नासा ने अपना आर्टिमिस मिशन लॉन्च कर दिया है! चांद पर पहली बार इंसान आज से लगभग 53 साल पहले गया था। 1969 में नील आर्मस्ट्रांग चांद पर पहुंचने वाले पहले इंसान थे। 1972 में कमांडर यूजीन कर्नन आखिरी इंसान थे जो चांद पर गए थे। तब से लेकर अब तक 50 साल हो गए हैं, लेकिन इंसानों के कदम चांद पर फिर नहीं पड़े। अब एक बार फिर से इंसानों को चांद पर पहुंचाने की तैयारी हो रही है। सोमवार को इंसानों को चांद पर पहुंचाने के लिए नासा आर्टिमिस मिशन से जुड़ा पहला लॉन्च करेगा। अमेरिका के फ्लोरिडा में स्थित लॉन्च पैड से ये रॉकेट उड़ान भरेगा।आर्टिमिस-1 में कोई इंसान चांद पर नहीं भेजा जाएगा। रॉकेट के जरिए ओरायन कैप्सूल को भेजा जाएगा जो एक छह फीट का अंतरिक्ष कैप्सूल है। ये कैप्सूल इंसानों को एक बार फिर चांद पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सोमवार को रॉकेट लॉन्च के लिए दो घंटे का लॉन्च विंडो होगा। लॉन्च होने के बाद ओरायन कैप्सूल चांद की ओर बढ़ेगा। अंतरिक्ष में कैप्सूल 42 दिन मिशन पर रहेगा और 10 अक्टूबर को धरती पर वापस आ आया।
आपके मन में एक सवाल होगा कि आखिर ओरायन कैप्सूल को खाली क्यों भेजा जा रहा है? दरअसल अब इंसान चांद पर सिर्फ कदम रख कर वापस नहीं आना चाहते। इंसान चाहता है कि भविष्य में चांद पर कॉलोनी बसाई जाए। आर्टिमिस मिशन के तहत जो भी अंतरिक्ष यात्री जाएंगे वह लंबे समय तक वहां रहने वाले हैं। ओरायन कैप्सूल में ही बैठ कर अंतरिक्ष यात्री चांद पर जाएंगे। अंतरिक्ष के बेहद जटिल वातावरण की जांच करने के लिए वैज्ञानिक इसे खाली भेज रहे हैं। ये एक तरह का रिहर्सल है। हालांकि ओरायन पूरी तरह खाली नहीं होगा इसमें छह नए किस्म के स्पेससूट होंगे जिससे ये पता चलेगा कि वह रेडिएशन लेवल से बचा रहे हैं या नहीं। इसके साथ ही एक खिलौना होगा जो जीरो ग्रेविटी को दिखाएगा।
धरती की कक्षा से निकलने के बाद ओरायन का अपना रॉकेट सिस्टम होगा जिससे वह चांद तक पहुंचेगा। चांद के चारों ओर वह अंडाकार आकृति में चक्कर लगाएगा। मिशन पूरा होने पर वह फिर इसी रॉकेट से पृथ्वी की ओर बढ़ेगा। धरती की कक्षा में प्रवेश करने पर इसकी स्पीड 39,400 किमी प्रति घंटे होगी, जिसे कम करने के लिए 11 पैराशूट का इस्तेमाल होगा। बाद में ओरायन प्रशांत महासागर में लैंड करेगा।रॉकेट को जमीन से उठने और कक्षा से बाहर जाने में 3 मिनट 40 सेकंड लगेंगे।
हर मिनट 4 लाख 9 हजार लीटर तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन जलेंगे जो रॉकेट को ताकत देंगे।ओरायन का रॉकेट 98 मीटर लंबा है, जो स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से थोड़ा ज्यादा है।रॉकेट के दो बूस्टर पृथ्वी के गुरुत्व से निकलने के दो मिनट बाद ही अलग हो जाएंगे।
रॉकेट से 40 लाख किग्रा का थ्रस्ट पैदा होगा, जो इसे धरती से बाहर निकालेगा।मिशन लगभग छह हफ्ते तक चलेगा।धरती से 3860 किमी ऊपर जाने के बाद ओरायन पूरी तरह स्वतंत्र हो जाएगा।आर्टिमिस-1 मिशन में कुल 21 लाख किमी की दूरी तय होगी। इसमें पृथ्वी और धरती की दूरी, ओरायन का चांद का चक्कर भी जुड़ा है।ओरायन पृथ्वी से चांद तक 450,600 किमी की दूरी तय करेगा।
ये संयोग नहीं है कि 50 साल बाद आर्टिमिस मिशन का नाम ग्रीक माइथोलॉजी में अपोलो की जुड़वा बहनों के नाम पर रखा गया है।आपके मन में एक सवाल होगा कि आखिर ओरायन कैप्सूल को खाली क्यों भेजा जा रहा है? दरअसल अब इंसान चांद पर सिर्फ कदम रख कर वापस नहीं आना चाहते। इंसान चाहता है कि भविष्य में चांद पर कॉलोनी बसाई जाए। आर्टिमिस मिशन के तहत जो भी अंतरिक्ष यात्री जाएंगे वह लंबे समय तक वहां रहने वाले हैं। ओरायन कैप्सूल में ही बैठ कर अंतरिक्ष यात्री चांद पर जाएंगे।
अंतरिक्ष के बेहद जटिल वातावरण की जांच करने के लिए वैज्ञानिक इसे खाली भेज रहे हैं। ये एक तरह का रिहर्सल है। हालांकि ओरायन पूरी तरह खाली नहीं होगा इसमें छह नए किस्म के स्पेससूट होंगे जिससे ये पता चलेगा कि वह रेडिएशन लेवल से बचा रहे हैं या नहीं। इसके साथ ही एक खिलौना होगा जो जीरो ग्रेविटी को दिखाएगा। 1972 में चांद के लिए आखिरी अपोलो मिशन गया था। आर्टेमिस कार्यक्रम का लक्ष्य चंद्रमा पर अलग-अलग अंतरिक्ष यात्रियों को पहुंचाना है। इसके साथ ही इस मिशन के जरिए पहली बार नासा चांद के अंधेरे हिस्से को एक्सप्लोर करना चाहता है। इस मिशन के साथ मंगल ग्रह भी जुड़ा है। दरअसल सौर मंडल में इंसानों का असली टार्गेट मंगल ग्रह है। लेकिन उस तक पहुंचने से पहले वैज्ञानिक चांद के जरिए अनुभव लेना चाहते हैं। ताकि उन्हें दिक्कतों और आने वाली मुश्किलों का पता रहे।