Monday, December 23, 2024
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क्या है हलाल फ्री दिवाली ट्रेंड? जानिए!

हाल के दिनों में ट्विटर पर हलाल फ्री दिवाली फ्रेंड कर रहा है! हलाल फ्री दिवाली, भारत में ट्विटर पर सुबह से यही ट्रेंड कर रहा है। हलाल उत्‍पादों के बायकॉट की मुहिम #Halal_Free_Diwali हैशटैग के साथ चली है। दावा है कि हलाल उत्‍पादों के जरिए गैर-मुस्लिमों से जबरन पैसा जुटाया जाता है और फिर उसे धर्म विशेष के प्रचार में इस्‍तेमाल किया जाता है। मशहूर फूड चैन्‍स और डिलिवरी ऐप्‍स भी इस ट्रेंड के निशाने पर हैं। उनसे पूछा जा रहा है कि वे ‘हिंदुओं पर हलाल खाना क्‍यों थोपते हैं?’ हलाल सर्टिफिकेट के खिलाफ भी ट्वीट्स हुए हैं। यह विवाद नया नहीं है। गाहे-बगाहे यह बात उठती है कि हिंदू हलाल मीट नहीं खाना चाहते। उन्‍हें ‘झटका’ चाहिए लेकिन वह इतनी आसानी से मिलता नहीं। कोई प्रोडक्‍ट हलाल सर्टिफाइड है या नहीं, उसे लेकर अलग बवाल होता रहा है। हाल के कुछ सालों में यह बात सामने आई है कि हलाल सर्टिफिकेशन का इंडस्‍ट्री खरबों रुपये की है।हलाल एक तरह का वैल्‍यू सिस्‍टम और लाइफस्‍टाइल है जिसकी वकालत इस्‍लाम करता है। हलाल का मतलब है कि जिसकी इजाजत हो और जो वैध हो। हराम, हलाल का ठीक उलटा होता है मतलब इस्‍लाम में उन बातों की इजाजत नहीं है। इस्‍लाम में पांच ‘अहकाम’ हैं जिनमें फर्ज, मुस्तहब, मुबाह, मकरूह और हराम शामिल हैं।क्‍या हलाल है और क्‍या नहीं, यह मुस्लिमों की व्‍यक्तिगत राय पर छोड़ दिया गया था। शायद आपको यह जानकर हैरानी हो कि 1974 से पहले किसी उत्‍पाद के हलाल सर्टिफाइड होने का दस्‍तावेज उपलब्‍ध नहीं है। 1974 में पहली बार मांस के लिए हलाल सर्टिफिकेशन शुरू किया गया। 1993 तक केवल मांस ही हलाल सर्टिफाइड होता था। डिब्‍बाबंद उत्‍पादों की लोकप्रियता के साथ हलाल सटिफिकेशंस के आंकड़े भी चढ़े। अब यह मल्‍टी-बिलियन डॉलर इंडस्‍ट्री में बदल चुका है। हर साल 1 नवंबर को विश्‍व हलाल दिवस मनाया जाता है। बकायदा यूनाइटेड वर्ल्‍ड हलाल डिवेलपमेंट नाम की संस्‍था है जो हलाल उत्‍पादों को लेकर जागरूकता फैलाती है।

ग्‍लोबल हलाल सर्टिफिकेशना मार्केट केवल मांस या अन्‍य खाद्य पदार्थों तक सीमित नहीं है। अब फार्मास्‍यूटिकल्‍स, कॉस्मेटिक्‍स, हेल्थ यहां तक कि टॉयलेट प्रोडक्‍ट्स भी हलाल सर्टिफाइड होते हैं। आज की तारीख में हलाल फ्रेंडली टूरिज्‍म भी होता है और वेयरहाउस को भी हलाल सर्टिफिकेट मिलता है। रेस्‍तरां भी हलाल सर्टिफिकेट लेते हैं और ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट्स भी। लॉजिस्टिक्‍स, मीडिया, ब्रैंडिंग और मार्केटिंग में भी हलाल का दखल है। कोच्चि के एक बिल्‍डर ने तो पिछले दिनों हलाल-सर्टिफाइड अपार्टमेंट्स बेचने की पेशकश की थी।हलाल मार्केट की वैल्‍यू 3 ट्रिलियन डॉलर्स से भी ज्‍यादा है। हर साल 15-20% की दर से इसका बाजार बढ़ रहा है। इनमें से खाद्य पदार्थों की हिस्‍सेदारी केवल 6-8% है। दुनिया की करीब 32% आबादी मुस्लिम है। वह एक बड़ा कंज्‍यूमर बेस हैं और मैनुफैक्‍चरर्स के लिए अहम। कोई भी इंडस्‍ट्री एक ही उत्‍पाद को दो तरह से नहीं बनाना चाहेगी कि एक हलाल सर्टिफाइड हो और दूसरा गैर-इस्‍लामिक देशों के लिए। इससे लागत भी बढ़ेगी और प्रॉडक्‍शन भी जटिल हो जाएगा। इसी वजह से हलाल सर्टिफिकेट लेकर एक ही उत्‍पाद सबको बेचना कंपनियो को आसान लगता है।

भारत में पांच या छह संस्‍थाएं हलाल सर्टिफिकेट जारी करती हैं। सबसे ज्‍यादा डिमांड जमीयत-उलमा-ए-महाराष्‍ट्र और जमीयत-उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्‍ट की है। कंपनी की ओर से सबमिट की गई रिपोर्ट्स और दस्‍तावेज देखकर शरिया समितियां तय करती हैं कि हलाल सर्टिफिकेट देना है या नहीं। उत्‍पाद की साइंटिफिक या एनालिटिकल टेस्टिंग होती हो, ऐसा लगता नहीं। इस पूरी प्रक्रिया में सरकार की कोई भूमिका नहीं है।हलाल के विरोधियों का तर्क है कि इसके जरिए अल्‍पसंख्‍यक उपभोक्‍ता दुनिया के बहुसंख्‍यकों पर अपनी इच्‍छाएं थोपते हैं। गैर-मुस्लिमों के लिए हलाल सर्टिफिकेट के कोई मायने नहीं हैं। हलाल सर्टिफिकेट्स का पैसा आखिर में कहां जाता है? यह भी अहम सवाल है।

बेहतर यही होगा कि कंज्‍यूमर को फैसला करने दिया जाए। अगर गैर-मुस्लिमों को लगता है कि हलाल सर्टिफिकेशन उनके साथ धोखा है या फिर इससे उनकी भावनाएं आहत होती हैं तो वे ऐसे उत्‍पाद न खरीदें।सबसे ज्‍यादा डिमांड जमीयत-उलमा-ए-महाराष्‍ट्र और जमीयत-उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्‍ट की है। कंपनी की ओर से सबमिट की गई रिपोर्ट्स और दस्‍तावेज देखकर शरिया समितियां तय करती हैं कि हलाल सर्टिफिकेट देना है या नहीं। उत्‍पाद की साइंटिफिक या एनालिटिकल टेस्टिंग होती हो, ऐसा लगता नहीं। इस पूरी प्रक्रिया में सरकार की कोई भूमिका नहीं है।हलाल के विरोधियों का तर्क है कि इसके जरिए अल्‍पसंख्‍यक उपभोक्‍ता दुनिया के बहुसंख्‍यकों पर अपनी इच्‍छाएं थोपते हैं। गैर-मुस्लिमों के लिए हलाल सर्टिफिकेट के कोई मायने नहीं हैं। हलाल सर्टिफिकेट्स का पैसा आखिर में कहां जाता है? यह भी अहम सवाल है। एक उदाहरण के रूप में झटका मीट को ले सकते हैं। देश के कई हिस्‍सों में झटका मांस, हलाल सर्टिफिकेट की कमी के चलते मिलना बंद नहीं हुआ। उसकी उपलब्‍धता घटी, हलाल मांस उत्‍पादों की तगड़ी मार्केटिंग हुई और झटका मांस का कारोबार करने भी हलाल की तरफ शिफ्ट हो गए।

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