Friday, April 11, 2025
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क्या है कालमेघ, जानिए इसके फायदे!

सामान्य तौर पर सभी औषधियां और दवाइयां हमारे लिए उपयोगी मानी जाती है! आपने कालमेघ के पौधे को अपने आस-पास जरूर देखा होगा, लेकिन शायद कालमेघ को पहचानते, या कालमेघ के फायदे के बारे में नहीं जानते होंगे। कालमेघ एक ऐसा पौधा है, जो जड़ी-बूटी के गुणों से भरपूर होता है। वैसे तो कालमेघ दिखने में बहुत ही साधारण-सा पौधा लगता है, लेकिन जब आप कालमेघ के गुणों के बारे में जानेंगे, तो आश्चर्य में पड़ जाएंगे।आयुर्वेद के अनुसार, कालमेघ के इस्तेमाल से आप शरीर में होने वाले विकारों की रोकथाम  कर सकते हैं। कालमेघ का प्रयोग कर कई रोगों का उपचार भी कर सकते हैं। आइए कालमेघ के बारे में विस्तार से जानते हैं। कालमेघ एक जड़ी-बूटी है। यह चिरायते जैसी होती है। इसके पत्ते हरे मिर्च के पत्ते जैसे हरे, और पीले होते हैं। फल के दोनों सिरों पर नुकीलापन होता है। इसकी जड़ छोटी, पतली, लम्बी, तथा स्वाद में बहुत ही कड़वी होती है। कालमेघ की मुख्य प्रजाति के अलावा एक और प्रजाति पाई जाती है। यह कालमेघ से कम गुणों वाली होती है।

कई लोग शारीरिक कमजोरी की शिकायत करते हैं। इसमें कालमेघ का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए 10-20 मिली भूनिम्ब पत्ते का काढ़ा पिएं। इससे शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है, भूनिम्ब, नीम छाल, त्रिफला, परवल पत्ते, वासा, गिलोय, पित्तपापड़ा, तथा भृङ्गराज आदि औषधियों से काढ़ा बना लें। काढ़ा में 10 मिली मधु मिलाकर पीने से एसिडिटी में लाभ होता है।

1-2 मिली कालमेघ पत्ते के रस को पिलाने से बालकों के पाचन सम्बन्धी, तथा अन्य पेट के रोगों में लाभ होता है!

पेट के रोग में 1-2 ग्राम कालमेघ पंचांग चूर्ण का सेवन करें। इससे पेट के साथ-साथ डायबिटीज आदि बीमारी में भी लाभ होता है।

अपच में कालमेघ पत्ते का काढ़ा सेवन करें। इसमें काढ़ा को 10 मिली मात्रा में पिएं। अपच में लाभ होता है।

पाचनतंत्र को स्वस्थ बनाने के लिए 1-1 भाग भूनिम्ब, कुटकी, व्योष (सोंठ, मरिच, पीपल), नागरमोथा, इन्द्रयव लें। इनके साथ 2 भाग चित्रकमूल, तथा 16 भाग कुटज की छाल भी लें। इनको बारीक चूर्ण बना लें। इसे 1-2 ग्राम मात्रा में लेकर, गुड़ के शरबत के साथ खाएं। इससे पाचनतंत्र विकार में लाभ मिलता है। इसके साथ-साथ पीलिया, बुखार, एनीमिया, और दस्त में फायदा है।

भूनिम्ब, कुटकी, परवल की पत्तियां, नीम की छाल, तथा पित्तपापड़ा लें। इनमें इतना ही भैंस का मूत्र मिला लें। मूत्र के सूख जाने तक इसे धीमी आग पर पकाएं, और पीस लें। इसे 65-125 मिग्रा मात्रा में प्रयोग करने से ग्रहणी (आईबीएस) रोग में लाभ होता है।

भूनिम्ब, सैरेयक, पटोल आदि औषधियों से काढ़ा बनाकर पीने से उल्टी, बुखार, कफ के साथ-साथ खुजली आदि त्वचा की बीमारी भी ठीक होती है।

खुजली को ठीक करने के लिए 2 ग्राम धमासा, तथा 4 ग्राम भूनिम्ब को रात भर पानी में भिगो दें। इसे सुबह और शाम पेस्ट बनाकर दूध के साथ सेवन करें। इससे खुजली की गंभीर बीमारी भी ठीक हो जाती है।

कालमेघ के इस्तेमाल से सोरायसिस में भी फायदा मिलता है। कालमेघ के चूर्ण को ग्लिसरीन के साथ मिलाकर मलहम बना लें। इसे लगाने से सोरायसिस में लाभ होता है।

पाठा, गुडूची, भूनिम्ब, तथा कुटकी को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनायें। इस काढ़ा का 10 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे आम का पाचन होकर, दस्त में लाभ होता है।

नागरमोथा, इन्द्रयव, भूनिम्ब, तथा रसाञ्जन, अथवा चन्दन, सुंधबाला, नागरमोथा, भूनिम्ब तथा दुरालभा को समान मात्रा में मिला लें। इसका काढ़ा बनायें। काढ़ा का 10-20 मिली सेवन करने से पित्त विकार के कारण होने वाले दस्त में लाभ होता है।

गर्भावस्था में महिलाओं को बहुत अधिक उल्टी होने की शिकायत रहती है। इसमें 2 ग्राम भूनिम्ब पेस्ट में इतनी ही मात्रा में चीनी मिलाकर सेवन करें। इससे गर्भावस्था में बार-बार होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।

पित्त के कारण होने वाले स्तन संबंधी विकार में हरड़, बहेड़ा, आंवला, नागरमोथा, भूनिम्ब, तथा कुटकी लें। इनसे काढ़ा बना लें। इसे 20-30 मिली मात्रा में पीने से लाभ होता है।

सूजन को ठीक करना है, तो भूनिम्ब, तथा सोंठ को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पेस्ट बना लें। इसके 2 ग्राम मात्रा को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सूजन में लाभ होता है। कालमेघ का इस्तेमाल सूजन को कम करने में मदद करता है।

मिट्टी के एक घड़े में भूनिम्ब के पत्ते बिछा लें। इसके ऊपर धनिया के पत्ते बिछाकर, पानी से भिगो कर, रात भर छोड़ दें। सुबह रस निकालकर सेवन करें, तथा हाथ-पैर पर लेप करें। इससे जलन खत्म होती है।

मूत्र रोग में 1-2 ग्राम भूनिम्ब पंचांग चूर्ण को 10-20 मिली बड़ी लोणी काढ़ा के साथ सेवन करें। इससेऔर पढ़ें – एनीमिया कम करने के घरेलू उपचार मूत्र रोग जैसे पेशाब में दर्द होना, पेशाब रुक-रुक कर आने जैसी परेशानी ठीक होती है।

बवारीस में कालमेघ का उपयोग किया जा सकता है। इन्द्रयव, कलिहारीकन्द, पिप्पली, चित्रकमूल, अपामार्ग के बीज लें। इनके साथ भूनिम्ब, तथा सेंधा नमक लें। सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनायें। चूर्ण में बराबर मात्रा में गुड़ मिला लें। इसकी 125 मिग्रा की वटी बनाकर रोज सुबह और शाम सेवन करें। आपको 1-1 वटी का सेवन करना है। इससे बवासीर रोग में लाभ होता है।

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