आखिर क्या हुआ भविष्य के आईपीएल खिलाड़ी रॉबिन मिंज के साथ?

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भविष्य के आईपीएल खिलाड़ी रॉबिन मिंज के साथ वर्तमान में एक घटना घटित हो गई है! 25 जुलाई 2022, ये वो तारीख है, जब आजाद हिंदुस्तान को द्रौपदी मुर्मू के रूप में उसकी पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिली। देश जश्न में डूब गया। हमारा लोकतंत्र और मजबूत हुआ। कुछ इसी तरह का उत्साह खेलप्रेमियों में दो साल बाद तब देखने को मिला जब रॉबिन मिंज आईपीएल के लिए चुने गए पहले आदिवासी क्रिकेटर बने। चंद महीने पहले हुए ऑक्शन में गुजरात टाइंटस ने इस अनजान खिलाड़ी के लिए अपनी तिजोरी खोल दी थी। तीन करोड़ 60 लाख की भारी-भरकम बोली लगाई गई। देश तब रॉबिन से अपरिचित था। कुछ ही देर बाद उनकी पूरी कुंडली सामने थी। 21 साल के रॉबिन मिंज देश के उसी आदिवासी बहुल राज्य झारखंड से आते हैं, जो पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का घर है। अब चंद हफ्ते बाद आईपीएल की शुरुआत होने वाली है, लेकिन उससे ठीक पहले ‘झारखंड का क्रिस गेल’ एक रोड एक्सीडेंट में घायल हो गया, उनकी बाइक के परखच्चे उड़ गए। रॉबिन मिंज के पिता जेवियर फ्रांसिस भारतीय सेना से रिटायर होकर रांची एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी का जिम्मा संभालते हैं। अपने नौजवान बेटे के एक्सीडेंट पर बताते हुए वह कहते हैं कि रॉबिन की हालत खतरे से बाहर है। उसे मामूली चोट आई है। डॉक्टर्स अपनी निगरानी में रखे हुए हैं। भले ही रॉबिन मिंज या उनके परिवार के लिए ये हादसा घबराने की बात न हो, लेकिन संभलने की जरूर हो। क्रिकेट वर्ल्ड ने समय से पहले कई देसी-विदेशी क्रिकेटर्स को दौलत-शोहरत पाकर रास्ते से भटकते देखा है। आईपीएल के पैसे जान पर खेलने का परमिट तो कतई नहीं देते। हवा से बात करती सुपर बाइक से अनियंत्रित होकर गिरे रॉबिन मिंज को गंभीर चोट भी लग सकती थी। वह ऐसे जानलेवा शौक से खुद को दूर भी रख सकते हैं। ऋषभ पंत का सजीव उदाहरण भी सामने है।

आईपील ऑक्शन से कुछ हफ्ते पहले जब रॉबिन के पिता फ्रांसिस जेवियर मिंज रांची एयरपोर्ट पर एमएस धोनी से मिले, तो माही ने उनसे कहा था, ‘अगर कोई उसे नहीं लेता है, तो हम लेंगे।’ चेन्नई सुपरकिंग्स ने पहली बोली भी लगाई, लेकिन बाजी गुजरात टाइटंस मार ले गई। बेटे को मिली बेशुमार दौलत से गदगद माता-पिता फूट-फूटकर रोने लगे। उन रिश्तेदारों का भी बधाई देने फोन आने लगा, जिन्होंने लगभग संबंध खत्म ही कर दिए थे। सेना से छुट्टी पर घर लौटे फ्रांसिस ने जब अपने दो साल के बेटे रॉबिन को बेंत से कंकड़ मारने की कोशिश करते देखा तो उन्होंने फौरन लकड़ी के एक टुकड़े से एक बल्ला बनाया और बाजार से गेंद खरीदी। बस यही से रॉबिन के क्रिकेट करियर की शुरुआत हो गई थी।फ्रांसिस के रांची ट्रांसफर होने के कुछ समय बाद ही, उनका परिवार शहर से 15 किलोमीटर दूर नामकुम में रहने लगा। इधर रॉबिन के स्कूल में क्रिकेट एक्टिविटी काफी बढ़ गई थी। यह परिवाार के लिए आसान नहीं था। रॉबिन की दो बहनें थीं और फ्रांसिस के लिए अपने तीनों बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना बेहद मुश्किल हो रहे था। बेटे के लिए महंगे क्रिकेट उपकरण खरीदना तो दूर की बात थी। कभी-कभी उन्हें पैसे उधार लेने पड़ते थे। कई बार, परिवार की किसी जरूरी चीज को कुर्बान करना पड़ता था। रॉबिन के क्रिकेट के लिए फ्रांसिस जो कुछ भी कर सकते थे, किया।

रॉबिन की मां ने एक इंटरव्यू में बताया था कि, ‘जब हम पहली बार रॉबिन के लिए बल्ला और दूसरे सामान खरीदने स्पोर्ट्स स्टोर गए तो हमने सोचा कि 2000 रुपये में सब कुछ मिल जाएगा, लेकिन अकेले बल्ले की कीमत 5000 रुपये थी! हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। दुकानदार भी हमें शक की नजर से देख रहा था कि हम पैसे दे पाएंगे या नहीं। लेकिन हमने मैनेज किया, हमें कुछ पैसे उधार लेने पड़े, लेकिन हमने मैनेज किया। क्रिकेट वर्ल्ड ने समय से पहले कई देसी-विदेशी क्रिकेटर्स को दौलत-शोहरत पाकर रास्ते से भटकते देखा है। आईपीएल के पैसे जान पर खेलने का परमिट तो कतई नहीं देते। हवा से बात करती सुपर बाइक से अनियंत्रित होकर गिरे रॉबिन मिंज को गंभीर चोट भी लग सकती थी। वह ऐसे जानलेवा शौक से खुद को दूर भी रख सकते हैं। ऋषभ पंत का सजीव उदाहरण भी सामने है।रॉबिन ज्यादा बातचीत नहीं करते। एक बार स्कूल प्रिंसिपल ने उनके माता-पिता को बुलाकर कहा था कि ‘अपने बेटे को बात करना सिखाओ’, क्योंकि वह बहुत शांत था। बड़े होकर भी रॉबिन नहीं बदले, लेकिन उनका बल्ला बहुत जोर से बोलता है। स्थानीय क्रिकेट सर्कल में उन्हें ‘झारखंड का क्रिस गेल’ या ‘अगला धोनी’ कहते हैं।