काली मूसली क्या है? जानिए इसके फायदे!

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काली मूसली को भी हमारे वैदिक विज्ञान में औषधि माना गया है! आयुर्वेद में मूसली का यौन शक्ति और शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए कई वर्षो से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद के शास्त्रों में मूसली दो प्रकार की बतायी गयी है एक सफेद मूसली और दूसरी काली मूसली। दोनों तरह की मूसली औषधि के रूप में बहुत से रोगों में प्रयोग की जाती है। काली मूसली का प्रयोग मूल रुप से यौन शक्ति बढ़ाने और शरीर की मांसपेशियों की दुर्बलता को दूर करने में किया जाता है साथ ही यह मूत्र या यूरिन सम्बन्धी रोगो के उपचार में भी बहुत ही फायदेमंद साबित होती है।काली मूसली एक बहुवर्षायु कोमल क्षुप होती है जिसकी जड़ फाइबर युक्त मांसल (ठोस ) होती है। काली मूसली स्वाद में हल्का मीठापन और कड़वापन लिए हुए होती है लेकिन इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही इसको लेनी चाहिए। काली मूसली के पत्ते ताड़ (ताल) के पत्तों की तरह होते हैं। पीले रंग के फूलों के कारण इसको स्वर्ण पुष्पी या हिरण्या पुष्पी भी कहते हैं। इसकी जड़ें  बाहर से मोटी एवं काले-भूरे रंग की तथा अन्दर से सफेद रंग की, मांसल व तंतुयुक्त होती है। इस लेख में हम आपको काली मूसली के फायदे के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

आयुर्वेद के अनुसार काली मूसली पिच्छिल(चिपचिपाहट युक्त ), वात-पित्त को कम करने वाली और कफ को बढ़ाने वाली होती है। काली मूसली वृष्य ( यौनशक्ति बढ़ाने वाली ), बृंहण (शरीर का बल बढ़ाने वाली ) तथा धातुवर्धक( शरीर के सभी तत्वों को पोषण देने वाली) होती है। इसके अलावा यह जलन, थकान, पाइल्स में भी अच्छा काम करती है। काली मूसली रक्त को दूषित करने वाले तत्वों को नष्ट करने वाली होती है अर्थात ये रक्त को साफ़ करने वाली होती है।काली मूसली की मूल (जड़ ) वाजीकारक यानि यौन शक्ति बढ़ाने में मददगार और मूत्र रोग में लाभकारी होती है। साथ ही ये शक्तिवर्द्धक, बुखार, संग्रहणी या दस्त (आँतो की कमजोरी), अर्श( पाइल्स), रक्त संबंधी बीमारियां, शुक्रमेह में भी लाभकारी है। मधुमेह या डायबिटीज के कारण होने वाली कमजोरी में इसका अच्छा परिणाम देखने को मिलता है।

त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे सफ़ेद दाग, लिवर सम्बन्धी रोग जैसे पीलिया और सांस संबंधी बीमारियां जैसे फेफडो में सूजन इन सभी में भी काली मूसली का प्रयोग कर सकते है। अग्निमांद्य यानि कमजोर पाचन शक्ति और उल्टी होने जैसी इच्छा में काली मूसली को देने से लाभ होता है । कमर दर्द तथा सन्धिशूल या जोड़ों में दर्द से भी वात को कम करने के कारण काली मूसली एक बेहतर औषधि है।

आजकल तनाव और भाग-दौड़ भरी जिंदगी का सबसे ज्यादा असर सेक्स लाइफ पर भी पड़ता है इसलिए कम उम्र में ही आज के युवा शारीरिक कमजोरी की समस्या से जूझने लगते है। इसका असर उनकी यौन शक्ति पर भी पड़ता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए काली मूसली एक बेहतर उपाय है क्योंकि काली मूसली में वाजीकरण का गुण होता है जो कि शरीर की कमजोरी को दूर करके यौन शक्ति को बढ़ाती है।

इसके लिए समान मात्रा में काली मूशली, गुडूची सत्त्, केंवाच बीज, गोक्षुर, सेमल, आँवला तथा शर्करा को घी और दूध के साथ मिलाकर पिएं और दूसरा एक और तरीका भी है कि-

-मूसली कंद 1 भाग, मखाना दो भाग तथा 3 भाग गोक्षुर के चूर्ण का क्षीरपाक कर मिश्री तथा टंकण मिलाकर तीन सप्ताह तक सुबह गुनगुना करके पीने से सेक्स की इच्छा बढ़ती है।

आधुनिक जीवनशैली और गलत खानपान का बुरा असर संतान को पैदा करने की क्षमता पर पड़ रहा है जिसके कारण शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में कमी हुई है और इस समस्या को दूर करने में काली मूसली एक बेहतर उपाय है। काली मूसली का सेवन दूध के साथ करने पर जल्दी फायदा पहुँचता है। 2-4 ग्राम काली मूसली जड़ के चूर्ण का दूध के साथ सेवन करने से शुक्रदोषों में लाभ होता है।

शीघ्रपतन की समस्या आज की युवा पीढ़ी की आम समस्या है और काली मूसली इसको दूर करने में अच्छा उपाय है। शीघ्रपतन रोकने के लिए निम्न प्रकार से लिया जाए तो काली मूसली बहुत फायदेमंद होती है।

1 ग्राम मूसली चूर्ण में मिश्री मिलाकर खाने से शीघ्रपतन तथा वीर्य विकार आदि दोष मिटते हैं।

2-4 ग्राम काली मूसली के चूर्ण को गाय के घी में मिलाकर खिलाने से वीर्य की पुष्टि होती है।

काली मूसली तथा उटंगन के चूर्ण को मिलाकर 2-4 ग्राम मात्रा में सेवन करने से शरीर तथा वीर्य की पुष्टि होती है।

काली मूसली मूत्र संबंधी बीमारियों में एक कारगर औषधि है। मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र कम मात्रा में आना आदि। इस प्रकार की सभी समस्याओ में काली मूसली बहुत ही लाभकारी साबित होती है क्योंकि इसमें मूत्रल यानि डाइयूरेटिक गुण पाया जाता है ।

काली मूसली के 2-4 ग्राम चूर्ण में 5 ग्राम मिश्री मिलाकर तथा 3 बूँद चन्दन तेल डालकर दूध के साथ सुबह शाम पीने से मूत्र संबंधी रोगो में लाभ होता है।

मूत्राघात में रुक-रुक कर पेशाब होता है जिसके कारण असहनीय दर्द और पीड़ा को सहना पड़ता है। इससे राहत पाने के लिए 10-15 मिली काली मूसली के काढ़े का सेवन करने से मूत्राघात में लाभ होता है।