देश में फ्रीमियम की चर्चा अब हर कोई कर रहा है! हाल में एक शब्द लगातार सुर्खियों में रहा। वह था फ्रीबीज यानी रेवड़ी। अदालतों से लेकर राजनीतिक गलियारों तक इसकी व्याख्या हुई। अब तब इसके बारे में आप जान चुके होंगे। यहां हम आपसे एक दूसरे शब्द की बात करेंगे जो इसी से थोड़ा मिलता-जुलता है। हालांकि, इसका मतलब बिल्कुल अलग है। बीते दिनों फाइनेंशियल वर्ल्ड में यह शब्द बार-बार इस्तेमाल होता रहा है। वह शब्द है ‘फ्रीमियम’। हाल में जब रतन टाटा ने एक स्टार्टअप में निवेश का ऐलान किया तो भी इसका जिक्र आया। इस स्टार्टअप का का नाम है ‘गुडफेलोज’। यह बुजुर्गों से जुड़ा है। देश में यह पहला स्टार्टअप है जो उन्हें कम्पैनियनशिप देता है। आसान शब्दों में कहें तो उनके अकेलेपन को दूर करता है। इसकी लॉन्चिंग पर यह भी पता चला था कि स्टार्टअप ‘फ्रीमियम’ मॉडल पर आधारित होगा। इसके पहले ओवर द टॉप यानी OTT प्लेयर्स भी बार-बार ‘फ्रीमियम’ मॉडल की ओर बढ़ने की बात करते रहे हैं। इसे उन्होंने बिजनस का सबसे ताजा-तरीन तरीका बताया है। अब आपके मन में जरूर सवाल उठ रहा होगा। आप सोच रहे होंगे कि भला यह ‘फ्रीमियम’ क्या बला है? रतन टाटा के निवेश वाले स्टार्टअप वेंचर और ओटीटी का इससे क्या कनेक्शन है? आपसे इसका क्या लेनादेना है? आइए, यहां इन सवालों के जवाब जानते हैं।
क्या मतलब होता है?
फ्रीमयम एक तरह का बिजनस मॉडल है। इसमें सर्विस प्रोवाइडर या ओनर यूजरों से बेसिक फीचर्स का कोई चार्ज नहीं लेते हैं। यानी बुनियादी चीजों को फ्री उपलब्ध कराया जाता है। अलबत्ता, एडवांस्ड या प्रीमियम सेवाओं और फीसर्च के लिए फीस वसूली जाती है। यह शब्द दो वर्ड्स से मिलकर बना है। ‘फ्री’ और ‘प्रीमियम’। इस शब्द को गढ़ने का श्रेय जैरिड ल्यूकिन को जाता है। 2006 में उन्होंने यह शब्द गढ़ा था। फ्रीमियम मॉडल इंटरनेट कंपनियों में काफी लोकप्रिय है। इस मॉडल को अपनाने वाली कंपनियों को पहले निष्ठावान ग्राहक बनाने पड़ते हैं। इसमें ऑनलाइन विज्ञापन, ईमेल और रेफरल नेटवर्क की मदद से प्रीमियम सर्विस के लिए फीस ली जाती है। दूसरे शब्दों के कह सकते हैं कि कुछ सर्विसेज कंपनी फ्री देती है। वहीं, ऐड-ऑन यानी प्रीमियम सर्विस के लिए आपसे पैसे लिए जाते हैं।
दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा ने बीते मंगलवार को गुडफेलोज नाम के स्टार्टअप में निवेश का ऐलान किया था। निवेश की रकम का खुलासा नहीं किया गया था। इसके संस्थापक शांतनु नायडू हैं। यह बुजुर्गों के अकेलेपन को दूर करता है। इन्हें युवाओं के जरिये कम्पैनियनशिप दी जाती है। यह अपनी तरह का पहला स्टार्टअप है। गुडफेलोज का बिजनेस मॉडल फ्रीमियम सब्सक्रिप्शन पर आधारित है। इसके तहत सीनियर सिटीजंस को सर्विस का एक्सपीरियंस कराने के लिए पहले महीने मुफ्त सेवा दी जाएगी। दूसरे महीने से पेंशनर्स को उनके सामर्थ्य के अनुसार एक छोटी सब्सक्रिप्शन फीस देनी होगी। इसमें एक कम्पैनियन या साथी हफ्ते में तीन बार ग्राहक से मिलने जाता है। वह चार घंटों तक बुजुर्ग के साथ रहता है। एक महीने की मुफ्त सेवा के बाद कंपनी एक महीने का 5,000 रुपये मासिक शुल्क लेती है।
ओटीटी प्लेयर्स भी इसी मॉडल पर दांव लगा रहे हैं। उनके सामने मोनेटाइजेशन की बड़ी चुनौती है। खासतौर से यह देखते हुए कि कंटेंट की लागत बढ़ रही है। इसे समझने के लिए एक आंकड़ा देखते हैं। देश में डिजिटल वीडियो ऑडियंस करीब 35 करोड़ हैं। लेकिन, सिर्फ 4 करोड़ पेड सबक्राइबर्स हैं। ओटीटी अभी शहरों की ही बात है। ओटीटी कंपनियां अपना सब्सक्राइबर बेस भी बढ़ाना चाहती हैं और पेड सब्सक्रिप्शन भी। यही कारण है कि उन्होंने बीच का रास्ता निकाला है। वे फ्रीमियम मॉडल की तरफ बढ़ रही हैं। इसमें प्रीमियम सर्विस या कंटेंट के लिए ही फीस वसूली जाती है। मलसन, प्रीमियम सर्विस लेने पर ऐड वगैरह सामने सामने नहीं आता है। दर्शक आराम से अपनी पसंद का कंटेंट देख पाते हैं। कुछ कंटेंट सभी के लिए होता है। लेकिन, प्रीमियम कंटेंट देखने के लिए फीस ली जाती है। प्रीमियम कंटेंट को भी कैटेगरी में बांटा जा सकता है। इसी के हिसाब से रेट तय किए जा सकते हैं।ओटीटी कंपनियां अपना सब्सक्राइबर बेस भी बढ़ाना चाहती हैं और पेड सब्सक्रिप्शन भी। यही कारण है कि उन्होंने बीच का रास्ता निकाला है। वे फ्रीमियम मॉडल की तरफ बढ़ रही हैं। इसमें प्रीमियम सर्विस या कंटेंट के लिए ही फीस वसूली जाती है। मलसन, प्रीमियम सर्विस लेने पर ऐड वगैरह सामने सामने नहीं आता है। दर्शक आराम से अपनी पसंद का कंटेंट देख पाते हैं। कुछ कंटेंट सभी के लिए होता है। लेकिन, प्रीमियम कंटेंट देखने के लिए फीस ली जाती है। प्रीमियम कंटेंट को भी कैटेगरी में बांटा जा सकता है। इसी के हिसाब से रेट तय किए जा सकते हैं। इस मॉडल में ओटीटी को भविष्य दिख रहा है। लिहाजा, कंपनियां इस तरफ बढ़ रही हैं। इस मॉडल में ओटीटी को भविष्य दिख रहा है। लिहाजा, कंपनियां इस तरफ बढ़ रही हैं।