सामान्य तौर पर सभी औषधियां एवं दवाइयां हमारे लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती है!तालीसपत्र का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा। वैसे तो तालीसपत्र का वर्णन कई प्राचीन आयुर्वेदीय-संहिताओं एवं निघण्टुओं में प्राप्त होता है। चरक-संहिता में क्षय-चिकित्सा के लिए तालीसादि चूर्ण तथा वटी के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। सुश्रुत-संहिता में भी तालीसपत्र का वर्णन है।
इसलिए लंबे समय से तालीसपत्र के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में इसका औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता रहा है। लेकिन इसका सेवन चिकित्सक से सलाह लिये बिना नहीं करना चाहिए, क्योंकि हद से ज्यादा सेवन करने पर चक्कर या उल्टी महसूस हो सकती है। तो चलिये तालीसपत्र के फायदे और नुकसान के बारे में सही और विस्तृत जानकारी लेते हैं।तालीसपत्र मीठा, गर्म तासीर का और तीखा होता है। तालीसपत्र न सिर्फ कफ और वात को कम करने में सहायता करता है बल्कि खाने में रुचि भी बढ़ाता है। यह खाँसी, हिक्का, सांस संबंधी समस्या, उल्टी, रक्त दोष के उपचार में मदद करने के अलावा वाजीकरण या सेक्स करने की इच्छा बढ़ाने में भी उपयोगी होता है।
यह 50-60 मी ऊँचा, सदाहरित और सख्त या मजबूत वृक्ष होता है। इसके तने की परिधि लगभग 4 मी तक होती है। इसका शीर्ष बेलनाकार, शाखाएँ- चपटी और फैली हुई होती हैं। छाल सफेद अथवा धूसर रंग का होता है। इसके पत्ते दो भागों में विभाजित, विभिन्न लम्बाई के लगभग 2.5 से 5 सेमी तक लम्बे, 8-10 वर्षों तक रहने वाले, चपटे, लगभग 2 मिमी व्यास या डाइमीटर के, नुकीले, गहरे हरे रंग के एवं चमकीले होते है। पत्तों के सूख जाने पर उनमें एक विशेष प्रकार की गन्ध आने लगता है।
इसके फल शंकु के आकार का यानि नुकीला, सीधा, अण्डाकार, नवीन अवस्था में नीला, पूराना हो जाने पर भूरे रंग का हो जाता हैं। बीज 1.25-2.5 सेमी लम्बे, चौड़े, अण्डाकार अथवा आयताकार, कोणीय होते हैं। तालीशपत्र नवम्बर से जून महीने में फलता-फूलता है।
अभी तक जिस तालीशपत्र के बारे में बताया गया उसके अलावा निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। यह प्रजाति तालीश की अपेक्षा अल्प गुणों वाली होती हैं।
निविड़ तालीशपत्री- यह तालीश की तरह दिखने वाला सदाहरित लम्बा वृक्ष होता है। इसके पत्ते चमकीले, हरे रंग के तथा आगे का भाग तालीशपत्र की तरह ही नुकीला होता है। यह पौधा तालीश पत्र से अल्प गुणों वाला होता है इसके पत्रों की मिलावट तालीश पत्र में की जाती है।
आजकल काम के दबाव के कारण या तनाव के कारण सिर दर्द होना जैसे लाजमी हो गया है। अगर सिर दर्द से परेशान हैं तो तालीश पत्र को पीसकर मस्तक पर लगाये इससे सिर दर्द कम होता है।मौसम बदला की नहीं सर्दी, खाँसी, बुखार होना शुरू हो जाता है। अगर आपको भी यही परेशानी है तो तालीशपत्र का सेवन इस प्रकार कर सकते हैं-
-3-5 ग्राम की मात्रा में तालीशादि चूर्ण का सेवन करने से भूख बढ़ती है तथा खाँसी, साँस फूलना, भूख न लगना, दिल की बीमारियाँ आदि रोगों में लाभ होता है।
-2-4 ग्राम तालीसादि चूर्ण का सेवन करने से खाँसी, साँस फूलना, बुखार, उल्टी, अतिसार या दस्त, पेट फूलना, ग्रहणी आदि रोगों में लाभ होता है। यह चूर्ण रुचिकारक तथा पाचक दोनों होता है।
–तालिसादि चूर्ण चूर्ण खांसी दूर करने में भी फायदेमंद होता है। 2-4 ग्राम तालीश पत्र चूर्ण में शहद या अदरक-का रस मिलाकर चटाने से खांसी ठीक होता है तथा अपच की समस्या आदि में लाभ मिलता है।
-2-4 ग्राम तालिसादि चूर्ण को गुनगुने जल के साथ सेवन कराने से कुक्कुर खांसी में लाभ होता है।
-तालीशपत्र को पीसकर छाती पर लेप करने से भी कफ की बीमारी दूर होती है।
तपेदिक या टीबी के लक्षणों से राहत दिलाने में तालीशपत्र चूर्ण बहुत ही फायदेमंद होता है।
– 2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में अडूसा पत्ते का रस 10 मिली मिलाकर खिलाने से ट्यूबरक्लोसिस में लाभ होता है।आजकल के असंतुलित जीवनशैली का उपहार, ये बीमारी भी है। पेट फूलने की बीमारी मतलब पेट में खाना अच्छी तरह से हजम नहीं होने पर गैस बनने लगता है। जिसके कारण मरीज डकार लेता है, पेट में बेचैनी होती है आदि। तालीशपत्र का सेवन पेट फूलने की बीमारी से राहत दिलाने में मदद करता है।
–तालीशपत्र चूर्ण में 2 ग्राम अजवायन चूर्ण मिलाकर खाने से आध्मान (अफारा) में लाभ होता है।
अगर अनियमित जीवनशैली होगी तो उसका असर सीधे पेट पर पड़ता है। अक्सर खाना अच्छी तरह से हजम न होने के कारण पेट में दर्द होने लगता है। इस कष्ट का भी निवारण तालीशपत्र के पास है।
-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में काला नमक मिलाकर खाने से पेटदर्द में लाभ होता है।
अक्सर ज्यादा मसालेदार खाना खाने से या असमय खाने से या किसी बीमारी के दुष्प्रभाव के कारण दस्त की समस्या होने लगती है।
-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में 2 ग्राम इन्द्रयव मिलाकर खाने से अतिसार या दस्त में लाभ होता है।
-2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण को शर्बत के साथ मिलाकर पीने से अतिसार या दस्त में लाभ होता है।
मिर्गी तंत्रिकातंत्रीय विकार होता है जिसके कारण मरीज को बार-बार दौरे आते हैं। मिर्गी के कष्ट को कम करने में तालीशपत्र का चूर्ण काम आता है।
-तालीश पत्र चूर्ण (2-4 ग्राम) में समान मात्रा में वच चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से अपस्मार या मिर्गी में लाभ होता है।
अक्सर बहुत दिनों तक बीमार रहने के कारण खाने की इच्छा मर जाती है। ऐसे परेशानी का इलाज भी तालीशपत्र के पास है।
-खाने में रुचि बढ़ाने के लिए 2 ग्राम कपूर, 20 ग्राम मिश्री तथा 4 ग्राम तालीसपत्र चूर्ण को मिलाकर 500 मिग्रा की गोलियां बना लें। इस गोली का सुबह शाम 1-1 गोली को मुँह में रखकर चूसने से अरुचि कम होने लगती है।