सामान्य तौर पर चौलाई की फली का प्रयोग खाने में किया जाता है! क्या आप जानते हैं कि तंदुलीय चौलाई क्या है और तंदुलीय चौलाई का प्रयोग किन कामों में किया जाता है? इस चौलाई के नाम से भी लोग जानते हैं। तंदुलीय चौलाई का सेवन साग या भाजी के रूप में किया जाता है। आमतौर पर लोग चौलाई के बारे में इतना ही जानते हैं, लेकिन सच यह है कि तंदुलीय चौलाई का उपयोग एक औषधि के रूप में भी किया जाता है। चौलाई में इतने औषधीय गुण होते हैं कि आप अंदाजा नहीं लगा सकते। चौलाई का इस्तेमाल कर आप कई रोगों को ठीक कर सकते हैं।आयुर्वेद के अनुसार, चौलाई का प्रयोग पीलिया, मुंह के छाले, सांसों के रोग, खांसी, हिचकी की परेशानी, पेशाब में जलन की समस्या आदि को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा चौलाई के उपयोग और भी हैं। आइए जानते हैं कि आप चौलाई का प्रयोग किन-किन कामों में कर सकते हैं।चौलाई का पौधा 30-60 सेमी ऊँचा, सीधा और अनेक शाखाओं वाला होता है। यह हमेशा हरा रहता है। इसके तने गहरे धारीयुक्त 1.3-1.6 सेमी लम्बे होते हैं। इसके पत्ते 3.2-10 सेमी लम्बे एवं 1.8-5 सेमी चौड़े होते हैं। इसके फूल सूक्ष्म, शयामले और हरे रंग के या पीले और सफेद रंग के होते हैं। इसके फल शाखाओं के अगले भाग में, गुच्छों में लगे हुए होते हैं। इसकी बीज शयामले रंग के, गोल, चमकीले तथा छोटे होते हैं। चौलाई के पौधे में फूल और फल मुख्यतः वर्षा-ऋतु में होता है।
चौलाई की कई प्रजातियों का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। ऊपर वाले चौलाई के अलावा निम्नलिखित प्रजातियों का भी प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
संकर तण्डुलीय
यह सीधा और लगभग 80 सेमी तक ऊँचा शाकीय पौधा है। इसके पत्ते एकान्तर, भालाकार या आयताकार 3-9 सेमी लम्बे तथा 2.5-6 सेमी तक चौड़े होते हैं। इसके फूल पीले-हरे रंग के या लाल-बैंगनी रंग के तथा गुच्छों में लगे हुए होते हैं। इसका प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। यह रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला) तथा मूत्रल (पेशाब लाने वाला) होती है। चौलाई पंचांग का प्रयोग बवासीर, रुक-रुक कर पेशाब आने की समस्या, खांसी-सांसों के रोग, आंतों के रोग, दस्त, ल्यूकोरिया आदि की चिकित्सा में किया जाता है।
तनुतण्डुलीय
यह लगभग 80-100 सेमी तक ऊँचा, सीधा, पीले-हरे रंग वर्ण का शाकीय पौधा है। इसके पत्ते अण्डाकार, आयताकार, चिकने तथा हरे रंग के होते हैं। यह कीड़ों को खत्म करने के लिए, आंतों के रोग, सूजन, पेट साफ करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके साथ ही यह बुखार और कम पेशाब आने की समस्या में भी फायदेमंद होती है।कई लोगों का कान बहता है और इसके इलाज के लिए लोग अनेक तरह के उपाय करते हैं। आप चौलाई के प्रयोग से भी कान बहना रोक सकते हैं। चौलाई के पत्ते के रस या चौलाई की जड़ के रस की 2-3 बूंद मात्रा को कान में डालें। इससे कान बहना ठीक हो जाता है।आप चौलाई का उपयोग कर पेचिश का इलाज कर सकते हैं। 1-3 ग्राम चौलाई की जड़ के पेस्ट में मधु तथा मिश्री मिला लें। इसे चावल के धोवन (धुली हुए पानी) के साथ सेवन करें। इससे पेचिश (रक्तातिसार) में लाभ होता है।
1-2 ग्राम चौलाई के पेस्ट में मधु एवं शर्करा मिला लें। इसका सेवन करने से पेचिश (रक्तातिसार) में लाभ होता है।पेट के रोग को ठीक करने के लिए तन्डुलीय (चौलाई) आदि पेस्ट को एरण्ड़ तेल में भून लें। इसका पेट पर लेप करने से या पुल्टिस (गीली पट्टी) बाँधने से पेट संबंधी रोगों में लाभ प्राप्त होता है।पूयमेह में यदि मुंह के छाले, दर्द आदि की परेशानी में 10 मिली चौलाई की जड़ के रस में मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए।कई लोग बवासीर से परेशान रहते हैं। आप चौलाई का प्रयोग कर बवासीर का इलाज कर सकते हैं। चौलाई की सब्जी का सेवन बवासीर के रोगी के लिए फायदेमंद होती है।
1-2 ग्राम तण्डुलीय (चौलाई) की जड़ के चूर्ण में मधु मिला लें। इसे चावल के धोवन (धुली हुए पानी) के साथ पिएं। इससे ल्यूकोरिया में लाभ होता है।1-2 ग्राम चौलाई की जड़ के पेस्ट में मधु तथा रसांजन मिला लें। इसे चावल के धोवन के साथ पीने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।आप साइनस के इलाज के लिए भी चौलाई का प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए बराबर भाग में हरताल तथा चौलाई की मसी बना लें। इसका लेप करें। इससे पुराने घाव और साइनस के घाव में लाभ होता है।चौलाई के पत्तों को पीसकर लगाने से विद्रधि (फोड़ा), जलन, चोट, सूजन और घाव में लाभ होता है।बुखार को ठीक करने के लिए चौलाई का इस्तेमाल लाभ पहुंचाता है। भूमिजयन्ती (राजबला), सहदेवी तथा चौलाई की जड़ को सिर पर बाँधें। इससे बुखार उतर जाता है।