वैदिक शास्त्र में औषधियो और दवाइयों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी मानी जाती है! आप जानते हैं तगर क्या है? नहीं ना! तगर की लकड़ी में बहुत सुगंध होता है। इससे तेल भी निकाला जाता है। वास्तव में यह एक जड़ी-बूटी है, जिसके अंदर बहुत सारे गुण होते हैं। सदियों से सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी तगर का इस्तेमाल एक औषधि के रूप में किया जा रहा है। तगर का प्रयोग कर आयुर्वेदाचार्य लोगों की बीमारियों का इलाज करते रहे हैं।
आयुर्वेदीय गुणों की बात करें तो आप तगर के उपयोग से दर्द को ठीक करने, भूख को बढ़ाने, श्वसनतंत्र विकार को ठीक करने, मूत्र रोग, कफ विकार, लिवर, ह्रदय और कुष्ठ रोग आदि में लाभ पा सकते हैं। इसके अलावा भी तगर के अन्य बहुत फायदे हैं। आइए इसके बारे में जानते हैं।
तगर का सुखाया हुआ तना या गांठदार टेढा-मेढ़ा जड़ बाजारों में सुगन्ध बाला के नाम से बेचा जाता है। अपने अवसादक प्रभाव के कारण हिस्टीरिया एवं स्त्रियों में पेट की गैस एवं मासिक धर्म की विकृति जैसे विकारों में तगर का प्रयोग बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। कई प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में तगर का जिक्र मिलता है।
इसका पौधा कई वर्षों तक जीवित रहने वाला होता है। इसके नये पौधों के पत्ते गोलाकार और तोड़ा कंगूरेदार होते हैं। इसके पौधे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, उनके पत्तों का आकार छोटा होता जाता है।
इसके फल प्रायः रोमयुक्त और आयताकार होते हैं। इसकी जड़ मोटी और जमीन में नीचे तक धंसी हुई होती है तथा मोटे तन्तुओं से युक्त होती है। तगर के पौधों में फूल के आने का समय जून से जुलाई तक तथा फल का काल सितम्बर से अक्टूबर तक होता है।
कई लोगों को नींद न आने की परेशानी रहती है। ऐसे लोग तगर का उपयोग कर लाभ पा सकते हैं। तगर के 1-3 ग्राम चूर्ण या 30-40 मिली काढ़ा का सेवन करें। इससे नींद ना आने की परेशानी ठीक होती है।दिमागी बीमारी जैसे मस्तिष्क का संतुलित ढंग से काम नहीं करना। आम भाषा में इसे पागलपन भी कह सकते हैं। इसमें तगर का उपयोग करना लाभ पहुंचाता है। 500 मिग्रा तगर के चूर्ण को दिन में 2 या 3 बार शहद के साथ दें। इससे दिमागी बीमारी ठीक होती है।
गले के रोग में भी तगर का उपयोग लाभ देता है। 1 ग्राम तगर के चूर्ण में 65 मिग्रा यशद भस्म मिलाएं। इसे देने से गले के रोगों में लाभ होता है।आंखों के रोग जैसा आंख में दर्द होने पर आप तगर का इस्तेमाल कर सकते हैं। तगर के पत्तों को पीसकर आंखों के बाहर चारो तरफ लेप के रूप में लगाएं। इससे आंखों में होने वाला दर्द बंद हो जाता है।
अगर आप तगर को हरीतकी के रस में पीसकर काजल की तरह आंखों में लगाएंगे तो इससे भी आंखों के रोगों में लाभ होता है।
मूत्र रोग में 1-2 ग्राम तगर के चूर्ण को चीनी के साथ मिलाएं। इसका सेवन करने से मूत्र विकारों में फायदा होता है।महिलाएं मासिक धर्म से जुड़े विकार जैसे मासिक धर्म का नियमित रूप से ना आना। इसमें महिलाएं तगर का प्रयोग कर सकती हैं। तगर के 1-3 ग्राम चूर्ण या 30-40 मिली काढ़ा का सेवन करें। इससे मासिक धर्म नियमित रूप से होता है। यह ल्यूकोरिया में भी फायदेमंद है।तगर, बड़ी कटेरी, सेंधा नमक तथा देवदारु का काढ़ा बनाएं। इसमें तिल का तेल मिलाएं और इसे पका लें। इस तेल में रूई का फाहा भिगोकर योनि में रखने से योनि का दर्द ठीक हो जाता है।
मधुमेह के मरीज तगर का उपयोग कर बहुत लाभ ले सकते हैं। तगर के 1-3 ग्राम चूर्ण या 30-40 मिली काढ़ा का सेवन करना मधुमेह में भी लाभकारी होता है।पुराने घावों और फोड़ों पर तगर को पीसकर लेप करना चाहिए। इससे घाव जल्दी भर जाता है साथ ही घाव बढ़ता नहीं है।तगर का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में पिएं। इससे हिस्टीरिया में लाभ होता है।500 मिग्रा तगर के चूर्ण को दिन में 2 या 3 बार शहद के साथ दें। इससे हिस्टीरिया ठीक होती है।
प्रलाप एक तरह का मानसिक रोग है। इस रोग में व्यक्ति दिमागी रूप से कमजोर हो जाता है। रोगी को अपने आस-पास होनी वाली घटनाओं की समझ नहीं रहती और मरीज अपनी मानसिक उलझणों में बहुत ही अधिक उलझा रहता है। इस रोग में तगर का प्रयोग कर आप लाभ ले सकते हैं।
तगर के साथ बराबर मात्रा में अश्वगन्धा, पित्तपापड़ा, शंखपुष्पी, देवदारु, कुटकी, ब्राह्मी, निर्गुण्डी, नागरमोथा, अमलतास, छोटी हरड़ तथा मुनक्का लें। सबको मिलाकर कुट लें। इसका काढ़ा बना लें। इस काढ़ा को 10-20 मिली की मात्रा में सेवन करें। इससे प्रलाप या डलीरियम जैसी बीमारी में लाभ होता है।