कुश क्या है? जानिए इसके फायदे!

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सामान्य तौर पर हमारे आस पास पाए जाने वाले सभी पेड़ पौधे, कहीं ना कहीं हमारे लिए औषधि का काम करते ही हैं! कुश एक प्रकार का घास होता है। सदियों से हिन्दुओं में कुश का इस्तेमाल पूजा के लिए किया जाता रहा है। इसलिए धार्मिक दृष्टि से कुश घास को पवित्र माना जाता है। लेकिन पूजा के अलावा भी औषधि के रुप में कुश का अपना एक महत्व होता है शायद इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। चलिये जानते हैं कि कुश का किस प्रकार आयुर्वेद में औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है।

कुश का प्रयोग प्राचीन काल से चिकित्सा एवं धार्मिक कार्य में किया जा रहा है। प्राचीन आयुर्वेदिक संहिताओं तथा निघंटुओं में इसका वर्णन प्राप्त होता है। चरक-संहिता के मूत्रविरेचनीय तथा स्तन्यजनन आदि महाकषायों में इसकी गणना की गयी है। इसके अतिरिक्त सुश्रुत-संहिता में भी कई स्थानों में कुश का वर्णन मिलता है।

कुश  मीठा, कड़वा, ठंडे तासीर का, छोटा, स्निग्ध, वात, पित्त  कम करने वाला, पवित्र, तथा मूत्रविरेचक होता है। यह मूत्रकृच्छ्र मूत्र संबंधी बीमारी, अश्मरी या पथरी, तृष्णा या प्यास, प्रदर, रक्तपित्त , शर्करा, मूत्राघात या मूत्र करने में रुकावट, रक्तदोष, मूत्ररोग, विष का प्रभाव, विसर्प या हर्पिज़, दाह या जलन, श्वास या सांस लेने में असुविधा, कामला या पीलिया, छर्दि या उल्टी, मूर्च्छा या बेहोशी तथा बुखार कम करने में मदद करता है। कुश की जड़ शीतल प्रकृति की होती है तथा स्तन यानि ब्रेस्ट का साइज बढ़ाने में मदद करती है।

कभी-कभी किसी बीमारी के लक्षण के तौर पर प्यास की अनुभूति ज्यादा होती है। कुश का इस तरह से सेवन करने पर मदद मिलती है। समान भाग में बरगद के पत्ते, बिजौरा नींबू का पत्ता, वेतस का पत्ता, कुश का जड़, काश का जड़ तथा मुलेठी से सिद्ध जल में चीनी अथवा अमृतवल्ली का रस डालकर, पकाकर, ठंडा हो जाने पर पीने से तृष्णा रोग या प्यास लगने की बीमारी से राहत मिलती है।

अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का  नाम ही नहीं ले रहा तो  का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा। दो चम्मच कुश के जड़ के रस को दिन में तीन बार पीने से प्रवाहिका तथा छर्दि या उल्टी से आराम मिलता है।

डायट में गड़बड़ी हुई कि नहीं दस्त की समस्या शुरु हो गई। कुश का औषधीय गुण दस्त को रोकने में मदद करता है। 10-20 मिली कुश के जड़ के काढ़े का सेवन करने से आमातिसार या दस्त में लाभ होता है।

अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने की आदत है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें  कुश (darbha grass in hindi) का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। 2-4 ग्राम बला तथा कुश के जड़ के काढ़ा (2-4 ग्राम) को चावल के धोवन के साथ सेवन करने से अर्श या पाइल्स तथा प्रदर (लिकोरिया) रोग जन्य , रक्तस्राव या ब्लीडिंग से जल्दी आराम मिलता है। कुशा का महत्व औषधी के रूप में बहुत काम आता है।

आजकल के प्रदूषित खाद्द पदार्थ के कारण किडनी में स्टोन होने के खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। कुश का सेवन पथरी को निकालने में सहायता करता है।

-5 ग्राम कुशाद्य घी का सेवन करने से अश्मरी या स्टोन टूट कर बाहर निकल जाता है।

-कुश आदि वीरतरवादि गण की औषधियों के काढ़े (10-20 मिली) तथा रस (5 मिली) आदि का सेवन करने से अश्मरी, मूत्रकृच्छ्र (मूत्र संबंधी रोग)   तथा मूत्राघात की वेदनाओं तथा वात से बीमारियों से राहत मिलती है।

मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। कुश इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है।

-शतावरी, कुश, कास, गोक्षुर, विदारीकंद, शालीधान तथा कशेरु से बने काढ़े (10-20 मिली) या हिम का सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

-कुश, कास, गुन्द्रा, इत्कट आदि दस मूत्रविरेचनीय महाकषाय की औषधियों के जड़ से बने काढ़े (10-20 मिली) का सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

-शतावरी, कास, कुश, गोक्षुर, विदारीकंद, इक्षु तथा आँवला के कल्क से सिद्ध घृत (5 ग्राम) या (200 मिली) दूध में मिश्री मिलाकर सेवन करने से पित्तज मूत्रकृच्छ्र से राहत मिलती है!

मूत्राघात में रुक-रुक कर पेशाब होता है जिसके कारण असहनीय दर्द सहना पड़ता है।  समान मात्रा में नल, कुश, कास तथा इक्षु के काढ़े (10-20 मिली) को शीतल कर उसमें मिश्री मिलाकर पीने से मूत्राघात तथा मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।महिलाओं को अक्सर योनि से सफेद पानी निकलने की समस्या होती है। सफेद पानी का स्राव अत्यधिक होने पर कमजोरी भी हो जाती है। इससे राहत पाने में कुश का सेवन फायदेमंद होता है।  चावल के धोवन से पिसे हुए कुश के जड़ का पेस्ट (2-4 ग्राम) को तीन दिन तक पीने से प्रदर रोग से राहत मिलती है।

महिलाओं के अत्यधिक ब्लीडिंग होने की समस्या से कुश निजात दिलाने  में मदद करता है। 

-सम मात्रा में बला तथा कुश के जड़ को चावल के धोवन से पीसकर 6 ग्राम पेस्ट का सेवन करने से रक्तप्रदर का शीघ्र लाभ मिलता  है।

-10-20 मिली कुश के जड़ के काढ़े में 500 मिग्रा रसांजन मिलाकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

स्तन या ब्रेस्ट के आकार को बढ़ाने में सहायक होता है कुश। कुश का सेवन इस तरह से करने पर लाभ मिलता है।  कुश, कास, गुन्द्रा, इत्कट, कत्तृण आदि स्तन्यजनन महाकषाय की दस औषधियों के जड़ का काढ़ा  बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से स्तन आकार बढ़ाने में मदद मिलती है।

कभी-कभी अल्सर का घाव सूखने में बहुत देर लगता है या फिर सूखने पर पास ही दूसरा घाव निकल आता है, ऐसे में बांस के पत्ते का सेवन बहुत ही फायदेमंद होता है।

-त्रिफला, खदिर सार, कुश के जड़ आदि का काढ़ा बनाकर व्रण या अल्सर का घाव धोने से व्रण साफ हो जाता है।

-कुश का पौधा को जलाकर प्राप्त भस्म में घी या तेल मिलाकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है!

मिर्गी के कष्ट से आराम दिलाने में कुश का पौधा मददगार साबित होता है। कास के जड़, विदारीकन्द, इक्षु की जड़ तथा कुश के जड़ के पेस्ट से सिद्ध घी (5 ग्राम) अथवा दूध (100 मिली) को पीने से अपस्मार में लाभ होता है।

आजकल के असंतुलित जीवनशैली के कारण वजन बढ़ने की समस्या आम हो गई है। कुश की जड़ आँवला का काढ़ा और साँवा के चावलों से निर्मित जूस का सेवन करने से शरीर का रूखापन तथा मोटापा कम होता है।

अगर किसी साइड इफेक्ट के कारण रक्तपित्त यानि नाक कान से अनावश्यक खून निकलने लगता है तब कुश से बना घरेलू इलाज बहुत फायदेमंद सिद्ध होता है। तृणपंचमूल (कुश, काश, नल, दर्भ, इक्षु) का काढ़ा (10-20 मिली) अथवा रस (5-10 मिली) को दूध के साथ सेवन करने से अथवा क्षीरपाक बनाकर सेवन करने से रक्तपित्त तथा मूत्र के बीमारी से जल्दी राहत मिलती है।