कई सारी लताओं, पेड़ – पौधों को औषधीय रूप माना जाता है! सारिवा एक प्रकार की लता है। यह पेड़ों के ऊपर फैलती है। यह वर्षा ऋतु में हरी-भरी होती है। वर्षा की पहली बौछार से ही इसकी जड़ से नए अंकुरण होने लगते हैं। सारिवा का इस्तेमाल त्वचा और खून आदि के विकारों को दूर करने में काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा कई तरह के रोगों के इलाज के लिए सारिवा का प्रयोग किया जाता है।सारिवा दमा, खांसी, बुखार आदि रोगों में काम आती है। इसकी जड़ बल बढाने वाली तथा कामोत्तेजक भी होती है। इसकी जड़ का उपयोग कमजोर पाचन, भूख न लगना, त्रिदोष (वात-पित्त-कफ), ल्यूकोरिया तथा दस्त आदि के उपचार के लिए भी किया जाता है। कई स्थानों पर सारिवा के स्थान पर Lonicara japonica का प्रयोग भी किया जाता है।इसकी लताएं लम्बी और पतली होती हैं तथा ज्यादातर जमीन पर फैलती हैं। ये नीचे से ऊपर की ओर जाती हैं। ये लताएं रसीली और चिकनी होती हैं। इसकी शाखाएँ लम्बी, चिकनी तथा पतली होती हैं। शाखाओं की संख्या अधिक होती है। लताओं का रंग हरी छाया लिए हुए भूरे रंग का होता है। कभी इन लताओं पर स्पष्ट रोएँ होते हैं तो कभी नहीं भी होते हैं। इसकी जड़ 30 सेमी लम्बी और 3-6 मिमी मोटी होती हैं। जड गोलाकार, कठोर एवं चारों ओर सफ़ेद रंग की होती हैं। जड़ की त्वचा भूरे रंग की होती है जिसकी चौड़ाई में दरार देखने को मिलती है। जड़ की लम्बाई में धारियाँ बनी होती है।
कृष्ण सारिवा को जड़ रूप से कुटज कुल की वनस्पति माना जाता है। इसकी पत्तियां छोटी और अंडाकार तथा लम्बाई में गोल होती हैं। इसकी जड़ में सुंध नही होती।
यह अर्क कुल की वनस्पति है। इसकी पत्तियां जामुन की पत्तियों जैसी, चमकीले हरे रंग की होती हैं और तोड़ने पर दूधिया द्रव निकलता है।शैलपुत्री सारिवा की लताएं लम्बी, चिकनी और झाड़ीदार होती हैं। यह नीचे से ऊपर चढ़ती हैं। इसकी शाखाएं बहुत फैली हुई, पतली तथा कठोर होती है। इसके पत्ते अण्डाकार, चिकने, चमकीले तथा मोटी छाल वाले होते है। इसके फूल सफेद रंग के होते है। इसके फल भाला के आकार के, लम्बे, तथा पतले होते हैं. ये पत्ते आगे की और से नुकीले तथा आधार पर मोटे होते हैं।
सभी प्रकार की सारिवा का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। शैलपुत्री सारिवा का प्रयोग दक्षिण भारत में अधिक देखने को मिलता है। बाकि तीनों ही प्रजातियों का प्रयोग भारत में हर जगह किया जाता है!
सिर के बाल खो चुके लोगों के लिए सारिवा वरदान है। इसकी जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से गंजेपन में लाभ होता है। इस चूर्ण को जल के साथ लिया जाना चाहिए।
डैंडरफ से परेशान लोग मण्डूर, कमल, सारिवा, भृंगराज तथा त्रिफला को तेल में पका लें। इस तैल पाक से सर की मालिश करें। ऐसा करने से डैंडरफ दूर होता है।
सारिवा की जड़ को बासी पानी में घिसकर आँखों में लगाने से आंख की फूली कट जाती है।
इसके पत्तों की राख को कपड़े में छान लें। इसे शहद के साथ मिला लें। इस मिश्रण को आँखों में लगाने से भी से फूली कट जाती है।
सारिवा के ताजे मुलायम पत्तों को तोड़ने से दूध जैसा द्रव्य निकलता है। इस दूध में शहद मिला लें। इस मिश्रण को भी आंखों में लगाने से आँखों की बीमारी में बहुत लाभ होता है और फूली कट जाती है।
सारिवा के काढ़ा से आंखों को धोने से या काढ़ा में मधु मिलाकर लगाने से आँखों के विभिन्न रोगों में लाभ होता है।
यदि मासिक धर्म चक्र में अनियमितता हो या ऐसी कोई अन्य समस्या हो तो सारिवा के काढ़ा में मधु मिला लें। इसे 15-30 मिली की मात्रा में पीने से इन समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
दांतों में दर्द हो या दांतों में कीड़े लगते हों तो सारिवा के पत्तों को पीसकर दांतों के नीचे दबा लें। ऐसा करने से दांतों की परेशानियां खत्म होती हैं।दमा और वात के कारण हुई अन्य बीमारियों के उपचार के लिए सारिवा एक उत्तम औषधि है। दमा के इलाज के लिए सारिवा की जड़ और अडूसा के पत्ते के 4-4 ग्राम चूर्ण को मिला लें। इस मिश्रण में 2-4 ग्राम मात्रा में दूध मिलाएं। इस तरह तैयार मिश्रण का सुबह और शाम प्रयोग करने से लाभ होता है।
पेट दर्द की हालत में सारिवा की 2-3 ग्राम जड़ को पानी में घोल लें। इस घोल को पीने से पीने से पेट का दर्द शांत हो जाता है। पाचन की गति धीमी (मन्दाग्नि) हो तो सारिवा की जड़ के 3 ग्राम चूर्ण को सुबह और शाम दूध के साथ सेवन करें। ऐसा करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है और पाचन-क्रिया तेज होती है।
सारिवा की जड़ की छाल के 2 ग्राम चूर्ण और 11 नग काली मिर्च को 25 मिली जल के साथ पीस लें। इस मिश्रण को सात दिन तक लगातार पिलाने से आँखों एवं शरीर का पीलापन दूर हो जाता है। इससे पीलिया के कारण भूख न लगने और बुखार आने की समस्या भी दूर हो जाती है।