हाल के दिनों में प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा किए गए छापों के बारे में तो आपको पता ही होगा! सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। यह फैसला एक्ट के प्रावधानों के तहत प्रवर्तन निदेशालय को मिली शक्तियों से जुड़ा है। कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के इन प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय ने एक्ट के तहत ईडी की गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती से जुड़ी शक्तियों को कायम रखा है। कोर्ट ने साफ कहा है कि गिरफ्तारी के लिए ईडी को आधार बताना जरूरी नहीं है। इस आदेश को उन लोगों के लिए झटका माना जा रहा है जिन पर एजेंसी की जांच की तलवार लटकी हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी ईडी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ कर रही है। मनी लॉन्ड्रिंग पर अंकुश लगाने की मंशा से यह कानून बनाया गया था। इसके तहत कई नामचीन लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। आइए, यहां इस कानून के बारे में जानते हैं। साथ ही यह भी समझते हैं कि किन सेक्शंस के तहत ईडी को ‘सुपरपावर’ मिली हुई है।
मनी लॉन्ड्रिंग किसे कहते हैं?
सरल शब्दों में मनी लॉन्ड्रिंग का मतलब पैसों की हेराफेरी है। यह अवैध तरीके से कमाई गई काली कमाई को वाइट मनी में बदलने की तरकीब है। हाल में मनी लॉन्ड्रिंग शब्द बार-बार आता रहा है। देश में मनी लॉन्ड्रिंग को हवाला लेनदेन के तौर पर जाना जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मनी लॉन्ड्रिंग अवैध कमाई को छुपाने का तरीका है। इसके जरिये पैसों को इस तरह निवेश किया जाता है कि जांच एजेंसियों को स्रोत का पता न लग पाए। जो व्यक्ति पैसों की हेराफेरी करता है उसे लॉउन्डरर (Laundrer) कहते हैं। इसके जरिये काली कमाई सफेद होकर वापस असली मालिक के पास लौट आती है। इसके कई तरीके हो सकते हैं। इनमें से एक तरीका फर्जी या शेल कंपनी बनाना है। इन शेल या मुखौटा कंपनियों का अस्तित्व केवल कागजों में होता है। इन कंपनियों के जरिये ब्लैक मनी को वाइट में बदलने का खेल खेला जाता है। एक तरीका विदेश में ऐसे पैसे को जमा कराना है। यह पैसा ऐसे खातों में जमा कराया जाता है जहां जांच का अधिकार दूसरे देश की सरकार को न हो।
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 में बना था। यह कानून 2005 में अमल में आया। इसमें 3 बार संशोधन हुए। ये 2005, 2009 और 2012 में हुए। बैंकिंग रेगुलेटर आरबीआई, बाजार नियामक सेबी और बीमा नियामक इरडा को इसके दायरे में लाया गया है। लिहाजा, इस एक्ट के प्रावधान सभी वित्तीय संस्थानों, बैंकों, म्यूचुअल फंडों, बीमा कंपनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं। पीएमएलए (संशोधन) अधिनियम, 2012 ने अपराधों की सूची का दायरा बढ़ाया। इनमें धन छुपाने, अधिग्रहण और धन के आपराधिक कामों में इस्तेमाल को शामिल किया गया। इस एक्ट की अनुसूची के भाग ए, बी और सी में अपराधों का उल्लेख है।
भारतीय दंड संहिता
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज एक्ट
पुरावशेष और कला कोष अधिनियम
ट्रेडमार्क अधिनियम
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
कॉपीराइट अधिनियम
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम
भाग बी में वे अपराध हैं जो भाग ए में हैं। हालांकि, ये अपराध एक करोड़ या उससे ज्यादा मूल्य के होने चाहिए। भाग सी में सीमा पार अपराध शामिल हैं।
यह एक्ट प्रवर्तन निदेशालय को जब्ती, मुकदमा शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच और तलाशी इत्यादि की शक्ति देता है। आरोपी व्यक्ति पर जिम्मेदारी होती है कि वह अपने को निर्दोष साबित करने के लिए सबूत दे। सुप्रीम कोर्ट में कानून से जुड़े कई पहलुओं की आलोचना की गई थी। इनमें जमानत की कड़ी शर्तें, गिरफ्तारी के आधारों की सूचना न देना, ECIR (FIR जैसी) कॉपी दिए बिना व्यक्तियों की गिरफ्तारी, मनी लॉन्ड्रिंग की व्यापक परिभाषा, जांच के दौरान आरोपी की ओर से दिए गए बयान ट्रायल में बतौर सबूत मानने जैसे पहलू शामिल थे।
पीएमएल कानून का क्या हुआ है फायदा?
सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई केंद्र सरकार की दलीलों से इस सवाल का जवाब मिल जाता है। उसने बताया है कि पिछले 17 साल में पीएमएलए के तहत 98,368 करोड़ रुपये की अपराध की कमाई की पहचान कर जब्त की गई है। इस दौरान PMLA के तहत जांच के लिए 4,850 मामले उठाए गए हैं। अपराध की कमाई की कुर्की में संयुक्त राष्ट्र के नामित आतंकी हाफिज मोहम्मद सईद, आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन और ड्रग्स तस्कर इकबाल मिर्ची की संपत्ति शामिल है। आतंकवाद और नक्सल फंडिंग के 57 मामलों की जांच में 1,249 करोड़ रुपये की अपराध की आय की पहचान हुई है। 17 साल में 2,883 तलाशी हुईं। 256 संपत्तियों के जरिये 982 करोड़ रुपये की अपराध की कमाई को जब्त किया गया।सुप्रीम कोर्ट में PMLA के तहत तलाशी, गिरफ्तारी, जब्ती, जांच और कुर्की के लिए ईडी को मिली शक्तियों को चुनौती दी गई थी। इसमें कहा गया था कि ये प्रावधान मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट के आदेश के बाद ईडी को इस संदर्भ में मिली शक्तियां बनी रहेंगी।