सामान्य तौर पर हमारे वैदिक विज्ञान में कई प्रकार की औषधियों का वर्णन किया गया है!क्या आप जानते हैं कि अगरु एक बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी है और आप अगरु के इस्तेमाल से बीमारियों को ठीक कर सकते हैं? प्राचीन काल से ही लोग भारत में अगरु का उपयोग कर रहे हैं। अगरु को अगर भी कहा जाता है। इसकी लकड़ी से राल यानी गोंद की तरह का कोमल व सुगन्धित पदार्थ निकलता है, जो अगरबत्ती बनाने व सुगंधित उबटन की तरह शरीर पर मलने के काम आता है। इसके अलावा अगरु का उपयोग बीमारियों के इलाज के लिए भी किया जाता है।अगरु कड़वा और तीखा, पचने में हल्का और चिकना होता है। यह कफ तथा वात को शान्त करने वाला और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। अगरु सुगंधित, लेप लगाने पर शीतल, हृदय के लिए लाभकारी, भोजन के प्रति रुचि बढ़ाने वाला और मोटापा कम करता है। यह त्वचा के रंग को निखारता है। आंख तथा कान के रोगों, कुष्ठ, हिचकी, उल्टी, श्वास फूलना, गुप्त रोगों, पीलिया, खुजली, फुन्सियाँ तथा विष-विकारों की चिकित्सा में इसका औषधीय प्रयोग किया जाता है। अगुरु के सार का तेल भी समान गुणों वाला ही होता तथा पुराने घावों को ठीक करता है। पेट के कीड़े और कुष्ठ रोग को ठीक करता है।
अगरु क्या है?
अगरु वृक्ष विशाल तथा सदा हरा-भरा रहने वाला होता है। कृष्णागुरु को पानी में डालने पर (लकड़ी भारी होने के कारण) डूब जाता है। अगरु की अनेक जातियां होती हैं।
(1) कृष्णागुरु
(2) काष्ठागुरु
(3) दाहागुरु
(4) मंगल्यागुरु
सभी प्रजातियों में कृष्णागुरु सबसे अच्छा माना जाता है। रोगों की चिकित्सा में इसका प्रयोग किया जाता है।
अगुरु की लकड़ी अंदर से एस्कोमाईसीटस मोल्ड, फेओएक्रीमोनीयम पेरासाईटीका नामक डीमेशीएशस कवक यानी सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होती है। इन कवकों से बचाव के लिए अगरु के वृक्ष से एक विशेष प्रकार का द्रव्य निकलता है। अगरु की त्वग्स्थूलता रोग से असंक्रमित लकड़ी हल्के रंग की और संक्रमित लकड़ी इस द्रव्य के कारण गहरे-भूरे अथवा काले रंग की होती है।
अगरु के फायदे
1-3 ग्राम अगुरु के चूर्ण में थोड़ा-सा सोंठ मिलाकर मधु के साथ सेवन करने से कफ के कारण होने वाली खाँसी ठीक होती है। अगुरु के चूर्ण तथा कपूर को पीसकर वक्ष स्थल पर लेप करने से श्वसनतंत्र-नलिका की सूजन ठीक होती है।
पान के पत्ते में दो बूँद अगुरु के तेल को डालकर सेवन करने से सांस फूलने के रोग में शीघ्र लाभ होता है। यह गाढ़े बलगम को पतला करने में भी मदद करता है, जिससे फेफड़ों को साफ़ होने में मदद मिलती है।
सेंधा नमक के साथ अगरु चूर्ण का सेवन करने से पेट और लीवर सक्रिय होते हैं और भूख बढ़ती है। यह लीवर को ताकत देता है और चयापचय प्रक्रिया को बढ़ाता करता है। अगुरु की लकड़ी को लगभग 10 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बना लें। इसे 20-40 मिली मात्रा में नियमित सेवन करने से पेट के कैंसर में लाभ होता है।अगरु चूर्ण को घी में पकाकर शीतल कर लें। इसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
पाठा का पञ्चाङ्ग, अगुरु की लकड़ी तथा हल्दी को समान भाग में लेकर इनका काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से डायबिटीज में लाभ होता है!
प्रसव के पहले और बाद में अगुरु की लकड़ी का काढ़ा बनाकर 20-30 मिली की मात्रा में प्रयोग करें। इससे प्रसव होने के बाद के प्रसूति स्त्री कके रोगों में लाभ होता है। इसमें अजवायन तथा सोंठ मिलाने से और जल्दी लाभ प्राप्त होता है।
अगरु की छाल के चूर्ण (2 ग्राम) को पांच ग्राम गाय के घी के साथ लेने से कुष्ठ, खुजली आदि चर्म विकारों में लाभ होता है। यह पित्ती से जुड़े खुजली वाले फोड़े और खुजली को भी कम कर देता है।अगरु ठण्ड व थकान को कम करता हैं। यह बुखार को कम करने में मददगार हैं और शरीर को ताकत देता है। बुखार में इसका काढ़ा पीना लाभदायक होता हैं। अगुरु की लकड़ी डाल कर रखे जल का सेवन करने से बुखार में लगने वाली प्यास शान्त होती है। अगरु को गिलोय, अश्वगंधा और शतावरी के साथ लें। इससे बुखार के बाद होने वाली थकान और शारीरिक कमजोरी में फायदा होता है।
2-5 ग्राम अगुरु के काढ़े को एक लोहे के बर्तन के भीतर लेप कर, रात भर छोड़ दें। सुबह 375 मिली जल में इस अगुरु लेप को घोल कर पीना चाहिए। ऐसे ही रोज एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुढ़ापे के कारण होने वाली बीमारियों से मुक्ति मिलती है तथा लंबी तथा स्वस्थ आयु की प्राप्ति होती है।
2-5 ग्राम अगुरु के चूर्ण को दूध के साथ रोज एक साल तक पीने से बल, आयुष्य आदि रसायन गुणों की प्राप्ति होती है। 1-2 बूँद अगुरु तेल का नियमित सेवन करने से बल की वृद्धि होती है।