इस्लामोफोबिया अब बहुत चल रहा है! धर्मों के बीच भेदभाव का रंग और गहरा हो गया। यूएन यह समझने में बुरी तरह नाकाम रहा है कि बीते दशक और उससे थोड़ा पहले से ही गैर-अब्राहमिक धर्मों के खिलाफ नफरत कितना ज्यादा बढ़ी है। अकेले भारत ने ही फिर से चेतावनी का बिगुल फूंका।
विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने 12 अक्टूबर 2021 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में कहा, ‘जहां तक बात धार्मिक पहचानों की है तो हम देख रहे हैं कि कैसे सदस्य देश किस तरह नए तरह के धार्मिक नफरतों का सामना कर रहे हैं। हमने यहूदी विरोधी, इस्लाम विरोधी और इसाईयत विरोधी भावनाओं की तो आलोचना करते हैं, लेकिन हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी और सिख विरोधी समेत कई अन्य धर्मों के खिलाफ नफरत की भावनाएं पैदा हो रही हैं और तेजी से जड़ें जमा रही हैं।’ मंदिरों और मूर्तियों के विध्वंस, गुरुद्वारों में सिखों के नरसंहार, बामियान में बुद्ध प्रतिमा का विध्वंस जैसे उदाहरण गिनाकर उन्होंने कहा कि इन नफरत में किए जा रहे इन अत्याचारों को मानने से भी इनकार करना, उन आततायियों का मनोबल बढ़ाता है जो जानते हैं कि किसे निशाना बनाने से उनकी तरफ उंगली तक नहीं उठेगी। मुरलीधरन ने कहा, ‘हम इन अत्याचारों को अपनी बर्बादी की शर्त पर नजरअंदाज करते हैं।’
हिंदू, सिख, बौद्ध एवं अन्य गैर-अब्राहमिक धर्मों के पूजा स्थलों पर हमले बढ़ रहे हैं। तालिबान भी अफगानिस्तान में ऐसे धार्मिक हमलों को रोक नहीं सका है। वहां गुरुद्वारों पर हमले बढ़ रहे हैं। पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों पर हमले और अल्पसंख्यकों के जबरन धर्म परिवर्तन की वारदातें आम हो गई हैं। अमेरिका समे पश्चिम के देशों में भी नफरत के मारे हिंदुओं और सिखों के खिलाफ अपराध बढ़े हैं। इन अत्याचारों को बड़े आराम से नजरअंदाज कर दिया जा रहा है। हालांकि, वास्तविकता में यही धार्मिक नफरतों में किए जा रहे अत्याचार के असली प्रमाण हैं। सलमान रुश्दी पर हुए हमलों को ही देख लीजिए। मीडिया ने किस तरह चालाकी से इसे सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले तक सीमित कर दिया जबकि हकीकत कुछ और भी है।
हालत यह है कि सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267 के तहत आतंकवादियों पर प्रतिबंध के प्रस्तावों को भी धार्मिक रंग दिया जा रहा है। पाकिस्तान इस बात को लेकर बेकरार है कि कैसे किसी हिंदू को इस लिस्ट में शामिल करवा दिया जाए, भले ही झूठे और मनगढ़ंत आरोप ही क्यों ना लगाना पड़े। ये और कुछ नहीं, हिंदुओं के प्रति नफरत का ही एक प्रमाण है। ऐसे में भारत को धार्मिक नफरतों को लेकर दुनिया के दोहरे रवैये के प्रति हमेशा मुखर रहना होगा और गैर-अब्राहमिक धर्मों के प्रति नफरतों को बार-बार उजागर करते रहना होगा।
भारत जैसा बहुलतावादी लोकतंत्र संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्था को धार्मिक ध्रुवीकरण का अड्डा बनते नहीं देख सकता है।हिंदू, सिख, बौद्ध एवं अन्य गैर-अब्राहमिक धर्मों के पूजा स्थलों पर हमले बढ़ रहे हैं। तालिबान भी अफगानिस्तान में ऐसे धार्मिक हमलों को रोक नहीं सका है। वहां गुरुद्वारों पर हमले बढ़ रहे हैं। पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों पर हमले और अल्पसंख्यकों के जबरन धर्म परिवर्तन की वारदातें आम हो गई हैं। अमेरिका समे पश्चिम के देशों में भी नफरत के मारे हिंदुओं और सिखों के खिलाफ अपराध बढ़े हैं। इन अत्याचारों को बड़े आराम से नजरअंदाज कर दिया जा रहा है। हालांकि, वास्तविकता में यही धार्मिक नफरतों में किए जा रहे अत्याचार के असली प्रमाण हैं।
सलमान रुश्दी पर हुए हमलों को ही देख लीजिए। मीडिया ने किस तरह चालाकी से इसे सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले तक सीमित कर दिया जबकि हकीकत कुछ और भी है।विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने 12 अक्टूबर 2021 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में कहा, ‘जहां तक बात धार्मिक पहचानों की है तो हम देख रहे हैं कि कैसे सदस्य देश किस तरह नए तरह के धार्मिक नफरतों का सामना कर रहे हैं। हमने यहूदी विरोधी, इस्लाम विरोधी और इसाईयत विरोधी भावनाओं की तो आलोचना करते हैं, लेकिन हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी और सिख विरोधी समेत कई अन्य धर्मों के खिलाफ नफरत की भावनाएं पैदा हो रही हैं और तेजी से जड़ें जमा रही हैं।’ मंदिरों और मूर्तियों के विध्वंस, गुरुद्वारों में सिखों के नरसंहार, बामियान में बुद्ध प्रतिमा का विध्वंस जैसे उदाहरण गिनाकर उन्होंने कहा कि इन नफरत में किए जा रहे इन अत्याचारों को मानने से भी इनकार करना, उन आततायियों का मनोबल बढ़ाता है जो जानते हैं कि किसे निशाना बनाने से उनकी तरफ उंगली तक नहीं उठेगी। मुरलीधरन ने कहा, ‘हम इन अत्याचारों को अपनी बर्बादी की शर्त पर नजरअंदाज करते हैं।’ हमें उम्मीद है कि भगाव सूर्य दुनिया को सच्चाई से आलोकित करेंगे।