वैदिक विज्ञान में कई प्रकार के पुष्प एवं फलों को औषधियों के रूप में संजोया गया है! कर्कोटकी के नाम से बहुत कम लोग इस सब्जी को पहचान पायेंगे। असल में कर्कोटकी को हिन्दी में ककोरा कहते हैं, जो सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं लगती स्वास्थ्य के दृष्टि से भी उत्तम होती है। यह सिरदर्द, कानदर्द, खांसी, पेट संबंधी बीमारियां, बवासीर, खुजली जैसे आम बीमारियों के उपचार में फायदेमंद होता है। इसके अलावा बालों का झड़ना कम करने के साथ-साथ बालों को मजबूती भी प्रदान करता है। ककोरा के फायदों के बारे में जानने से पहले चलिये इसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं।जैसा कि आपने पहले ही पढ़ा है कि कर्कोटकी को ककोरा, खेखसा, ककोड़ा भी कहते हैं। ककोरा फलों का प्रयोग साग के रूप में किया जाता है। इसमें गाजर के जैसी बहुवर्षायु जड़ होती है। जिसका प्रयोग मतिष्क संबंधी बीमारियों, रक्तार्श या खूनी बवासीर, ग्रन्थि तथा मधुमेह (डायबिटीज) की चिकित्सा में किया जाता है।
इसमें नर एवं नारी फूल की लताएं अलग-अलग होती हैं। नर पुष्प की लता में फल न लगने के कारण उसे बांझ ककोड़ा तथा फल देने वाली स्त्री पुष्प की लता को ककोड़ा कहा जाता है। इसके फल मुलायम कांटों से युक्त, देवदाली या धतूरे के फल जैसे कच्ची अवस्था में बाहर से हरे और अन्दर से सफेद रंग के तथा पकने पर पीले लाल रंग के हो जाते है। बीज परवल के बीज जैसे होते हैं।
ककोड़ा प्रकृति से थोड़ा कड़वा, मधुर,गर्म तासीर का होता है। यह वात,पित्त और कफ तीनों दोषों को हरने वाला, अग्निदीपन (पाचन शक्ति बढ़ाने वाला), खाने में रूची बढ़ाने वाला, वृष्य, ग्राही, रक्तपित्तहर (रक्त से पित्त को हटाने वाला) तथा हृद्य (हृदय के लिये उपकारी) होता है।
यह कुष्ठ, हृल्लास, अरुचि (खाने में रूची), श्वास (सांस संबंधी समस्या), कास (खांसी), ज्वर (बुखार), किलास, क्षय, हिक्का, अर्श या पाइल्स, गुल्म (ट्यूमर), शूल या दर्द, कृमि, शिरोरोग, हृदयरोग, पीनस, विष तथा विसर्पनाशक (हर्पिज नष्ट करने वाला) होता है।
कर्कोटी का फल कड़वा और मधुर होता है। इसके अलावा दीपन (पाचक), त्रिदोषशामक, हृद्रोग, अरुचि, सांस संबंधी बीमारी, कास या खांसी, ज्वर या बुखार, गुल्म, शूल या दर्द तथा मेहनाशक (मूत्र संबंधी रोग) होता है।
कर्कोटी का फूल कुष्ठ, किलास (त्वचा संबंधी रोग) तथा अरुचि नाशक होता है।
कर्कोटी का कन्द सिरदर्द नाशक होता है।
इसके पत्ते रुचिकारक, वीर्यवर्धक, त्रिदोष दूर करने वाले, कृमि, ज्वर, क्षय (कटना-छिलना), श्वास (सांस संबंधी बीमारी), कास (खांसी), हिक्का तथा अर्श नाशक में फायदेमंद होते हैं।
आजकल सिरदर्द ,हर दो दिन में किसी न किसी कारण से परेशानी का सबब बन जाता है। सिरदर्द के कारण कोई भी काम ध्यान देकर करना मुश्किल हो जाता है। ककोरा का सेवन सिरदर्द से आराम दिलाने में बहुत मदद करता है।
–1-2 बूंद कर्कोटकी के पत्ते का जूस नाक से लेने से सिर में होने वाले दर्द से मुक्ति मिलती है।
-ककोड़ा के जड़ को गाय के घी में पकाकर, घी को छानकर, 1-2 बूंद नाक में टपकाने से आधासीसी यानि अधकपारी के दर्द में लाभ होता है।
-कर्कोटकी के जड़ को काली मिर्च तथा लाल चन्दन के साथ पीसकर उसमें नारियल तैल मिलाकर मस्तक पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
आजकल बालों का झड़ना आम समस्या बन गई है। स्त्री हो या पुरूष सभी बाल संबंधी समस्याओं जैसे- असमय बालों का सफेद होना, रूसी होना, रूखे बाल, बालों का झड़ना, गंजापन से परेशान रहते हैं। बालों का झड़ना कम करने के लिए कर्कोटकी जड़ को घिसकर बालों की जड़ों में लगाने से बाल मजबूत होते हैं तथा बालों का गिरना बंद हो जाता है।
अगर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के वजह से कान में दर्द असहनीय हो गया है तो कर्कोटकी जड़ को पीसकर घी में पकाकर, छानकर, 1-2 बूंद कान में डालने से कान के दर्द से आराम मिलता है।अगर खांसी है कि ठीक होने का नाम नहीं ले रहा और खांसने के कारण सांस लेने में समस्या हो रही है तो कंटोला का इस्तेमाल ऐसे करना फायदेमंद साबित हो सकता है।
-2 ग्राम बांझ ककोड़ा कन्द चूर्ण में 4 नग काली मरिच चूर्ण मिलाकर जल के साथ पीसकर पिलाएं तथा एक घंटे पश्चात् 1 गिलास दूध पिलाने से कफ का निसरण होकर श्वास-कास में लाभ होता है।
-1 ग्राम बांझ ककोड़ा कन्द चूर्ण को गुनगुने जल के साथ खिलाने से खांसी से छुटकारा मिलता है।
-कर्कोटकी जड़ की भस्म बनाकर 125 मिग्रा भस्म में 1 चम्मच शहद तथा 1 चम्मच अदरक का जूस मिलाकर खाने से खांसी होने पर सांस संबंधी समस्या में लाभ होता है।अगर खान-पान के गड़बड़ी के कारण पेट में इंफेक्शन हो गया है तो कर्कोटकी का सेवन इस तरह से करने पर जल्दी राहत मिलती है। 1-2 ग्राम कर्कोटकी जड़ चूर्ण का सेवन करने से अरुचि तथा आँत्रगत संक्रमण (पेट के इंफेक्शन) से जल्दी राहत मिलती है।
अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें काकरोल का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। ककोड़ा जड़ को भूनकर, पीसकर, 500 मिग्रा की मात्रा में खिलाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) से राहत मिलती है।
अगर आपको पीलिया हुआ है और आप इसके लक्षणों से परेशान हैं तो कंटोला का सेवन इस तरह से कर सकते हैं।
-कर्कोटकी के जड़ के रस को 1-2 बूंद नाक में डालने से कामला (पीलिया) में लाभ होता है।
-बांझ ककोड़ा जड़ के चूर्ण का नाक से लेने से तथा गिलोय पत्ते को तक्र के साथ पीसकर पिलाने से कामला में लाभ होता है (दवा लेने के समय आहार पर विशेष रूप से ध्यान रखें)।