Friday, September 20, 2024
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आखिर क्या है नांदेड़ के अस्पताल की घटना?

आज हम आपको नांदेड़ के अस्पताल की घटना बताने जा रहे हैं! उस अस्पताल में नन्हें-नन्हें मासूम भर्ती थे। माता-पिता ने सोचा था अस्पताल ले जाएंगे तो जल्दी ठीक हो जाएंगे, लेकिन नहीं बचें। उसी अस्पताल में एक बेटा भी अपने पिता को लेकर आया था, अच्छे इलाज के लिए, उसके पिता की भी मौत हो गई। वहीं अस्पताल में बैठा एक पति भी अपनी पत्नी के जल्दी ठीक होने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन वो महिला भी नहीं बच पाई। ऐसे एक दो नहीं 31 परिवार अपनों की मौत पर आंसू बहा रहे हैं। इन सबको नहीं पता था कि ये अपनों को अस्पताल नहीं सीधा श्मशान ले आए हैं, जहां एक के बाद एक मौत हो रही हैं। महाराष्ट्र के नांदेड़ का सरकारी अस्पताल मुर्दाघर बन चुका है। जहां पिछले 48 घंटे में 31 लोगों की जान जा चुकी है। 16 मासूम बच्चे भी इनमें शामिल हैं। करीब दो दिन मौत का सिलसिला शुरू हुआ जो कि अब थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अस्पताल में भर्ती अलग-अलग लोगों की एक के बाद एक मौत हो रही है। पहले 24 घंटे मेंं 24 लोगों की मौत हुई थी जिसमें 12 बच्चे भी थे, लेकिन अब यहीं आंकड़ा बढ़कर 31 पहुंच गया है। आखिर क्या वजह है कि अस्पताल में एक के बाद एक मौत हो रही हैं?

 जैसे ही अस्पताल से मौत की खबरें आने लगी हड़कंप मच गया। इस सरकारी अस्पताल में गूंज रही चीख-पुकारों राजनीतिक गलियारों तक भी पहुंची तो अस्पताल प्रशासन की नींद भी उड़ी। अस्पताल में मौत की जांच के लिए कमेटी बनाई गई, लेकिन जो खबरें सामने आ रही हैं वो बेहद चौंकाने वाली हैं। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक अस्पताल में हुई मौत कोई अनजाने में नहीं हुई, ये मौतें तो होनी ही थीं। दरअसल अस्पताल में मौजूद मरीजों के लिए दवाइयां ही मौजूद नहीं है।

खबरों के मुताबिक हाफकिन प्रशिक्षण, अनुसंधान एवं परीक्षण संस्थान ने दवाओं की खरीद बंद कर दी है. इस कारण राज्यभर के सरकारी अस्पतालों में दवाओं की भारी कमी हो गई है और इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है आम लोगों को अपनी जान देकर। अस्पताल में लोग अपने मरीजों को लेकर आ रहे हैं इलाज के लिए, लेकिन इलाज तो तब हो न जब दवाएं हों। नांदेड़ अस्पताल के एक डॉक्टर ने भी खुद ये बात बताई कि दवाई न होने की वजह से हमें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

सोचिए ये कैसा सरकारी अस्पताल है जहां दवाइयां तक नहीं है। लोग ये सोचकर अस्पताल आ रहे हैं कि उन्हें इलाज मिलेगा, लेकिन अस्पताल प्रशासन पहले से ही ये जानते हुए कि दवा नहीं है चुप है। क्या प्रशासन इंतजार कर रहा था होने वाली मौतों का। ये तो साफ है कि अगर दवाइयां नहीं होंगी तो मौते तो होंगी है। यहां जिन लोगों की मौत हुई हैं उनमें कई ऐसे भी थे जिन्हें सांप ने काटा हुआ तो कइयों को ऐसी बीमारियां थी जिसके लिए तुरंत दवा की जरूरत थी, लेकिन ये सब लोग प्रशासन और सरकारी की लापरवाही का शिकार बन गए। अगर वाकई दवा की खरीदारी न होना इन मौतों की वजह है तो न जाने और कितने अस्पताल ऐसे ही मुर्दाघर बन जाएंगे, न जाने कितने ही परिवार अपनों को खोएंगे। बता दें कि नांदेड़ के डॉ. शंकरराव चव्हाण सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 48 घंटे से भी कम समय में 31 मरीजों की मौत हो गई है। सोमवार तक मरने वालों की संख्या 24 थी जबकि बीती रात सात और मरीजों की मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, कुल 31 मृतकों में से 16 शिशु हैं। 

इससे पहले 24 मौतों की सूचना पर महाराष्ट्र के चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग के निदेशक डॉ. दिलीप म्हैसेकर ने बताया था कि मरीज कुछ स्थानीय निजी अस्पतालों से यहां भेजे गए थे। इनमें से जान गंवाने वाले कुछ मरीज वयस्क थे, जिनकी विभिन्न कारणों से मौत हुई।अस्पताल के डीन से मिली जानकारी का हवाला देते हुए म्हैसेकर ने कहा कि जिन लोगों की मौत हुई है, उनमें से कुछ नवजात थे और कुछ गर्भवती महिलाएं थीं। अन्य 70 मरीजों की हालत गंभीर है। कुछ लोगों की मौत अज्ञात जहर संबंधी कारण से हुई है। वहीं, मेडिकल कॉलेज नांदेड़ के डीन श्यामराव वाकोडे ने बताया था कि मृतक बच्चे अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित थे। वयस्कों में 70-80 वर्ष की आयु के कुछ मरीज थे जिन्हें मधुमेह, लीवर और गुर्दे की समस्याएं थीं। मरीज आमतौर पर गंभीर स्थिति में यहां आते हैं। दवाओं या डॉक्टरों की कोई कमी नहीं थी।

 

 

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