उत्तराखंड के हल्द्वानी में गफूर बस्ती का मुद्दा अब और भी गहरा गया है! उत्तराखंड के हल्द्वानी में गफूर बस्ती का मुद्दा अब और भी गहराता जा रहा है। शाहीन बाग की तर्ज पर ही यहां महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया गया है। जमकर विरोध प्रदर्शन हो रहा है और सड़कों पर उतर कर लोग सरकार से उन्हें बेघर न करने की मांग कर रहे हैं। प्रशासन का कहना है कि यह जमीन रेलवे की है और इस पर अवैध कब्जा कर गफूर बस्ती को बसाया गया है। इस अतिक्रमण को हटाने के लिए हाईकोर्ट से आदेश आने के बाद यहां बस्तीवासी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी प्रशासन पर आरोप लगा रहे हैं कि कड़ाके की सर्दी के बीच उन्हें बेघर किया जा रहा है। इनकी मांग है कि प्रशासन अतिक्रमण हटाने से पहले उनका विस्थापन करके कहीं और बसाए। फिलहाल, प्रशासन ने 10 जनवरी तक के लिए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई रोक दी है। प्रशासन का कहना है कि रेलवे की जमीन पर लगभग 4500 परिवारों ने अतिक्रमण कर रखा है। अब जब गफूर बस्ती से यह अतिक्रमण हटाया जा रहा है तो ये लोग बेघर होने की दुहाई दे रहे हैं। सड़कों पर उतर कर धरना दे रहे हैं, दुआएं कर रहे हैं।’ यह पूरा घटनाक्रम सोशल मीडिया पर भी जोरशोर से चलाया जा रहा है। इसकी वजह से तनाव का माहौल बन रहा है। इनमें ज्यादातर वीडियो में लड़कियों को पढ़ाई से वंचित किए जाने और महिलाओं को बेघर होने की दुहाई देते सुना जा सकता है।हाईकोर्ट के आदेश पर जिला प्रशासन ने पिछले दिन कुछ जगह अतिक्रमण हटाया था। लेकिन अब भारी विरोध को देखते हुए अभियान को रोक दिया। अब 10 जनवरी से भारी पुलिस बल के साथ अतिक्रमण हटाया जाएगा।
27 दिसम्बर 2022 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में स्थित गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश जारी किए थे। एक सप्ताह के भीतर यह अतिक्रमण हटाने की समयावधि भी निर्धारित की थी। साथ ही वनभूलपुरा के लोगों को लाइसेंसी हथियार भी जमा कराने को कहा गया है। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट भी रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण को ले कर चिंता जताते हुए इसे जल्द से जल्द खाली करवाने के आदेश दे चुका है।
दावा किया जा रहा है कि क्षेत्र में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे की शुरुआत साल 1975 से हुई थी। इस जमीन पर कब्जा करने के लिए पहले यहां कच्ची झुग्गियां बनाई गईं थी जिन्हें बाद में पक्के मकान में तब्दील कर दिया गया। इसी तरह से धीरे-धीरे इबादतगाहों और अस्पतालों के रूप में अवैध कब्जे किए गए। लेकिन जब ये कब्जे हो रहे थे तब रेलवे प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया। जब जम कर कब्जे हो गये तो वर्ष 2016 में नैनीताल हाईकोर्ट से सख्ती के बाद रेलवे सुरक्षा बल ने अवैध कब्जेदारों के खिलाफ केस दर्ज कराया लेकिन तब तक हजारों लोग अवैध तौर पर वहां बस चुके थे।
वर्ष 2016 में नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के चलते यहां कब्जा कर जमे लोगों ने मुकदमा लड़ा लेकिन वे कोर्ट में कब्जे को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं दे पाए। डेढ़ दशक पहले भी अवैध कब्जेदारों के खिलाफ अभियान चलाया गया था। उस समय भारी फ़ोर्स तैनात कर कुछ हिस्से से अतिक्रमण हटवाया गया था। बताया जा रहा है कि इस दौरान कुछ कब्जेदारों के घरों के नीचे रेलवे लाइनें भी निकली थीं। हालांकि भारी विरोध के चलते तब यह अभियान शांत हो गया था। और जो जगह खाली करवायी गई थी वहां फिर से कब्जे हो गये।
गफूर बस्ती में अवैध कब्जे हटाने के विरोध में जहां समुदाय विशेष के लोग सड़कों पर उतर आए हैं वहीं विपक्ष कांग्रेस भी इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पहले जहां दिवंगत कांग्रेस नेत्री इंदिरा हृदयेश ने इन कब्जेदारों का साथ दिया था वहीं अब उनकी विरासत संभाल रहे उनके बेटे सुमित हृदयेश भी इस मामले में कब्जेदारों के साथ खड़े हैं।
क्षेत्र में अवैध कब्जों को हटाने के मामले में रेलवे की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि अवैध कब्ज़े से न सिर्फ विकास में दिक्कत आ रही बल्कि विस्तार भी प्रभावित हो रहा है। ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से पहले अतिक्रमण करने वालों को कई नोटिस भेजे गए थे लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया और न ही किसी ने खुद से अतिक्रमण हटाया। यहां पत्रकारों से बातचीत में पूर्व विधायक काजी निजामुद्दीन ने कहा कि पहले यह जमीन 29 एकड बताई गई थी लेकिन बाद में 79 एकड़ बता दी गई। गफूर बस्ती में साठ साल से भी अधिक समय से मंदिर, ओवरहेड टैंक, शिशु मंदिर और सीवर लाइन हैं। यदि यह रेलवे की जमीन है तो यहां ओवरहेड टैंक और सीवर लाइन कैसे बना दी गई? यहां जमीन का बैनामा किया गया तो सरकार ने रेवेन्यू कैसे ले लिया? क्या तब यह रेलवे की जमीन नहीं थी? यहां वक्फ बोर्ड की संपत्ति भी है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को इन लोगों के पुनर्वास के लिए कदम उठाने होंगे। इनके प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए उनको बेघर न किया जाए।