आज हम आपको लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की रणनीति के बारे में जानकारी देने वाले हैं! भारतीय जनता पार्टी अगले वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इस वर्ष होने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन सुनिश्चित करना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के प्रयोगों को प्रादेशिक चुनावों में दुहराने का फैसला किया है। इसकी एक झलक मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए जारी उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में दिख गई। बीजेपी ने एमपी चुनावों के लिए तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत कुल सात सांसदों को टिकट दिया है। साथ ही, कैलाश विजयवर्गीय जैसे प्रभावशाली और चर्चित चेहरे को भी इंदौर 1 सीट से विधानसभा चुनाव का टिकट दिया है। कहा जा रहा है कि भाजपा की राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के लिए आने वाली उम्मीदवारों की लिस्ट में भी कुछ ऐसा ही फॉर्मुला मिलने की पूरी संभावना है। पार्टी के अतीत के प्रयोगों पर नजर डालें तो प. बंगाल और त्रिपुरा में भाजपा ने अपने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को उतारकर मिला-जुला परिणाम ही पाया था। एक तरफ त्रिपुरा में केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने 68 हजार मतों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी तो प. बंगाल में उसके पांच में से तीन सांसद हार गए थे। इसी तरह उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में भी केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को समाजवादी पार्टी सपा प्रमुख और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। तो सवाल है कि बहुत प्रभावी परिणाम नहीं आने के बाद भी बीजेपी अपने सांसदों को प्रदेशों के चुनावी चौसर में क्यों धकेलती है?
बात यह है कि केंद्री की राजनीति से प्रदेशों में भेजे गए नेता भले ही चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर पाते हों, लेकिन उनके असर से आसपास के क्षेत्रों में भाजपा को फायदा मिल जाता है। पश्चिम बंगाल की ही बात कर लें तो भले ही वहां केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लोकसभा सांसद लॉकेट चटर्जी और राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता विधानसभा चुनावों में खुद नहीं जीत सके, लेकिन उन सभी के प्रभाव से आसपास के क्षेत्रों में कई बीजेपी उम्मीदवार की किस्मत चमक गई। प. बंगाल के पिछले चुनाव में बीजेपी को 77 विधायक मिले। पांच साल पहले यह संख्या सिर्फ तीन तक सीमित थी।
इसी तरह, उत्तर प्रदेश की करहल सीट पर केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल सपा प्रमुख अखिलेश यादव से हार गए, लेकिन उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री को अच्छी टक्कर दी। अखिलेश को 1 लाख 47 हजार 237 वोट मिले जबकि एसपी सिंह बघेल को 80 हजार 455 वोट हासिल हुए। लेकिन अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव के जमाने से ही सपा का गढ़ रही मैनपुरी सीट के साथ-साथ भोगांव सीट पर भी बीजेपी का कब्जा हो गया। कुल मिलाकर करहल और किशनी सीट सपा के पास गई तो मैनपुरी और भोगांव बीजेपी के खाते में आ गई। यानी परिणाम दो-दो से बराबर का रहा। बीजेपी इन्हीं अनुभवों के आधार पर मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में भी सांसदों, मंत्रियों समेत बड़े-बड़े चेहरों को टिकट देकर बड़ा दांव खेलना चाहती है।
सबसे पहला और बेहद महत्वपूर्ण कारण तो यह है कि किसी सांसद का आसपास के उन पांच-छह विधानसभाओं पर वर्चस्व होता है जिनसे मिलकर एक लोकसभा क्षेत्र बनता है। वो सांसद निधि से अपने लोकसभा क्षेत्र में आने वाले सभी विधानसभा क्षेत्रों में विकास कार्यों को अंजाम देते हैं। वहीं, संगठन के बड़े नेताओं को टिकट मिलने से निचले स्तर के कार्यकर्ताओं का उत्साह कई गुना बढ़ जाता है। कार्यकर्ताओं का पार्टी से जुड़ाव ही संगठन के नेताओं के जरिए होता है। इस कारण वो अपनी काबिलियत साबित करने के लिए चुनावों में अपने नेता की जीत सुनिश्चित करने को जी-जान लगा देते हैं। इसका फायदा पार्टी को मिलता है।
बीजेपी ने विधानसभा क्षेत्रों को रणनीति बनाने की दृष्टि से चार भागों में बांटा है- ए, बी, सी और डी। ए श्रेणी की वो सीटें होती हैं जहां बीजेपी कभी हारी ही नहीं है या वो पार्टी का गढ़ रही हैं। बी श्रेणी की सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार की जीत लगभग तय मानी जा रही है। पार्टी ने उन सीटों को सी और डी कैटिगरी में रखा है जहां उसे खुद लगता है कि प्रतिस्पर्धी दल उसपर भारी हैं। केंद्रीय मंत्रियों या सांसदों को मुख्य रूप से इन्हीं दो श्रेणियों के विधानसभा क्षेत्रों में उतारा जा रहा है।
बड़े-बड़े चेहरों को चुनाव लड़ाने से पार्टी को राजनीतिक अनुभव और लोकप्रियता का लाभ मिलता है। इन नेताओं के पास चुनाव जीतने का बेहतर मौका होता है और वे पार्टी के लिए वोट जुटाने में भी मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में बीजेपी ने दो केंद्रीय मंत्रियों, नरेंद्र सिंह तोमर और फग्गन सिंह कुलस्ते के साथ-साथ चार अन्य सांसदों को भी टिकट दिया है। इन नेताओं के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है और वे क्षेत्र में लोकप्रिय हैं।
बात छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों की करें तो वहां मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की स्थिति मजबूत बताई जा रही है। इस कारण वहां बीजेपी को कांग्रेस से सत्ता छीनने के लिए कदम-कदम पर रणनीतियों के जाल बिछाने होंगे। इसीलिए कहा जा रहा है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में भी एक केंद्रीय मंत्री और एक राज्यसभा सांसद समेत कुल चार सांसदों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतार सकती है। पार्टी ने सांसद विजय बघेल को पाटन से टिकट देकर इसकी शुरुआत कर दी है। अटकलें हैं कि केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह, सांसद और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, सांसद संतोष पाण्डेय और गोमती साय के अलावा राज्यसभा सांसद सांसद सरोज पाण्डेय को विधानसभा चुनाव का टिकट दिया जा सकता है। पार्टी छत्तीसगढ़ से दो राष्ट्रीय उपाध्यक्षों डॉ. रमन सिंह और लता उसेंडी को भी विधानसभा चुनाव लड़वा सकती है। रमन सिंह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
जहां तक बात मध्य प्रदेश की है तो वहां से आ रहे चुनावी सर्वेक्षणों में कांग्रेस पार्टी को बीजेपी पर बढ़त मिलते दिखाया जा रहा है। इस कारण भी बीजेपी, एमपी में रणनीति की कसौटी पर खुद को ठीक से कसकर चुनावी मैदान में उतरना चाहती है। पार्टी ने 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश विधानसभा में अकेले 150 सीटें लाने का टार्गेट रखा है। दिमनी, निवास और नरसिंहपुर क्षेत्रों में मजबूत पकड़ वाले केंद्रीय नेताओं क्रमशः नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद पटेल की उम्मीदवारी से पार्टी अपनी लक्ष्य प्राप्ति सुनिश्चित करना चाहती है।
वहीं, सांसदों गणेश सिंह का सतना, राकेश सिंह का जबलपुर, उदय प्रताप सिंह का होशंगाबाद और रीति पाठक का सीधी इलाके में काफी पकड़ है। उदय प्रताप सिंह को गाडरवारा से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे जबकि बाकी सांसदों को उनके संसदीय क्षेत्र के नामों वाली विधानसभा सीटों से टिकट मिले हैं। इस बार मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दिल्ली और पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आप भी किस्मत आजमाने वाली है। स्वाभाविक है कि यह कांग्रेस पार्टी की मुश्किल ही बढ़ाएगी जो बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा के जवाब में जन आक्रोश यात्रा के जरिए मतदाता के बीच पहुंच रही है।