क्या है हिंदी ना समझने वाली सुष्मिता मुखर्जी की कहानी?

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आज हम आपको हिंदी ना समझने वाली सुष्मिता मुखर्जी की कहानी बताने जा रहे हैं! छोटे-बड़े पर्दे पर पिछले कई सालों से काम करने वाली एक्ट्रेस सुष्मिता मुखर्जी इन दिनों चर्चा में हैं अपने टीवी शो मेरी सास भूत है को लेकर। सुष्मिता ना सिर्फ एक्टर बल्कि डायरेक्टर और लेखक भी हैं। शो के बारे में बात करते हुऐ सुष्मिता कहती हैं ‘दरअसल बहुत ही प्यारा सा शो है। बहुत ही अलग तरह के किरदार हैं और एकदम मजेदार शो है। इस शो का बेस अपर्णा सेन की मशहूर फिल्म गोयनार बक्शो से एक एलिमेंट लिया गया है। तो मेरा किरदार गोयनार बक्शो में मौसमी चटर्जी का जो किरदार है उससे प्रेरित है और उसी फिल्म का बेस बना कर हमने ये शो बनाया है। शो बड़ा इंटरेस्टिंग है कि वो सास भूत बन जाती है, तो उसके जो रिश्ते होते हैं उनको कैसे ठीक करती है और परिवार में वर्चस्व की लड़ाई कैसी होती है यही चीजें दिखाई गई हैं। तो ये एक ड्रामा और कॉमेडी वाला शो है।’

नए लोगों के साथ काम करने के अपने अनुभव पर सुष्मिता कहती हैं, ‘लोगों का ये कहना गलत है कि आज कल के बच्चे सिर्फ मोबाइल में रहते हैं। मुझे लगता है कि आज कल के बच्चे एकदम फोकस हैं और अपनी लाइन अच्छे से याद करके आते हैं, किरदार में रहते हैं, समय से आते हैं, कोई नखरे नहीं है ना ही कोई घमंड है। मुझे लगता है लोगों को कला के लिए प्रेम होना चाहिए और आजकल के बच्चों में वो प्रेम नजर आता है, तो हर दिन उनसे काफी कुछ सीखती हूं।’

सीरियल में वो भूत के किरदार में हैं, तो भूत जैसी चीजों में मानती हैं या नहीं? पर सुष्मिता कहती हैं, ‘हां, बिल्कुल मानती हूं। मुझे लगता है जब इंसान मर जाता है तो आपकी आत्मा होती है। हमारे सनातन धर्म में मानते हैं की आत्मा इंसान के मरने के बाद एक यात्रा पर निकल जाती है तो जिन आत्माओं की कुछ ख्वाहिशें रह जाती हैं, वो उस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए घूमती रहती हैं।’सालों से अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय रहने के बारे में वे कहती हैं, ‘मुझे लगता है अगर आप अपने काम से प्यार करते हैं, तो जिस दिन आप काम नहीं करते हैं या किसी प्रकार के आर्ट में व्यस्त नहीं हैं तो आप अपने आपको बहुत कमजोर महसूस करते हैं। आप अमिताभ बच्चन को ही देख लीजिए 80 साल की उम्र में भी ऐसे मेहनत से काम करते हैं तो हम लोग तो अभी उनसे बहुत छोटे हैं। तो अपने काम से प्यार ही आपको मोटिवेट करता है।’

अपने शुरुआती दिनों के बारे में सुष्मिता कहती हैं, ‘जब मैं पहली बार एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) आई थी, तो मुझे हिंदी नहीं आती थी। रत्ना पाठक शाह, दीपा शाही लोगों ने मेरी खराब हिंदी का बहुत मजाक उड़ाया। उसके बाद मैंने एक मास्टर साहब से अच्छी हिंदी और उर्दू सीखी। दरअसल हिंदी इसलिए भी नहीं आती थी क्योंकि घर पर हमारे बंगला बोली जाती थी और बाहर अंग्रेजी बोलते थी तो हिंदी समझ में ही नहीं आती थी, लेकिन एनएसडी आ कर हिंदी सीखी और अब तो मैं बहुत ही अच्छे से हिंदी बोल लेती हूं।’

एक्टिंग के शौक के बारे में उनका कहना है, ‘मुझे तो लगता है एक्टिंग करने का शौक मुझे मेरी मां की कोख से ही था। बहुत बचपन से ही मुझे एक्टिंग करना अच्छा लगता था। छोटे- छोटे प्ले करती थी और मैं हर चीज के लिए आगे रहती थी। डांस करना हो, गाना गाना हो, स्पीच देनी हो, बोलना हो या कुछ भी हो हर चीज में मैं अव्वल रहती थी।’

अपने करियर के सबसे चुनौतीपूर्ण किरदार के बारे में वे कहती हैं, ‘दरअसल कई साल पहले 1988 में मैंने एक किरदार किया था जिसका नाम था कब तक पुकारूं तो वो शो मैंने और पंकज कपूर ने प्रोड्यूस किया था। उसमें पल्लवी जोशी और मैंने पंकज कपूर की दो पत्नियों का रोल किया था और उस फिल्म में मेरे किरदार का नाम था प्यारी तो उस किरदार में मुझे एक कलाकार के रूप में काफी कुछ देना पड़ा था। ऐसा इसलिए हुआ क्यांकि मैं गांव की तो हूं नहीं और गांव का किरदार कैसे करना है मुझे पता नहीं था और इसके बावजूद किरदार निभाना, राजस्थानी भाषा समझना सब बहुत चुनौतीपूर्ण था मेरे लिए। कई बार तो ऐसा होता था कि एक-एक हफ्ते तक बालों की चोटी नहीं खोलती थी, क्योंकि चरित्र में धूल वाली चोटी की रिक्वायरमेंट थी, किरदार के लिए रियल लगना जरूरी था।’

एक्टिंग, डायरेक्शन, और प्रोडक्शन में कहां ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है पर सुष्मिता कहती हैं ‘सबसे ज्यादा मेहनत प्रोड्यूसर बनने पर करनी पर पड़ती है क्योंकि वो हमारे खून में नहीं है। हम केवल काम देखते हैं, पैसा नहीं और मुझे लगता है प्रोड्यूसर सबसे पहले पैसा देखता है। मैं एक प्रोड्यूसर के तौर पर फ्लॉप हो गई, क्योंकि मैं प्रोडक्शन कर ही नहीं पाई और बाद में बहुत सारा काम करके लोगों के पैसे लौटाने पड़े। उस जमाने में हमारी कंपनी का 1 करोड़ का नुकसान हुआ था क्योंकि मुझे आता ही नहीं था वो सब। मुझे लगता है वो काम मेरे लिए नहीं है, इसलिए मैंने वो काम छोड़ दिया।’