आज हम आपको प्रकाश सिंह जजमेंट के संदर्भ में जानकारी देने वाले हैं! राज्यों में पुलिस का मुखिया यानी डीजीपी एक ही शख्स होता है। DGP की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है पर अक्सर राज्यों में विवाद होता रहता है। अब सर्वोच्च अदालत ने सरकार से अहम सवाल किया है। कोर्ट ने गृह मंत्रालय से पूछा है कि क्या केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात किसी IPS अधिकारी को राज्य का पुलिस महानिदेशक यानी DGP नियुक्त करने से पहले उसकी सहमति जरूरी है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है। पूरा मामला 1991 बैच के IPS अधिकारी टी जे लोंगकुमेर से जुड़ा है लेकिन इसमें पेंच भी है। दरअसल हुआ यूं कि नगालैंड सरकार ने डीजीपी पद के लिए सिर्फ एक नाम की सिफारिश पर UPSC का विरोध किया। केंद्रीय संस्थान ने 1992 बैच के IPS रुपिन शर्मा का नाम भेजा था। नगालैंड सरकार की ओर से कहा गया कि यह तो प्रकाश सिंह केस में SC के फैसले का उल्लंघन है। यूपीएससी को तीन नाम सुझाने चाहिए थे जिसमें किसी एक को डीजीपी बनाया जाए। UPSC की ओर से बताया गया कि नगालैंड के वरिष्ठतम IPS सुनील आचार्य ने स्टेट कैडर में जाने के लिए राजी नहीं थे। उनके अलावा 30 वर्ष के अनुभव वाला कोई आईपीएस नहीं था। इस कारण सिर्फ रुपिन शर्मा का नाम भेजना पड़ा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर डीजीपी की नियुक्ति कैसे की जाती है और प्रकाश सिंह मामला क्या है जिसकी चर्चा कोर्ट में हुई है। शीर्ष अदालत लोंगकुमेर की नगालैंड के डीजीपी के रूप में नियुक्ति पर अपने पहले के निर्देशों को लागू करने से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका ‘नगालैंड लॉ स्टूडेंट्स फेडरेशन’ की ओर से दायर की गई थी, जिसमें लोंगकुमेर को उनके रिटायरमेंट के बाद विस्तार देने के आदेश को वापस लेने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
दरअसल, नवंबर 2017 में रुपिन शर्मा की डीजीपी पद पर नियुक्ति होती है लेकिन सात महीने के बाद ही उन्हें हटा दिया गया। 20 जून 2018 को शर्मा हटाए गए और 27 जून 2018 को छत्तीसगढ़ काडर के लोंगकुमेर को डीजीपी नियुक्त किया गया। उन्हें 31 अगस्त 2022 तक एक साल का विस्तार दिया गया। उन्हें फिर से फरवरी 2023 तक छह महीने का विस्तार दिया गया। हालांकि, उन्होंने इस महीने की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया और पद के लिए अनुशंसित एकमात्र अधिकारी रूपिन शर्मा की डीजीपी के रूप में नियुक्ति हुई। शीर्ष अदालत ने 17 अक्टूबर को लोंगकुमेर की सेवानिवृत्ति के बाद उनका कार्यकाल बढ़ाने के लिए नगालैंड सरकार को फटकार लगाई थी और नए पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के लिए राज्य कैडर से यूपीएससी को योग्य आईपीएस अधिकारियों के नामों का नया पैनल भेजने को कहा था। कोर्ट ने इस तथ्य को गंभीरता से लिया था कि लोंगकुमेर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य पुलिस स्थापना बोर्ड की बैठक का हिस्सा थे, जिसने 6 महीने के लिए उनके विस्तार की सिफारिश की थी।
पीठ ने गृह मंत्रालय से उस पत्र को रिकॉर्ड पर रखने के लिए भी कहा है, जिसके द्वारा उसने पिछले साल 15 दिसंबर को UPSC के पत्र पर नगालैंड के डीजीपी के रूप में नियुक्ति के लिए अनुभव वाले मानदंड को 30 साल से कम करके 25 साल करने की सहमति दी थी। सुनवाई के दौरान पीठ को बताया गया कि यूपीएससी ने 15 दिसंबर, 2022 को एक पत्र भेजा था, जिसमें डीजीपी पद के लिए सिर्फ एक नाम की सिफारिश की गई थी। शीर्ष अदालत ने नगालैंड के वकील की इस दलील पर गौर किया कि विदेश में तैनाती के लिए अधिकारियों की सहमति ली जाती है, लेकिन राज्य संवर्ग में नियुक्ति के लिए नहीं। मूल रूप से छत्तीसगढ़ कैडर के लोंगकुमेर अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी नगालैंड में डीजीपी के पद पर बने हुए थे।
पिछले महीने में सुप्रीम कोर्ट ने नगालैंड डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर UPSC को फटकार लगाई थी और पोस्ट पर नियुक्ति के लिए अधिकारियों का पैनल बनाने के लिए कमेटी की मीटिंग बुलाने के लिए 60 दिन का समय देने से इनकार कर दिया था। तब चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि यूपीएससी कोर्ट का आदेश मानने के लिए बाध्य है। तब यूपीएससी ने तर्क दिया था कि डीजीपी का विस्तारित कार्यक्रम 28 फरवरी 2023 को समाप्त हो रहा है और ऐसे में उस तारीख से पहले डीजीपी के लिए पैनल की सिफारिश की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।
तब नगालैंड लॉ स्टूडेंट्स फेडरेशन ने आरोप लगाया था कि राज्य पुलिस के सर्वोच्च पद पर नगालैंड राज्य ने कानूनन काम नहीं किया…जो स्टेट कैंडर के नहीं हैं, जो पहले ही अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं, जिनका नाम आगे विस्तार के लिए यूपीएससी द्वारा खारिज किया जा चुका है, वह पद पर बने रहे। फेडरेशन ने कहा था कि नगालैंड स्टेट ने दो साल के कार्यकाल से पहले ही रुपिन शर्मा को हटाकर शीर्ष अदालत के निर्देशों का भी उल्लंघन किया है।
किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में पुलिस विभाग की कमान डीजीपी के हाथों में होती है। यानी कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार सबसे वरिष्ठ अधिकारी। इस पद पर सीधे नियुक्ति नहीं होती है। एसपी, एसएसपी, डीआईजी, आईजी, एडीजीपी के बाद पुलिस महानिदेशक का पद मिलता है। अब तक ऐसा चला आ रहा है कि UPSC तीन सबसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का एक पैनल राज्य सरकार को भेजता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार डीजीपी की नियुक्ति कम से कम दो वर्ष के लिए होती है। डीजीपी को हटाने की प्रक्रिया सर्विस रूल्स के उल्लंघन या क्रिमिनल केस में कोर्ट का फैसला आने, भ्रष्टाचार साबित होने पर शुरू होती है। या डीजीपी को तब हटाया जा सकता है जब वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हों।
यह फैसला साल 2006 का है। तब प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामले में डीजीपी की नियुक्ति और हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम दिशानिर्देश दिए थे। इसे प्रकाश सिंह मामला कहा जाता है क्योंकि SC ने यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की PIL पर आदेश दिया था। 17 साल होने को हैं लेकिन अब भी अक्सर पता चलता है कि इस फैसले को राज्यों में पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया है। फैसले में कोर्ट ने कहा था कि डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए। बाद में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यूपीएससी सुनिश्चित करे कि डीजीपी पद के लिए दिए जाने वाले अधिकारी ऐसे हों जो दो साल बाद रिटायर हो रहे हों। कुछ मामलों में ऐसा देखा गया रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके अधिकारियों को डीजीपी बना दिया गया।
SC के मुताबिक किसी भी अधिकारी को डीजीपी बनाने से पहले उसे ट्रेनी बनाना जरूरी है। कम से कम वह डीजी रैंक का अधिकारी रहा हो।
कोर्ट ने साफ कह दिया था कि कार्यवाहक के तौर पर डीजीपी पद पर कोई नियुक्ति नहीं होगी।
DGP का कार्यकाल समाप्त होने से पहले राज्य सरकार इस पद के लिए नाम यूपीएससी को भेजेगी। इस लिस्ट को बढ़ा-घटाकर तीन वरिष्ठ अधिकारियों के नाम UPSC वापस भेजेगा। इसमें से राज्य सरकार किसी भी नाम का चयन कर सकती है।
इस रैंक पर प्रमोशन के लिए यानी पुलिस बल को लीड करने के लिए संबंधित व्यक्ति का अच्छा रेकॉर्ड और अनुभव होना चाहिए।