हमारे वैदिक विज्ञान में सभी औषधियां एवं दवाइयों का वर्णन बखूबी किया जाता है! आमतौर पर रामदाना को राजगिरा भी कहा जाता है। इसका सेवन अक्सर पूजा के समय उपवास करने पर किया जाता है। व्रत में राजगिरी के आटे का परांठा या हलवा बनाकर खाया जाता है। नवरात्री के समय रामदाने का लड्डू भी बनाकर खाया जाता है। रामदाना पौष्टिकारक होने के कारण इसके अनगिनत फायदे हैं, इसलिए उपवास के समय ज्यादातर इसका सेवन किया जाता है। राजगिरा चौलाई के दानों से बनाया जाता है, इसलिए कहीं-कहीं इसको चौलाई का बीज भी कहा जाता है। रामदाना को अनाज नहीं माना जाता है इसलिए व्रत के दौरान खाया जाता है।रामदाना या राजगिरा अमरांथ या चौलाई का बीज होता है। ये चौलाई हरी नहीं बल्कि लाल होती है। लाल चौलाई को लाल साग या लाल भाजी भी कहा जाता है। लाल चौलाई में आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाती है। रामदाना उपवास के समय बहुत ही पौष्टिक फलाहार होता है। राजगिरा शाकाहारी लोगों के लिये प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत बन सकता है। प्राचीन युग में किसान या गरीब इसको खाकर शरीर में पौष्टिकता की कमी और ऊर्जा को पूरा करते थे। इसलिए वे राजगिरा को भगवान का दान मानते थे और इसी संदर्भ में इसका नाम रामदाना रख दिया गया।
रामदाना का पौधा सीधा, लगभग 1.5 मी ऊँचा, तनायुक्त पौधा होता है। इसके पत्ते चारो ओर से कोण-अण्डाकार होते हैं। इसके फूल गुलाबी रंग के, एकलिङ्गी होते हैं। इसके फल के बीज छोटे, अर्धगोलाकार, पीले-सफेद रंग के होते हैं। इसकी दो किस्में लाल और हरे रंग की होती हैं। रामदाना अगस्त से सितम्बर महीने में फलता-फूलता है।
रामदाना का पञ्चाङ्ग मूत्र अगर कम हो रहा है या रूक-रूक कर हो रहा है (मूत्रल) तो इसको बढ़ाने में मदद करता है। राजगिरा का तना मलत्याग करने के प्रक्रिया को आसान (विरेचक गुण) बनाने में मदद करता है। यहां तक कि राजगिरा का पत्ता भी मूत्रल और विरेचक गुण या पेट से मल निकलाने में मदद करता है। और इसका बीज मूत्रल गुणों वाला और पोषकता से भरपूर होता है।
तपेदिक होने पर बैक्टिरीया गर्दन के लिम्फ नोड्स को संक्रमित करता है जिसके कारण वह सूज जाता है। रामदाना पञ्चाङ्ग को पीसकर गण्डमाला यानि लिम्फ नॉड में लेप करने से सूजन कम होती है।
अक्सर किसी बीमारी के कारण या कमजोरी में कारण छाती में बेचैनी होती है या सांस लेने में परेशानी होती है तो इसको वक्षगत विकार कहते हैं। रामदाना के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से वक्षोगत विकारों या सीने में बैचैनी से राहत मिलती है।
खाने-पीने में असंतुलन होने पर कब्ज या विबन्ध की परेशानी होती है। कब्ज से राहत पाने में रामदाना के पत्ते काफी फायदेमंद हो सकते हैं। रामदाना पत्तों का शाक बनाकर सेवन करने से मल नरम होता है जिसके कारण विबन्ध या कब्ज से राहत मिलती है।
आजकल के असंतुलित खान-पान और कम सक्रियाशील जीवनशैली के कारण कब्ज होता है जो पाइल्स या बवासीर होने के मूल वजह बन रहा है। इसके लिए रामदाना का 5-10 ग्राम पञ्चाङ्ग चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से अर्श या पाइल्स की परेशानी से राहत मिलती है!
मूत्र रोग यानि मूत्र में जलन या दर्द, धीरे-धीरे मूत्र होना या सामान्य मात्रा से कम मूत्र होना आदि अनेक तरह की समस्याएं होती हैं। रामदाना का सेवन इस बीमारी में लाभकारी होता है। रामदाना पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर 20-30 मिली मात्रा में पीने से मूत्रकृच्छ्र में आराम मिलता है।
महिलाओं में यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन की बीमारी सबसे ज्यादा होती है। इस बीमारी में मूत्र करते समय दर्द व जलन होती है। रामदाना का इस तरह से सेवन करने पर इस बीमारी से राहत मिल सकती है। 5-10 मिली रामदाना के पत्ते के रस का सेवन करने से मूत्रदाह से राहत मिलती है।
हर बीमारी के लिए रामदाना का सेवन और इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, इसके बारे में पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए रामदाना का सेवन या प्रयोग कर रहें हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्शानुसार
-5-10 ग्राम – रामदाना की जड़।
-5-10 ग्राम- पञ्चाङ्ग चूर्ण।
-5-10 मिली -रस का सेवन कर सकते हैं।
रामदाना विश्व में उष्ण कटिबंधीय अफ्रिका एवं अन्य गर्म देशों में पाया जाता है। हिमालय में यह 3000 मी तक की ऊँचाई पर पाया जाता है तथा समस्त भारत में इसकी कृषि की जाती है। इसका पौधा चौलाई के जैसा होता है। इसके बीजों से कई तरह के खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं।