैदान में नहीं उतारती तो क्या होता? जानकार कहते हैं कि चिराग पासवान अगर बीजेपी के साथ नहीं आते तो लड़ाई बराबरी पर खत्म नहीं होती। इशारा साफ है कि अगर बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व समय रहते चिराग पासवान को बिहार के चुनावी मैदान में नहीं उतारती तो ‘सियासी खेला’ हो जाता। बीजेपी की नैया डूबनी तय थी!

बिहार बीजेपी के नेता भले ही कुछ भी कहें, लेकिन आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। बीजेपी गोपालगंज जैसी परंपरागत सीट अगर 2 हाजर वोट से जीतती है तो इसका श्रेय चिराग पासवान को ही जाता है। जानकार बताते हैं कि शुरुआती दौर में पासवान जाति के वोटर आरजेडी उम्मीदवार के पक्ष में थे, लेकिन आखिरी दौर में बीजेपी ने चिराग पासवान को चुनावी मैदान में उतारकर खेल ही बिगाड़ दिया। गोपालगंज में चिराग पासवान ने रोड शो कर पूरा माहौल ही बदल दिया। जिसका परिणाम सबके सामने है।उपचुनाव परिणाम आने के बाद महागठबंधन नेताओं से अधिक खुशी बीजेपी नेताओं में है। होगी भी क्यों नहीं, लगभग 27 साल बाद मोकामा विधानसभा सीट से बीजेपी चुनाव लड़ रही थी। एक तरह से कह सकते हैं बीजेपी नीतीश कुमार को उनके घर में चुनौती दे रही थी। मोकामा कभी बाढ़ संसदीय क्षेत्र में आता था। नीतीश कुमार लंबे समय तक बाढ़ से सासंद रह चुके हैं। ऐसे में मोकामा जैसी सीट पर उसे लगभग 63 हजार वोट आये। मोकामा में पहली दफे चुनाव लड़ रही बीजेपी 63 हजार वोट लाकर अपनी जीत बता रही है और महागठबंधन सरकार की हार। इसमें भी चिराग पासवान का अहम रोल रहा है।

दरअसल, मोकामा में जब चुनाव प्रचार आखिरी दौर में था। आखिरी दिन था, तो बीजेपी ने चिराग पासवान को चुनावी मैदान में उतारा और रोड शो किया। जानकार बताते हैं कि चिराग के रोड शो में उमड़ी भीड़ ने मतदान से दो दिन पहले ही माहौल बदल दिया। दरअसल, चिराग के लिए ना तो मोकामा नया था, ना ही वहां की जनता। 2020 विधानसभा चुनाव में चिराग ने अपने दम पर उम्मीदवार खड़ किया था। उसक वक्त एलजेपी उम्मीदवार को 13 हजार से अधिक वोट मिले थे। कहा जाता है कि चिराग पासवान के रोड शो के बाद पूरा माहौल ही बदल गया। पासवान वोटरों के साथ-साथ अन्य तबके के वोटरों को भी लगने लगा कि बीजेपी रेस में है।उपचुनाव परिणाम आने के बाद महागठबंधन नेताओं से अधिक खुशी बीजेपी नेताओं में है। होगी भी क्यों नहीं, लगभग 27 साल बाद मोकामा विधानसभा सीट से बीजेपी चुनाव लड़ रही थी। एक तरह से कह सकते हैं बीजेपी नीतीश कुमार को उनके घर में चुनौती दे रही थी। मोकामा कभी बाढ़ संसदीय क्षेत्र में आता था। नीतीश कुमार लंबे समय तक बाढ़ से सासंद रह चुके हैं। ऐसे में मोकामा जैसी सीट पर उसे लगभग 63 हजार वोट आये। मोकामा में पहली दफे चुनाव लड़ रही बीजेपी 63 हजार वोट लाकर अपनी जीत बता रही है और महागठबंधन सरकार की हार। इसमें भी चिराग पासवान का अहम रोल रहा है। जिसका परिणाम है कि बीजेपी 63 हजार वोट लाने में सफल रही।इस चुनाव ने एक संदेश तो दे ही दिया कि बीजेपी को बिहार में चिराग जैसा एक साथी चाहिए। बीजेपी को अगर बिहार फतह करना है तो दूसरी पार्टियों से गठबंधन करना ही होगा। बिहार में फिलहाल एक-दो ही ऐसी पार्टियां हैं जो बीजेपी से तालमेल कर सकती हैं। महागठबंधन में शामिल जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस, हम, माले, सीपीआई और सीपीएम शामिल हैं। ये तमाम पार्टियां बीजेपी के साथ नहीं जाएंगी!