एक समय ऐसा था जब भारत के अधिकतर विमान हाईजैक हो जाया करते थे! साल 1976, देश में इमरजेंसी की काली परछाई थी। विपक्ष की ओर से लोग सड़कों पर थे और हर ओर से खूब हंगामे हो रहे थे। जहां प्रेस की आजादी छीनी जा रही थी, आवाज उठाने वालों को जेल में डाला जा रहा था, वहीं उस दौरान एक घटना घटी थी। 10 सितंबर का दिन, इंडियन एयरलाइंस में टिकट बुक कराने वालों को शायद ही इल्म रहा होगा कि जिस फ्लाइट में वह सफर करने वाले हैं वह कुछ ही पलों बाद हाईजैक हो जाएगा। जी हां, इंडियन एयरलाइंस के इस विमान को 10 सितंबर 1976 को अगवा कर लिया गया था। इस खबर के बाद प्लेन में बैठे सभी यात्रियों और चालक दल के सदस्यों की जान सकते में आ गई थी। कहते हैं जाको राखे साइयां मार सके न कोय। इसका जिक्र करना इसलिए जरूरी है क्योंकि जिस सनसनीखेज तरीके से इसे हाइजैक किया गया था उसी फुर्ती से इसमें बैठे सभी लोगों को सुरक्षित बचा भी लिया गया था। इसे किसी अप्रिय घटना होने से बचाने में भारत का साथ दिया था पड़ोसी देश पाकिस्तान ने। नाम सुनकर आप जरूर चौंक गए होंगे लेकिन यह सच है। पाकिस्तान ने कैसे भारत को सहयोग दिया और लोगों की जान कैसे बची और इसके पीछे कौन था आइए जानते हैं।
साल 1976 के सितंबर माह की 10वीं तारीख को दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से इंडियन एयरलाइंस के बोइंग 737 विमान ने 66 यात्रियों के साथ मुंबई के लिए उड़ान भरी थी। उस समय मुंबई को बंबई कहा जाता था। इंडियन एयरलाइंस के इस विमान ने उड़ान भरी ही थी कि बीच में अचानक दो अपहरणकर्ताओं ने पायलट को पिस्तौल दिखाकर विमान को हाईजैक कर लिया। असल में दोनों अपहरणकर्ता विमान को लीबिया लेकर जाना चाहते थे। यहां पायलट की समझदारी काम आई। अपहरणकर्ता विमान को लीबिया तो नहीं लेकर जा पाए और प्लेन को लाहौर ले जाया गया। इस संकट के समय में पड़ोसी देश पाकिस्तान ने सहयोग का हाथ आगे बढ़ाया और अधिकारियों की सूझबूझ से प्लेन में बैठे लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया। इसमें यात्रियों के अलावा चालक दल के भी सदस्य थे। यह घटना दोनों देशों की सरकारों के अनूठे तालमेल की मिसाल है।
आप कहेंगे हम ये तो समझ गए कि पायलट ने अपनी सूझबूझ से विमान को लीबिया की जगह लाहौर को मोड़ दिया लेकिन पाकिस्तान ने ऐसे क्या किया कि सबकी जान बच गई। चलिए हम आपको बताते हैं। कोई आपके माथे पर बंदूक लगाकर धमकी दे तो आप क्या करेंगे। गन की डर से शायद आपका दिमाग काम करना बंद कर दे। तब तो और भी ज्यादा जब आपके ऊपर इतने यात्रियों को सुरक्षित पहुंचाने की जिम्मेदारी हो। लेकिन यहां पिस्तौल के डर से पायलट ने सूझबूझ नहीं खोई और प्लेन को लाहौर ले गया। भारत सरकार को जैसे ही विमान के लाहौर जाने का पता चला उसने पाकिस्तान की सरकार को फोन कर क्रू सदस्यों और यात्रियों की सुरक्षा के लिए मदद मांगी। उस समय पाकिस्तान ने भी अच्छी सूझबूझ का परिचय देते हुए मदद के लिए हां कर दी।
पाकिस्तान ने पूरे मसले को समझते हुए दोनों अपहरणकर्ताओं को अपनी चाल में फंसा लिया। पाकिस्तान के अधिकारियों नें हाईजैकर्स से कहा कि वह पहले उन यात्रियों को रिहा करें जिनकी तबीयत खराब है। हाईजैकर्स यह बात मान गए। इसके विमान के पायलट और पाकिस्तान के अधिकारियों ने अपहरणकर्ताओं की मंशा जानने का प्रयास किया। उनके सरगना ने कहा कि यह तो वह लीबिया जाकर ही बता पाएंगे। पड़ोसी देश ने विमान को जगह दी वहीं रात होने के चलते विमान को वहीं रुकने को कहा। उस रात अपहरणकर्ताओं के लिए हवाई जहाज में बढ़िया खाने का प्रबंध किया गया था। पाकिस्तानी अधिकारियों ने प्लेन में बैठे सभी लोगों को बचाने के लिए अगली चाल चली। उन्होंने प्लेन का अपहरण करने वाले दोनों लोगों के पानी में नशीली दवाईंयां मिला दीं जिसे पीने के बाद दोनों बेहोश हो गए। जबतक अपहरणकर्ताओं को होश आया उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और विमान को भारत वापस भेज दिया गया।
अपहरणकर्ताओं के बारे में बाद में बताया जाता है कि दोनों प्लेन में बैठे किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे।दोनों कश्मीर की आजादी की बात पूरी दुनिया में उठाना चाहते थे। पाकिस्तान की सरकार में पकड़ आने के बाद अपहरणकर्ताओं को एक साल के बाद साल 1977 में रिहा कर दिया गया था। जिस पाकिस्तान ने दोनों को गिरफ्तार किया उन्हें जब जेल से रिहा किया गया तो उसके इस फैसले का विरोध भारत ने काफी किया था।