Saturday, February 8, 2025
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क्या है देश में महंगाई बढ़ने का कारण? जानिए महत्वपूर्ण बात!

महंगाई का असर दिन भर दिन बढ़ता ही जा रहा है! हमारी ईएमआई घटने के बदले बढ़ती जा रही है। इस साल रिजर्व बैंक ने लगातार तीन बार ब्याज दरें बढ़ा दीं। रेपो रेट तीन महीने में भी एक परसेंट से ज्यादा बढ़ कर 5.4 परसेंट हो गई। अब तो एक और उछाल के लिए तैयार रहना होगा। अगस्त में महंगाई दर 7 परसेंट छू गई है। लिहाजा रिजर्व बैंक एक बार और रेपो बढ़ाएगा क्योंकि महंगाई सहनीय स्तर (टोलरेंस लेवल) को पार कर चुका है। दरअसल रिजर्व बैंक ने खुद ही छह परसेंट की ऊपरी सीमा तय की थी। अब ये टारगेट तार-तार हो रहा है। हम-आप सुनते रहे हैं कि आरबीआई मंहगाई रोकने के लिए हमें कष्ट दे रहा है। कष्ट से मतलब होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन की बढ़ी हुई ईएमआई से है। दूसरा कष्ट ये कि जो कुछ पैसा बैंकों में रखा उस पर भी उम्दा रिटर्न नहीं मिल रहा। उलटे फिक्स्ड डिपोजिट और सेविंग पर मिलने वाला ब्याज सबसे कम लेवल पर पहुंच गया। जिस किसान विकास पत्र को पांच साल में डबल होते देखा था वो अब उसके लिए दस साल चार महीने इंतजार करना पड़ेगा। इसलिए महंगाई का तिलिस्म समझना जरूरी है।

पार्ले जी बिस्किट तो आप जानते ही होंगे। जह हम लॉकडाउन में थे तो खबर आई थी कि पार्ले जी का पैकेट छोटा हो गया है। देश भर में चर्चा का विषय बन गया। पांच रुपए का ये पैकेट इतना पॉप्युलर था कि कंपनी ने दाम बढ़ाने के बदले पैकेट का आकार ही छोटा कर दिया। पैकेट छोटा करने की नौबत इसलिए आई कि बिस्किट बनाने का कॉस्ट बढ़ गया। कोरोना के दौरान पूरी दुनिया जिस कठिन वक्त से गुजरी उसकी भरपाई में तो दशकों लगेंगे। महामारी ने हमें बहुत पीछे धकेल दिया है। 2020-2021 में हमारी जीडीपी माइनस 6.6 प्रतिशत रही। इस साल ये बढ़ कर 8.7 प्रतिशत हो गई तो भी खुशखबरी कैसी। माइनस 6.6 से बढ़कर 8.7 होना तो दो परसेंट की ग्रोथ ही दिखाता है। 1997 वाला एशियाई वित्तीय संकट हो या 2007 में लेहमन ब्रदर्स के बाद आई भयानक मंदी, हमनें दोनों का डट कर मुकाबला किया और आगे बढ़ने लगे। इस साल की नई सुबह भी नई शुरुआत से हुई। पहली तिमाही में 13.5 परसेंट की बंपर ग्रोथ रेट के साथ। लेकिन 24 फरवरी को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्पेशनल आर्मी ऑपरेशन के नाम पर यूक्रेन पर हमला कर दिया।

कोरोना काल में सप्लाई चेन पर ब्रेक लगा था, तब दाम बढ़े और अब इस जंग ने मामला पेचीदा कर दिया है। अभी धान को रोपनी तो जितनी होनी थी हो गई पर बिहार, यूपी, एमपी , राजस्थान और दक्षिण राज्यों में यूरिया का संकट हमने झेला। किसान लाइन में लगते और खाद मिनटों में गायब। शुरुआत में तो सरकार ने मना किया लेकिन बाद में माना गया कि कुछ संकट है। इसके बाद तो पेट्रोल, डीजल , हवाई इंधन सबके दाम रॉकेट होने लगे। साधारण भाषा में कहा जाए तो ट्रक और ट्रेन पेट्रोल-डीजल से चलते हुए महंगाई भी गंतव्य तक पहुंचाने लगे। आप कहेंगे रेलवे की लाइनें तो इलेक्ट्रिक हो गई हैं। फिर जान लीजिए कि अभी भी 75 परसेंट बिजली कोयला से पैदा होती है और अच्छा कोयला ऑस्ट्रेलिया से आता है जिसके भाव सप्लाई घटने से तो बढ़ ही गए।

अब हर दिन नई खबर किसी न किसी देश से मिलती है। ब्रेकिंग फॉरमेट में कि 1970 के बाद सबसे ज्यादा महंगाई, ग्राहकों के सेंटिमेंट लेवल लो लेवल पर, कमोडिटी प्राइसेज आजतक के सर्वोच्च स्तर पर। मैकिन्से ने इस पर रिसर्च किया। महंगाई से क्या-क्या कहां कहां हो रहा है। उदाहरण के लिए , लिथुआनिया में महंगाई दर 15.5 परसेंट पहुंच गई है। यहीं आपको एक रोचक फैक्ट बताते हैं। 1923 में हंगरी ने नोट छापना शुरू कर दिया। नोट इतने हो गए कि महंगाई दर 98 परसेंट पर पहुंच गई। अब सीधे 2022 पर लौटते हैं। इस साल तुर्की में ये 54 परसेंट तक चली गई। सारा यूरोप परेशान है और अमेरिका भी। भारत में भी एक दशक बाद सात परसेंट का आंकड़ा पार होते-होते रह गया।

जब महंगाई से दुनिया हाहाकार करने लगा तो तमाम देशों के रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ानी शुरू कर दीं। भारत में भी बढ़ी। लेकिन अभी भी कई देशों में महंगाई बढ़ने की दर ब्याज की दर से कहीं अधिक तेज है। मतलब कोरान और जंग की मार पर वार इतना आसान नहीं है। हमारे देश में पिछले तीन महीनों में असर दिखा लेकिन अगस्त के आंकड़ों ने परेशान कर दिया है। पेट्रोल दिल्ली में 100 रुपए लीटर के नीचे लेकिन कई राज्यों में 100 के पार है। हमें अनाज का संकट नहीं है लेकिन कई देशों में अनाज की कमी है क्योंकि यूक्रेन से सप्लाई हो नहीं रही। लिहाजा हमने आटा-चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया है क्योंकि हमें पहले अपना घर देखना है।

दूसरों के घर बहुत महंगे होते जा रहे है। जमीन जायदाद के दाम यूरोप और OECD(ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट ) देशों में बढ़ रहा है। ये 38 देशों का एक समूह है जिसमें अधिकतर यूरोपीय देश शामिल हैं। कुछ दक्षिण अमेरिकी देश भी हैं जैसे मैक्सिको और कोलंबिया। तुर्की में फ्लैट के दाम सबसे ज्यादा बढ़े हैं। फिर लिथुआनिया और चेक रिपब्लिक में। इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट हमेशा ये सलाह देते हैं कि जब महंगाई चरम पर जा रही हो तो कमोडिटीज में पैसा लगाएं। आप सोचेंगे क्यों। ये इसलिए कि आर्थिक विस्तार या विकास के लिए कच्चे माल की जरूरत होती है। कच्चे माल की डिमांड से अंदाजा लगता है कि इसके दाम किस ओर जा रहे हैं। रूस पर अमेरिका और नाटो ने बैन लगाया तो रूस ने नॉर्ड पाइपलाइन से गैस रोक दी। इटली-जर्मनी में खलबली मच गई। दाम आसमान पर जा रहे हैं। हम रूस के दोस्त हैं लेकिन सामान लाने का रास्ता बदल गया तो ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट बढ़ गई। खाद के दामों में बढ़ोतरी इसी का नतीजा है।

यूक्रेन दुनिया में अनाज का कटोरा माना जाता है जहां के खेतों में आग लगी है। अब दाम इतने बढ़ गए हैं कि यूएन का इंडेक्स टूट गया है। मतलब जब से यूनाइटेड नेशंस फूड एंड एग्रिकल्चर ऑफिस ने प्राइस इंडेक्स बनाया है तब से कभी भी दाम इतने नहीं बढ़े। भविष्य तो और खराब है। यूएन के मुताबिक इस साल पूरी दुनिया में अनाज का उत्पादन चार करोड़ टन कम रहेगा। धान का उत्पादन 2.1 परसेंट कम रहने का अनुमान है। अपने देश में भी विचित्र व्यवहार कर रहा मॉनसून यूपी, बिहार, बंगाल और ओडिशा में कमजोर रहा जिसके कारण धान की फसल पर असर पड़ा है। इथियोपिया, सूडान, नाइजीरिया, यमन जैसे गरीब देशों में हंगर इंडेक्स यानी भूख सूचकांक काफी ऊपर है। श्रीलंका की क्या हालत हुई है, ये हम सबके सामने है। हम पैसा चाहे जितना कमा लें अगर महंगाई वेनेजुएला और जिम्बाब्वे की तरह बढ़ने लगे तो पता चलेगा 5000 रुपए में एक रोटी खरीद रहे हैं। बेशक हिंदुस्तान की हालत मजबूत है लेकिन दुनिया के कई और देश श्रीलंका जैसी स्थितियों में हैं। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को इसके लिए मिलकर काम करना होगा।

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