आजादी के बाद 1947 में क्या-क्या हुआ? जानिए!

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15 अगस्त 1947 के दिन हमारा देश आजाद हुआ था! 14 अगस्त 1947 को ब्रिटेन की पराधीनता से भारत की मुक्ति की घोषणा हो गई। यूं तो 15 अगस्त को भारत की आजादी का ऐलान होना था, लेकिन ज्योतिषियों ने कांग्रेस के बड़े नेताओं से कहा कि 15 अगस्त का दिन, देश के इतिहास को इतना महत्वपूर्ण मोड़ देने के लिहाज से शुभ नहीं है। फिर तय हुआ कि 14 अगस्त की मध्य रात्रि यानी रात 12 बजे को ही भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी जाए। आपको याद ही होगा, जब घड़ी की सुई रात के 12 बजा रही थी, तभी पंडित जवाहर लाल नेहरू ‘जब पूरी दुनिया सो रही है तब…’ के ऐतिहासिक भाषण से न केवल भारतवासियों को बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को संबोधित करने लगे थे। उनके भाषण के साथ-साथ देशभर का हर गली, हर चौराहा, हर नुक्कड़ ‘भारत माता की जय, वंदे मातरम’ जैसे नारों से गूंज रहा था और लोग एक-दूसरे को लगे लगाकर बधाइयां भी दे रहे थे। वह वक्त वाकई दिल से दिल मिलने का था और ऐसे ही दो दिल और करीब आ गए दिल्ली के एक पार्क में।

करतार-आयशा ने भी पाई आजादी

पत्रकार करतार सिंह अपनी प्रेमिका आयशा अली के साथ स्वतंत्रता का जश्न मनाने कनॉट सर्कस के पास वाले गार्डन में पहुंचे थे। जैसे ही रात के 12 बजे, करतार ने आयशा को अपनी ओर खींचा और अपनी बांहों में जकड़ लिया। आजादी के जश्न का सुरूर करतार पर कुछ ऐसा चढ़ा कि उनके होंठ कब आयशा के होंठों तक पहुंच गए, पता ही नहीं चला। वह उनका पहला चुंबन था। दोनों कुछ ही दिन पहले मिले थे और एक-दूसरे को चाहने लगे थे। कहना ना होगा कि करतार दुग्गल सिंह सिख थे जबकि आयशा अली एक मुस्लिम।

दिल्ली के इंपीरियल होटल में उत्साही देशवासियों का हुजूम उमड़ पड़ा। आधी रात के बाद वहां एक युवक बार पर चढ़ गया और उसने सभी से राष्ट्रगान गाने की अपील की। वह युवक रवींद्र नाथ टैगोर का लिखा ‘जन गन मन अधिनायक जय हे’ की एक पंक्ति गाता और बाकी लोग एक स्वर से अगली पंक्ति गाते। उधर, पुरानी दिल्ली के मैडन होटल में एक खूबसूरत युवती सड़ी में सजी-धजी एक टेबल से दूसरे टेबल के बीच चिड़िया जैसी फुदक रही थी। वह आजादी के उत्सव में एक भी व्यक्ति को बिना तिलक नहीं देखना चाहती थी। इसलिए, वह अपने लिपस्टिक ट्यूब से ही हर किसी के ललाट पर तिलक का चिह्न बना रही थी।

उधर, कांग्रेस ने आदेश जारी किया कि 15 अगस्त को देशभर में एक भी बूचड़खाना नहीं खुलेगा। आजादी का उल्लास मनाने के लिए देशभर के सभी सिनेमाघरों को फ्री करने का फैसला हुआ। दिल्ली में सभी स्कूली बच्चों को इंडिपेंडेंस मेडल के साथ मिठाइयां दिए जाने का आदेश भी दिया गया। महज 24 घंटे पहले जो लोग एक-दूसरे का गला काटने पर उतारू थे, स्वतंत्रता की घोषणा के बाद मिल-जुलकर खुशियां बांटने लगे। क्या हिंदू, क्या सिख और क्या मुसलमान, सभी एक-दसूरे को गले लगाकर मिठाइयां खिला रहे थे।

उधर, दिल्ली स्थित वायसराय हाउस का नाम बदल कर गवर्नमेंट हाउस करके आम भारतीयों के लिए खोल दिया गया। इसके साथ ही, माउंटबेटन ने अपने सभी स्टाफ को चेतावनी दी कि किसी भी भारतीय से ऐसी बात नहीं की जाए जिससे ब्रिटिश हुकूमत की बू आए। उन्होंने नौकरों को वायसराय हाउस के एक-एक साइन बोर्ड को ध्यान से पढ़कर उन सभी शब्दों को मिटाने का आदेश दिया जो भारतीयों के लिए अपमानजनक हों।

ऐसा नहीं है कि आजादी के जश्न में सबकुछ ठीक ही हो रहा था। पुरानी दिल्ली की गलियों में झुंड के झुंड में मुसलमान, मुस्लिम लीग का दिया हुआ नया नारा जोर-जोर से दुहरा रहे थे- लड़कर लिया पाकिस्तान, हंसकर लेंगे हिंदुस्तान। 15 अगस्त, 1947 की सुबह ही पुरानी दिल्ली की एक मस्जिद से एक मुल्ले ने ऐलान किया- मुसलमानों ने दिल्ली पर सदियों हुकूमत की, हमारी फिर हुकूमत होगी। भीड़ से आवाज गूंज उठी- इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह। दूसरी तरफ, बेघर हुए हिंदू और सिख परिवार दिल्ली के रिफ्यूजी कैंपों में अपनी-अपनी जगह तलाश रहे थे।

बहरहाल, हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर पूरे देश में अलग तरह का उत्साह है। सरकारी आयोजनों की तो बात ही अलग है, भारत के हर घर पर तिरंगा लहरा रहा है। लेकिन क्या इतना काफी है? क्या आज का उत्सव एक रवायत तक सीमित रह जाएगा या फिर देश के सामने, देश के अंदर और बाहर से मुंह बाए खड़ी चुनौतियों के प्रति हम सतर्क और सावधान होंगे? क्या हम एक होकर भारत को वो ताकत, वह सम्मान दिलाने का संकल्प लेंगे जिसकी कल्पना 14 अगस्त की आधी रात को आजादी की घोषणा के वक्त और उससे भी पहले से भी, एक-एक भारतीय ने देखी थी? ध्यान रहे, आजादी के जश्न में हम इतना न खो जाएं कि ये सारे जरूरी सवाल हमारे मन-मस्तिष्क में आएं ही नहीं या आएं भी तो क्षणभर के लिए और फिर गुम हो जाएं।