मोहनदास करमचंद गांधी यानि महात्मा गांधी ने पदयात्रा की शुरुआत की थी! पॉलिटिशियन को पदयात्रा सूट करती है। कम से कम अब तक का इतिहास तो यही रहा है। आजादी से पहले हिन्दुस्तान में इस कॉन्सेप्ट को महात्मा गांधी ने लॉन्च किया था। दांडी मार्च में ये सफल रहा। इसके बाद भी कई मौकों पर इसकी सक्सेस रेशियो काफी बेहतरीन है। राहुल गांधी आजकल भारत जोड़ो पदयात्रा पर हैं। उनकी ये कोशिश धीरे-धीरे रंग ला रही है। वैसे, बिहार में प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा शुरू होनेवाली है।12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक यात्रा चली थी। महात्मा गांधी समेत 78 लोगों ने अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक पैदल यात्रा (390 किलोमीटर) की।
नमक हाथ में लेकर ब्रिटिश शासन की नमक विरोधी कानून को तोड़ने का आह्वान किया। एक साल तक आंदोलन चलता रहा। 1931 में गांधी-इरविन के बीच हुए समझौते से खत्म हुआ।16 अगस्त 1946 को जिन्ना के ‘डायरेक्ट एक्शन’ एलान के बाद नोआखली (अब बांग्लादेश) में दंगा भड़क गया। हिन्दुओं की हत्याएं होने लगी। 7 नवंबर 1946 को महात्मा गांधी नोआखाली पहुंचे। चार महीने तक रहकर सैकड़ों गांवों का दौरा किए।महात्मा गांधी के चार महीनों के प्रवास का असर ये रहा कि हिन्दुओं के जिन मंदिरों को तहस-नहस किया गया था, बाद में उन्हीं मंदिरों का पुनर्निर्माण मुसलमानों के सहयोग से किया गया।
आजाद भारत में रथ यात्रा का पहला प्रयोग एनटी रामाराव ने किया। तेलुगु सम्मान के लिए एनटीआर ने 29 मार्च 1982 को तेलुगु देशम पार्टी का गठन किया। 75 हजार किलोमीटर की यात्राएं कीं! एनटीआर का इतना क्रेज था कि लोग तीन-तीन दिन तक उनका इंतजार करते थे। विधानसभा चुनाव में एनटीआर को 294 में से 199 सीटें मिलीं। वे आंध्र के 10वें और पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से भारत यात्रा की शुरुआत चंद्रशेखर ने की थी। 25 जून 1984 को दिल्ली में राजघाट पर खत्म हुई। इस दौरान 4200 किलोमीटर की यात्रा पूरी की गई।
1984 में ही इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। कांग्रेस को बड़ी जीत मिली। मगर चंद्रशेखर ने देश की राजनीति में बड़े राजनेता के तौर पर खुद को स्थापित कर लिया। छह साल 10 नवंबर 1990 को देश के 8वें प्रधानमंत्री बने।सत्ता में रहते हुए राजीव गांधी ने 1985 में कांग्रेस संदेश यात्रा की घोषणा की। 400 से ज्यादा सीटें जीतकर भारत के प्रधानमंत्री बने थे। इसकी शुरुआत मुंबई, कश्मीर, कन्याकुमारी और उत्तर पूर्व के राज्यों से हुई। तीन महीने बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में खत्म हुई।
1989 की चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। फिर राजीव गांधी ने 1990 में भारत यात्रा की शुरुआत की लेकिन उन्हें इसमें सफलता नसीब नहीं हुई। हालांकि कांग्रेस के भीतर उन्हें कोई चुनौती देनेवाला नहीं बचा।
गुजरात के सोमनाथ से 25 सितंबर 1990 को राम रथयात्रा की शुरुआत हुई, 10 हजार किलोमीटर की दूरी तय करके 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या पहुंचनी थी। इससे पहले 23 अक्टूबर को बिहार में गिरफ्तार कर लिए गए।आडवाणी की राम रथयात्रा पूरी नहीं हो सकी। मगर बीजेपी को राजनीतिक लाभ मिला। लोकसभा चुनाव 1991 में 120 सीटों पर जीत दर्ज की। जो पिछले चुनाव से 35 ज्यादा थी। आज भारतीय जनता पार्टी देश पर लगातार दूसरी बार शासन कर रही है।
वैसे तो आडवाणी ने कई यात्राएं निकाली। मगर अपने करियर की आखिरी रथयात्रा की शुरुआत उन्होंने 11 अक्टूबर 2011 को की थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के गांव सिताब दियारा से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रवाना किया था। ‘जन चेतना रथ यात्रा’ का समापन 20 नवंबर 2011 को दिल्ली में हुआ।’राम रथ यात्रा’, ‘जनादेश यात्रा’, ‘स्वर्ण जयंती रथ यात्रा’, ‘भारत उदय यात्रा’, ‘भारत सुरक्षा यात्रा’ और ‘जनचेतना यात्रा’। ये सभी यात्राएं आडवाणी के नाम पर हैं। जिसकी बदौलत भारतीय जनता पार्टी देश पर राज कर रही है।
दिसंबर 1991 में कन्याकुमारी से ‘एकता यात्रा’ की शुरुआत की गई। कई राज्यों से होते हुए कश्मीर पहुंची। 26 जनवरी 1992 को गणतंत्र दिवस के मौके पर मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई में लालचौक पर झंडा फहराया गया।एकता यात्रा का पूरा मैनेजमेंट नरेंद्र मोदी देख रहे थे। बीबीसी से इंटरव्यू में जोशी ने कहा था कि ‘तिरंगा फहराने के बाद लोगों को भरोसा हुआ कि देश इस मामले में हमारे साथ है।’ जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हुए तो उन्होंने वो सारे कानून खत्म कर दिए जो कश्मीर को स्पेशली मिले हुए थे।
कार्यकाल समाप्त होने से नौ महीने पहले नरेंद्र मोदी ने विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर दी। सितंबर 2002 में गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत की।2002 के विधानसभा में चुनाव में नरेंद्र मोदी ने पूर्ण बहुमत के साथ वापसी की। दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पहले से ज्यादा स्थिति मजबूत हो गई।
एनटी रामाराव की तेलुगु देशम पार्टी ने पदयात्रा की बदौलत 1982 में सत्ता पर काबिज हुई थी। साल 2003 में वाईएसआर रेड्डी ने पूरे राज्य में 1600 किलोमीटर की पदयात्रा निकाली।आंध्र प्रदेश के शहरी इलाकों को चंद्रबाबू नायडू चमकाते रहे मगर ग्रामीण क्षेत्र और किसानों के बीच वाईएसआर काफी लोकप्रिय हो गए। कांग्रेस 2004 में विधानसभा चुनाव जीत गई। लोकसभा में भी भारी सफलता मिली और कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत दर्ज की।
वाईएसआर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी ने साल 2018 में प्रजा संकल्प यात्रा निकाली थी। 341 दिन की इस यात्रा में 3 हजार 648 किलोमीटर की दूरी तय की गई। उन्होंने 125 निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा किया।2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जगन को फायदा मिला। राज्य की 175 विधानसभा सीटों में से उनकी पार्टी ने 151 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके अलावा 22 लोकसभा सीटों में से सभी पर उन्हें विजय मिली।
साल 2017 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा निकाली थी। 192 दिन चली ये यात्रा 230 में से 110 विधानसभा सीटों से गुजरी। करीब 3,300 किलोमीटर की दूरी तय की गई।नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा का फायदा कांग्रेस को साल 2018 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में मिला। कांग्रेस को 230 में से 114 सीटों पर जीत मिली। जबकि बीजेपी को 56 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। बाद में पार्टी गुटबाजी की शिकार हो गई।
बिहार के सीएम नीतीश कुमार का कोई मुकाबला नहीं है। साल 2005 से 2021 तक 12 यात्राएं निकाल चुके हैं। इसमें 2005 में न्याय यात्रा, जनवरी 2009 में विकास यात्रा, जून 2009 में धन्यवाद यात्रा, दिसंबर 2009 में प्रवास यात्रा, अप्रैल 2010 में विश्वास यात्रा, नवबंर 2011 में सेवा यात्रा, लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मार्च 2014 में संकल्प यात्रा, नवंबर 2016 में निश्चय यात्रा, दिसंबर 2017 में समीक्षा यात्रा निकाली थी। इसके बाद यात्रा का क्रम नहीं रुका। नीतीश ने पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए दिसंबर 2019 में जल जीवन हरियाली यात्रा निकाली थी।परिणाम सबके सामने है, आज बिहार के सबसे भरोसेमंद चेहरा हैं। पिछले 17 साल से सत्ता में बरकरार हैं। बीजेपी और आरजेडी उनको समर्थन देने को मजबूर हैं।
7 सितंबर 2022 से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चल रही है। कन्याकुमारी से शुरू हुई यात्रा 150 दिन में कश्मीर तक जाएगी। इस दौरान 3 हजार 570 किलोमीटर की दूरी तय करेगी।इस यात्रा का चुनावी असर वैसे तो 2023 विधानसभा और 2024 लोकसभा में दिखेगा। मगर इतना तय है कि कांग्रेस में राहुल के खिलाफ मुंह खोलने वालों की बोलती बंद हो गई है।
2 अक्टूबर से प्रशांत किशोर पश्चिमी चंपारण से 3 हजार किलोमीटर की पदयात्रा पर निकलेंगे। 8 महीने से एक साल तक ये यात्रा चलती रहेगी। वैसे पिछले चार-पांच महीनों से ग्राउंड पर प्रशांत किशोर काम कर रहे हैं।बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर बिल्कुल फ्रेश चेहरा हैं। फिलहाल उन्होंने कोई राजनीतिक पार्टी का भी ऐलान नहीं किया है। मगर उनकी जन सुराज यात्रा ने राज्य की सियासत में खलबली मचा दी है।