आज हम आपको कलीजियम सिस्टम के बारे में बताने जा रहे हैं! सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर इन दिनों कार्यपालिका और न्यायपालिका में ठनी हुई है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजेजू कई मौकों पर खुलकर कलीजियम सिस्टम को अपारदर्शी बताते हुए आलोचना कर चुके हैं। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट कलीजियम के भेजे नामों पर सरकार की तरफ से लंबे वक्त तक फैसला नहीं लिए जाने पर निराशा जाहिर कर चुका है। सवाल उठा चुका है कि कहीं केंद्र सरकार NJAC को असंवैधानिक ठहराए जाने का खुन्नस तो नहीं निकाल रही। जजों के जरिए जजों की नियुक्ति वाले कलीजियम सिस्टम को सुप्रीम कोर्ट बेस्ट और सबसे ज्यादा पारदर्शी बता रहा है। आखिर है क्या ये कलीजियम सिस्टम? कैसे इसकी शुरुआत हुई? उससे पहले सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति कैसे होती थी? इसके बारे में संविधान क्या कहता है? आइए इन सभी सवालों का जवाब देखते हैं।भारतीय न्यायपालिका में तीन तरह की अदालतें आती हैं। सुप्रीम कोर्ट यानी सर्वोच्च अदालत जो एक है और सबसे बड़ी अदालत है। इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में हाई कोर्ट। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट उच्च न्यायपालिका में आते हैं और इन्हें संवैधानिक अदालतें कहा जाता है। तीसरी श्रेणी है अधीनष्ठ अदालतों की जिसमें डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर तमाम निचली अदालतें होती हैं। निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक सेवा परीक्षा होती है। लेकिन उच्च न्यायपालिका यानी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट कलीजियम की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट कलीजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) और सुप्रीम कोर्ट के 4 अन्य जज होते हैं जो सबसे वरिष्ठ होते हैं। सीजेआई इसके अध्यक्ष होते हैं। सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट्स में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट का कलीजियम केंद्र सरकार को नाम भेजता है। केंद्र की मंजूरी के बाद जजों की नियुक्ति होती है। कलीजियम ही जजों के तबादले करता है और इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट कलीजियम की तरह ही हाई कोर्ट में भी कलीजियम होते हैं जिसके अध्यक्ष उसके चीफ जस्टिस होते हैं। इसमें चीफ जस्टिस के अलावा हाई कोर्ट के 2 अन्य वरिष्ठतम जज होते हैं। उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट कलीजियम सीजेआई को नाम भेजता है। उन नामों पर सीजेआई की अगुआई वाला सुप्रीम कोर्ट कलीजियम विचार करता है और वही उसे केंद्र सरकार के पास भेजता है।
सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका बहुत सीमित है। इनकी नियुक्ति सिर्फ और सिर्फ कलीजियम सिस्टम से होती है। कलीजियम से नाम तय होने के बाद ही सरकार की भूमिका शुरू होती है और वह भी बहुत सीमित। कलीजियम जज के लिए जिन लोगों के नाम की सिफारिश करता है, केंद्र उनके बारे में आईबी के जरिए गोपनीय जांच कराता है। सरकार चाहे तो कलीजियम के भेजे गए नामों को आपत्ति के साथ लौटा सकती है लेकिन अगर कलीजियम ने फिर उसी या उन्हीं नामों की सिफारिश कर दे तो सरकार के पास उसे मंजूर करने के अलावा कोई चारा नहीं होता। हां, सरकार चाहे तो उस फाइल पर कुंडली मारकर बैठ सकती है, जैसा कि कुछ नामों को लेकर फिलहाल हो रहा है।
कलीजियम सिस्टम से पहले जो नियुक्ति की प्रक्रिया थी, उसके तहत कानून मंत्रालय नामों को रेफर करता था और फिर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उस बारे में अपना विचार देते थे और तब उन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता था। इस प्रक्रिया से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति होती थी। 1993 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने आदेश पारित किया और कलीजियम सिस्टम की शुरुआत की। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए कलीजियम की तरफ से सरकार को नाम भेजा जाता है। सुप्रीम कोर्ट के कलीजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और 4 सीनियर जस्टिस होते हैं। उन नामों पर विचार के बाद सुप्रीम कोर्ट का कलीजियम नाम तय करता है और फिर उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
यह केस था सुप्रीम कोर्ट ऐडवोकेट्स ऑन रेकॉर्ड असोसिएशन बनाम भारत सरकार का। 1993 में अदालतों में रिक्तियों से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान फर्स्ट जजे केस को एक बार फिर 9 जजों वाली बेंच में भेजा गया। इस बार बेंच ने 7-2 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए फर्स्ट जजेज केस को पलट दिया। इसे सेकंड जजेज केस के रूप में जाना जाता है। इसी फैसले के बाद कलीजियम सिस्टम की शुरुआत हुई। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि संविधान के अनुच्छेद 124 (2) और अनुच्छेद 217 (1) में लिखे ‘कंसल्टेशन’ शब्द का मतलब ‘सहमति’ ही है। सीजेआई की सिफारिश कार्यपालिका के लिए बाध्यकारी है। इस फैसले के बाद कलीजियम सिस्टम की शुरुआत हुई जिसमें सीजेआई के अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो सबसे वरिष्ठ जज होते थे।
कलीजियम सिस्टम को बदलने के लिए केंद्र सरकार ने एक आयोग बनाने की कोशिश की जो जजों की नियुक्ति करता। दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए कोई पारदर्शी सिस्टम बनाने के उद्देश्य से जस्टिस एमएन वेंकटचलैया आयोग का गठन किया। आयोग ने सिफारिश की कि एक नैशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन (NJAC) बनाई जाए जो सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति करे। आयोग में सीजेआई, सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियरमोस्ट जज, केंद्रीय कानून मंत्री और सिविल सोसाइटी से कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति हो। वेंकटचलैया सरकार की सिफारिशें लंबे वक्त तक ठंडे बस्ते में रहीं लेकिन 2014 में मोदी सरकार ने आने के बाद इस पर ऐक्शन लिया। संसद से नैशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट ऐक्ट पास हुआ। इसके तहत तय किया गया था कि 6 लोगों का कमिशन होगा, जो जजों के नाम का चयन करेगा और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी से उन्हें जज बनाया जाएगा। इसमें भारत के चीफ जस्टिस, दो सुप्रीम कोर्ट के जज, कानून मंत्री और दो जानी मानी शख्सियत शामिल होंगी। NJAC के गठन के लिए संसद से संविधान संशोधन को मंजूरी भले मिल गई लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान संशोधन को असंवैधानिक ठहरा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कलीजियम ही सबसे अच्छा सिस्टम है और न्यायिक स्वतंत्रता के लिए यह अपरिहार्य है।