क्या है कश्मीरी आवाम का दर्द?

0
239

कश्मीरी आवाम का दर्द बयां किए भी बयां नहीं होता! सेब, बादाम, अखरोट, केसर की धरती है। डल झील से लेकर गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम सब यहां आने वालों से खुद बातें करते हैं। नौगाम बाईपास पर मिले गुलाम भट्ट कहते हैं कि भला कौन दहशतगर्दी का साथ देना चाहता है। भट्ट के भाई त्राल में आतंकियों का शिकार हो गए थे। 56 साल के भट्ट कहते हैं कि उनका परिवार आतंकवाद से खुद पीड़ित रहा है, लेकिन सही बात यह भी है कि राजनीति के रसूखदारों को कश्मीर की आवाम का ख्याल ही कहां रहता है। न कोई जमीनी परेशानियों को समझता है और न ही उसके निदान का कोई प्रयास करना चाहता है।

इस बारे में राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा कहते हैं कि मुझे यहां आए दो साल से अधिक हो गया। हमने श्रीनगर आने के बाद पहला काम लोगों की मुश्किल कम करने की दिशा में ही किया। रोजगार देने के मामले में हमारा प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से अच्छा है। जल्द ही पंचायत स्तर तक लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार देने की योजना है। वह कहते हैं कि आतंकवाद पर नकेल कसकर राज्य में शांति बहाली के प्रयास किए जा रहे हैं। घाटी शांति की तरफ बढ़ रही है। राज्य में देश का राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है और राष्ट्रगान गाए जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार पर बड़ी कार्रवाई करके आवाम और राज्य के विकास के लिए आने वाला धन कुछ लोगों की तिजोरी में जाने की बजाय विकास पर खर्च हो रहा है।

अशरफ कहते हैं कि कश्मीर में कुछ सामाजिक, आर्थिक प्रयास हों और आवाम की जरूरतों और परेशानियों को सरकार और राजनीति में बैठे लोग समझ पाएं तो बड़े बदलाव की नींव पड़ जाएगी। वह कहते हैं कि जम्मू से लेकर कश्मीर की घाटी तक लुधियाना, अमृतसर और पंजाब के बाजार छाए रहते हैं। कश्मीरी कालीन की जगह तुर्की से आयातित या फिर पानीपत के कालीन ले चुके हैं। सजर अब्बास कश्मीर में कारोबार से जुड़े हैं। वह कहते हैं कि 2010 से लेकर कुछ सालों में बड़ी उम्मीद जगी थी। जब गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने अच्छा काम किया था। लेकिन बाद में फिर सब गड़बड़ हो गई। हालांकि अब्बास का कहना है कि सीबीआई, एनआईए, ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियों की कार्रवाई के बाद घाटी में अब काफी कुछ ठीक हो रहा है, लेकिन समाजिक समस्याएं भी उसी अनुपात में बढ़ती जा रही हैं। 

शाहिद सुबह की सैर के दौरान मिले। उन्होंने पूछ लिया कि आप पर्यटक जान पड़ते हैं। इसके बाद चर्चा का सिलसिला चल निकला। शाहिद ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आपको कुछ संगठन, पार्टियां और नेता मिल जाएंगे। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा, गुलाम नबी, मिर्जा बेग, सज्जाद लोन…सब। लेकिन यह हकीकत है कि यह सब केवल 1-2 प्रतिशत लोगों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां 98 प्रतिशत जनता मतदान नहीं करती। इसके पीछ दहशतगर्द और राजनीति का ताना-बाना दोनों होता है। शाहिद के मुताबिक यही कारण भी है कि आवाम की जरूरतें, उसके मुद्दे, उसका विकास अटका रह जाता है। जुबैर के मुताबिक घाटी में इस समय कई सामाजिक समस्याएं विकराल रूप लेती जा रही हैं। मंहगाई बढ़ रही है। लोगों के पास आमदनी के स्रोत घट रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार की चिंताओं ने काफी बड़ा रूप ले लिया है। उन्होंने कहा कि तमाम मसाइल ऐसे हैं जिन्हें लेकर सबकुछ अंधेरे में है।

बिलाल को अपने 30 साल की बहन की शादी के लिए योग्य लड़के की तलाश है। खुद बिलाल की भी शादी 36 साल की उम्र में हुई थी। बताते हैं पूरे कश्मीर में यह बहुत बड़ी समस्या है। इस समस्या को बढ़ाने में बेरोजगारी और आतंकवाद ने भी आग में घी का काम किया है। बिलाल पास के ही करीब 10 किमी दूर एक गांव में ले गए। कुछ लोगों से मिलवाया। बिलाल कहते हैं कि सरकार यहां के लोगों को रोजगार देने का कदम उठाए तो बड़ा बदलाव आ सकता है। हालांकि वह मानते हैं कि कश्मीर में इस तरह के हालात के लिए आतंकवाद भी बराबर का जिम्मेदार है। दहशतगर्दी की वजह से राज्य में निवेश नहीं आ पाता। पर्यटक भी आने से डरते हैं। इसका असर यहां की आवाम पर पड़ता है। बिलावल के चाचा पहले लकड़ी का कारोबार करते थे। सोपियां में एक दुर्घटना में घायल होने के बाद उनके घर की अर्थव्यवस्था बुरी तरह बिगड़ गई। बताते हैं कि यहां शादी तभी होती है जब लड़का कहीं नौकरी कर रहा होता है। लड़की शादी में मेहर के तौर पर राशि लेती है। यह रकम भी ऊंची होती है। वह कहते हैं कि यह पूरे घाटी की बहुत बड़ी बीमारी है। सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं को इस दिशा में काम करना चाहिए। इससे पूरा कश्मीर और यहां के हालात बदल जाएंगे।

मुजम्मिल, डा. सैफी और डा. शकील बताते हैं कि शिक्षा, चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हालांकि जम्मू-कश्मीर का हर परिवार आयुष्मान भारत कार्ड रखता है। मुफ्त इलाज की सहूलियतें हैं, लेकिन इसके साथ साथ लीवर, किडनी, कैंसर, त्वचा रोग समेत तमाम बीमारियों से ग्रसित रोगियों की संख्या अच्छी खासी है। बताते हैं यही हाल स्कूली शिक्षा का है। स्कूली शिक्षा की लाइन लेंथ बिगाड़ने में आतंकवाद की भी बड़ी भूमिका है। आतंकी बुरहान वानी को मुठभेड़ में सेना द्वारा मार गिराने के बाद तो लंबे समय तक घाटी में गतिरोध था। बताते हैं कि इसके कारण जो भी लोग थोड़ा संपन्न हैं, वह अपने बच्चों को बाहर पढ़ना, रखना और उनकी बाहर ही परवरिश करना पसंद करते हैं।

यह बीमारी पंजाब में फैली हुई है। बहुत तेजी से कश्मीर को अपने आगोश में ले रही है। एक स्कूल शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कक्षा 8 के बाद कोई भी बच्चा ड्रग की चपेट में आ जाता है, ऐसे कई मामले हैं। कहना मुश्किल है कि ये मर्ज़ कैसे दुरुस्त होगा। शिक्षक का परिवार पुंछ जिले से श्रीनगर में आ गया है। उनके साथ उड़ी के उनके दोस्त भी थे। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर ड्रग्स की बड़े पैमाने पर घाटी में इंट्री है। वह कहते हैं कि कोई भी मां बाप अपने बच्चे पर इसकी छाया नहीं पड़ने देता, लेकिन आतंकियों के स्लीपिंग सेल न जाने कब बच्चों पर अपना घेरा बढ़ा लेते हैं।

सुरक्षा बलों के कई अधिकारियों से भेंट मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि आम आवाम सुरक्षाबलों का समर्थन करती है। लेकिन आतंकियों के नेटवर्क से उसका डरना भी स्वाभाविक है। दहशतगर्दी का खतरा नियंत्रित हुआ है, लेकिन खत्म नहीं हुआ है। एक आईजी स्तर के अधिकारी ने बताया कि सीमापार के आतंकियों और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के मंसूबे सफल नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन इसके समानांतर घाटी में ड्रग्स की खेप बड़ी चुनौती बनती जा रही है।