आज हम आपको बताएंगे कि राम आंदोलन और नाथ संप्रदाय में क्या संबंध है! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारियों का जायजा लेने जाते हैं तो उनसे ज्यादा खुश कोई और नहीं होता होगा। इसका पहला कारण तो साफतौर पर पेशेवर है। एक तो यूपी सरकार के प्रमुख के रूप में वह अयोध्या में व्यापक परिवर्तन के सूत्रधार रहे हैं। दूसरी वजह उनके दिल के काफी करीब और निजी है क्योंकि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण और वहां भगवान की प्राण प्रतिष्ठा उनके गुरू अवेद्यनाथ की आखिरी इच्छा थी, जो अब पूरी होने जा रही है। नाथ संप्रदाय पर कई किताबें लिख चुके लेखक प्रदीप कुमार राव कहते हैं कि साल 2010 से 2014 तक अपने अंतिम वर्षों में महंत अवेद्यनाथ ने बहुत कम बात की लेकिन जब भी उन्होंने बात तो वह ज्यादातर राम मंदिर के बारे में थी। स्वाभाविक तौर पर योगी आदित्यनाथ के लिए प्राण प्रतिष्ठा समारोह एक भावनात्मक क्षण है। आख़िरकार, नाथ संप्रदाय में ‘गुरु की आज्ञा’ का पालन सर्वोपरि है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘गुरु गोरखनाथ के अनुयायियों के लिए राम मंदिर एक सपने के सच होने जैसा है। अपने खून-पसीने और संसाधनों से उन्होंने इसकी लौ को जीवित रखा।’
साल 1935 में ‘महंत’ के रूप में नियुक्त हुए दिग्विजय नाथ ने एक ऐसा मुद्दा उठाया जिसने गोरखनाथ मठ को दक्षिणपंथी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना दिया। यह अयोध्या में विवादित परिसर में राम मंदिर बनाने का एक संवेदनशील मुद्दा था। साल 1937 में दिग्विजयनाथ हिंदू महासभा में शामिल हो गए और राम मंदिर के लिए हिंदुओं को एकजुट करना शुरू कर दिया। 1949 में उन्होंने अयोध्या में स्वयंसेवकों की एक टीम का नेतृत्व किया। बलरामपुर के तत्कालीन राजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह और एक प्रमुख संत स्वामी करपात्री महाराज के साथ इस मुद्दे पर मीटिंग भी की। 22-23 दिसंबर 1949 की आधीरात को जब भगवान राम की मूर्ति तत्कालीन विवादित ढांचे में रखी गई थी, तब दिग्विजय नाथ अयोध्या में थे। यहां उन्होंने स्वयंसेवकों को प्रार्थना शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि तत्कालीन राज्य सरकार ने डीएम को मूर्ति हटाने का निर्देश दिया, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इस कदम से सांप्रदायिक हिंसा हो सकती है। राव कहते हैं कि मूर्ति की स्थापना को आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है। इसके बाद से भगवान एक मूर्त वास्तविकता बन गए जिसने आंदोलन को बढ़ावा दिया और भक्तों और साधुओं को मंदिर के लिए लड़ाई तेज करने के लिए प्रेरित किया। महंत दिग्विजय नाथ ने 1969 में अपनी मृत्यु तक इस आंदोलन को बढ़ावा देना जारी रखा।
अपने गुरु की विरासत को आगे बढ़ाते हुए महंत अवेद्यनाथ ने आंदोलन से जुड़े सभी हिंदू संगठनों और साधुओं को एक मंच पर लाने के लिए 1984 में श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। राव कहते हैं, ‘उन्होंने सितंबर 1984 में मंदिर की मुक्ति के लिए बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या तक एक महत्वपूर्ण मार्च का आयोजन किया और लोगों से उस पार्टी या नेता को वोट देने का आह्वान किया जो मंदिर निर्माण का समर्थन करता है।’
31 अक्टूबर 1985 को कर्नाटक के उडुपी में धर्म संसद के दौरान अवेद्यनाथ और दिगंबर अखाड़े के महंत रामचन्द्र दास परमहंस ने मस्जिद का ताला खोलने की मांग की ताकि भक्त प्रार्थना कर सकें। मांग को आगे बढ़ाने के लिए एक समिति अखिल भारतीय संघर्ष समिति का भी गठन किया गया। राव याद करते हैं, ‘1 फरवरी 1986 को जब फैजाबाद के तत्कालीन जिला न्यायाधीश ने ताला खोलने का आदेश दिया, तब अवेद्यनाथ अयोध्या में थे।’ 22 सितंबर 1989 को दिल्ली की एक रैली में अवेद्यनाथ ने घोषणा की कि राम जन्मभूमि पर ‘शिलान्यास’ 9 नवंबर, 1989 को होगा। 1990 में हरिद्वार में एक बैठक में उन्होंने घोषणा की कि साधु मंदिर निर्माण शुरू करने के लिए अयोध्या जाएंगे, लेकिन कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ सका क्योंकि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह और तत्कालीन यूपी सीएम नारायण दत्त तिवारी ने उनसे इस कार्यक्रम को स्थगित करने का आग्रह किया था। जब पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया तो अवेद्यनाथ ने इस मुद्दे पर उनसे मिलने के लिए प्रतिनिधिमंडल को लीड किया था। बाद में उन्होंने घोषणा की कि 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में धर्म संसद आयोजित की जाएगी और 2 दिसंबर 1992 को कार सेवा शुरू की जाएगी।
मंदिर आंदोलन ने युवा अजय सिंह बिष्ट को 1992 में गोरखपुर के गोरखनाथ मठ की ओर आकर्षित किया था। महंत अवेद्यनाथ से मुलाकात के बाद उन्होंने अपने परिवार को त्याग दिया और नाथ संप्रदाय के संन्यासी का जीवन अपना लिया और अपने नए जीवन में योगी आदित्यनाथ के रूप में जाने गए। आदित्यनाथ ने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति की बैठकों में भाग लिया। उनके गुरु की अध्यक्षता में हुई बैठक में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हिंदू महासभा के नेताओं के अलावा अयोध्या के संतों ने भी भाग लिया।
योगी को ये बैठकें आयोजित करने का काम दिया गया जिसके लिए उन्हें हिंदू नेताओं और विद्वानों से सराहना मिली। उनकी क्षमताओं से प्रभावित होकर महंत अवेद्यनाथ ने 1996 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। राव कहते हैं कि 1997-98 में जब राम मंदिर आंदोलन यूपी के अन्य हिस्सों में चमक खोने लगा तो आदित्यनाथ ने गोरखपुर और आसपास के जिलों में विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से इस मुद्दे को पूर्वांचल में जीवित रखा। साल 1998 में महंत अवेद्यनाथ ने सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया और आदित्यनाथ के लिए गोरखपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का रास्ता बनाया, जहां से उन्होंने चार बार जीत हासिल की थी। साल 1998 में लोकसभा में पदार्पण करने वाले आदित्यनाथ ने सदन में राम मंदिर का मुद्दा उठाया।
साल 2017 का साल राम मंदिर आंदोलन के निर्णायक वर्षों में से एक है। इस साल गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यमंत्री का पद संभाला। राव का कहना है कि सीएम के तौर पर योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या को इस महान दिन के लिए तैयार करने के प्रयास शुरू कर दिए थे। राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रफेसर मनोज दीक्षित कहते हैं, ‘अयोध्या में बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं को शुरू करने के अलावा योगी आदित्यनाथ का सबसे बड़ा योगदान ‘दीपोत्सव’ का आयोजन करना है, जिसने अयोध्या की लार्जर दैन लाइफ छवि बनाई है।’
इससे पहले कि रामलला को अपना ‘महल’ वापस मिल पाता, योगी ने महामारी के दौरान उन्हें एक ढांचे में ट्रांसफर कर दिया। हनुमानगढ़ी के पुजारी महंत राजू दास कहते हैं कि अयोध्या को ‘नव्यता, दिव्यता, भव्यता’ की ओर ले जाने का श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाता है। एक समय था जब योगी जी साल में 4-5 बार अयोध्या आते थे और संतों से चर्चा करते थे कि मंदिर कैसे बनाया जाए? अब सीएम के रूप में वह मंदिर निर्माण कार्य का जायजा लेने और विकास परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए महीने में 5-6 बार आते हैं।