पेशाब कांड का मुख्य आरोपी शंकर मिश्रा बड़ा आरोपी नहीं माना जा रहा है! पिछले दिनों एयर इंडिया की फ्लाइट में पेशाब मामला काफी चर्चा में रहा। देशभर में इसे लेकर डिबेट हुई। लोगों ने सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रिया जताई। सुप्रीम कोर्ट को भी इस मामले में दखल देनी पड़ी। लेकिन क्या इस मामले के आरोपी शंकर मिश्रा इतने बड़े अपराधी हो गए कि हर कोई उन्हें जज कर रहा है। शर्म एक ऐसा तेजाब है, जो इंसान को परिभाषित करने वाले सबसे बुनियादी तत्वों में से एक ‘गरिमा’ को नष्ट कर देता है। शर्म की बात किसी व्यक्ति के आत्म-मूल्यों पर असर डाल सकती है, क्यों कि ये किसी गलत काम के बाद व्यक्ति के चरित्र पर सवाल खड़ा कर देती है। शर्म इंसान के सभी कामों और उसके व्यवहार से संबंधित है। किसी को बेइज्जत करने का मतलब है कि उस व्यक्ति में कोई कमी है, वो व्यक्ति उस इज्जत के लायक नहीं है, जो इंसान एक-दूसरे को देते हैं। इसलिए ये कोई चौंकने वाली बात नहीं है कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार संविधान के आर्टिकल-21 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों में से एक है।
यही वजह है कि नवंबर में एक इंटरनेशनल फ्लाइट में एक नशे में धुत शख्स द्वारा सह-यात्री पर कथित रूप से पेशाब करने का मामला परेशान करने वाला है। ये मामला हमारे समाज में शर्मनाक बातों की एक केस स्टडी गै। 21 वीं सदी का लोकतंत्र जहां सभी को कुछ बुनियादी अधिकार हैं, भले ही उन्होंने कुछ किया हो या नहीं। लेकिन इस तरह की शर्मनाक के लिए अलग से कोई कानून नहीं है।
इस मामले के तथ्यों पर गौर किया जाए तो कॉर्पोरेट में जॉब करने वाले शंकर मिश्रा नाम के शख्स पर एयर इंडिया फ्लाइट के दौरान महिला यात्री पर पेशाब करने का आरोप लगा। करीब एक महीने बाद जब यह खबर फैली, तो सोशल मीडिया और कई टीवी चैनलों ने मिश्रा के ऐसे पता लगाया, जैसे वो कोई फरार हाई-प्रोफाइल क्रिमनल हो, जिसे इंटरपोल ने पकड़ लिया हो। जैसे वो किसी सिंडिकेट क्राइम का मास्टरमांइड हो, जिसने जानबूझ कर लोगों के ऊपर पेशाब किया और अब गिरफ्तार होने से बच रहा है। जैसे वो पेशाब की दुनिया का वीरप्पन हो।
मिश्रा की शर्मिंदगी इतनी ज्यादा थी कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देनी पड़ी। एयर इंडिया के इस मामले में टीवी चैनलों पर जिन नामों से आरोपी मिश्रा को बुलाया गया उन्हें गौर से देखें। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने हाल के दिनों में बढ़ रहे हेट स्पीच से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि वो एक अंडर ट्रायल है। आपको एक व्यक्ति के साथ मानवीय गरिमा के साथ व्यवहार करना चाहिए।
इस मामले से बचने के लिए मिश्रा ने अपने शुरुआती बयान पर पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया और अपने बचाव के लिए शर्म का इस्तेमाल किया। उनके वकीलों ने दावा किया कि मिश्रा ने कभी किसी पर पेशाब नहीं किया। कथक डांसर महिला ने खुद अपने ऊपर पेशाब किया। वकील ने दावा किया कि ज्यादातर वृद्ध कथक डांसर असंयम से पीड़ित हैं। इस बयान के बाद मिश्रा के साथ-साथ उनके बयान को भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। इसके बाद इस मामले में देशभर में ऐसे चर्चा होने लगी, जैसे ये भविष्य के भारत के लिए एक जरूरी बहस हो। इन सब ड्रामों में बस एक ही राहत की बात रही कि महिला का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया।
ऐसा लगता है कि कई लोग यह भूल गए हैं कि मिश्रा ने जो अपराध किया है, उसके लिए वह लंबे समय तक जेल में नहीं रहेंगे। लेकिन उसके परिवार और उसे अगले कई सालों तक पेशाब मामले के लिए लोगों की बदसलूकी का सामना करना पड़ेगा। इंटरनेट की दुनिया इसी तरह काम करती है। यह आपको भूलने नहीं देता। हर बार जब कोई ‘शंकर मिश्रा’ को गूगल करेगा, तो स्क्रीन पर पेशाब मामला की खबरें खुल कर आ जाती हैं। हमारे लिए तो ये कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन ,सोचिए कि ये सब उस आदमी पर कितना बड़ा बोझ बनकर रह जाएगा।
ऐसी स्थिति पैदा करना भी गलत है जहां एक व्यक्ति को उन लोगों के बीच रहने के लिए मजबूर किया जाता है जो उसे तिरस्कार की वस्तु के रूप में देखते हैं। ये बात सही है कि हम ऐसे इंसान के प्रति अच्छा व्यवहार नहीं रखते, जो ऐसी गलती करता है, लेकिन वो एक पेशेवर अपराधी के समान नहीं हो सकता है।
इसका मतलब शराब के नशे में पेशाब करने को माफ करना नहीं है। इसमें कोई शक नहीं है कि उसकी हरकत विरोध करने वाली ही है। पीड़ित महिला को आरोपी के खिलाफ सख्त से सख्त सजा की मांग करने का भी पूरा अधिकार है। लेकिन हमारी मंशा उन लोगों को शर्मिंदा करना है, जो बड़े-बड़े पदों पर बैठकर दूसरों को जज करते हैं। जैसे वो कितने दूध के धुले हों।
ये याद रखें कि सार्वजनिक सजा देने का काम मध्यकाल में होता था, जब किसी अपराधी को सामाजिक मानदंड की अवहेलना करने के लिए भीड़ भरी सड़कों से घसीटा जाता है और आम लोग उस पर पत्थर और गंदगी फेंकते। इसके बाद शहर के चौक में उसे कोड़े मारे जाते थे। सजा कोड़े मारने की शारीरिक पीड़ा के साथ समाप्त नहीं होती थी। इसका गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता था। लेकिन 21वीं सदी के लोकतंत्र में किसी के साथ इस तरह का व्यवहार करने के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, खासकर जब आप मानते हैं कि आज सबसे जघन्य अपराधों के दोषी को भी बुनियादी सम्मान दिया जाता है।