आज हम आपको सोवियत संघ के पूर्व नेता जोसेफ स्टालिन की बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं! रूस और भारत के संबंध बहुत पहले से अच्छे रहे हैं। रूस जब कई देशों के साथ सोवियत संघ के रूप में था तब से लेकर अब तक दोनों देश अलग-अलग मोर्चों पर एक दूसरे का समर्थन करते रहे। लेकिन 1967 में एक ऐसा मामला आया, जिसके बाद कुछ समय के लिए दोनों देशों के रिश्तों में तनाव आ गया था। ये मामला तत्कालीन सोवियत संघ के पूर्व नेता जोसेफ स्टालिन की बेटी स्वेतलाना अलिलुयेवा से जुड़ा हुआ था। स्वेतलाना भारत आईं और फिर दोबारा लौट कर सोवियत संघ नहीं गईं।
स्वेतलाना भारत के ब्रजेश सिंह की अनौपचारिक पत्नी थीं। ब्रजेश सिंह के भतीजे दिनेश सिंह तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की कैबिनेट में मंत्री थे। ब्रजेश सिंह की मौत के बाद स्वेतलाना भारत आईं और उनका हिंदू रीति-रिवाज से अस्थि विसर्जन किया। हालांकि भारत आने में उन्हें समय लगा, क्योंकि सोवियत नेता उन्हें सती प्रथा का हवाला देते हुए रोकने की कोशिश करते रहे। बाद में उन्हें भारत का वीजा मिल गया। स्वेतलाना प्रतापगढ़ में ब्रजेस सिंह के गांव भी गईं।
स्वेतलाना ने भारत से वापस सोवियत संघ जाने की जगह अमेरिका में शरण लेने का फैसला किया। स्वेतलाना जब भारत आईं तब देश में आम चुनाव का दौर चल रहा था। इसी कारण न तो पॉलिटीशियन और न ही मीडिया को स्वेतलाना के भारत में होने से कोई खास दिलचस्पी थी। लेकिन अचानक से एक खबर आती है कि स्वेतलाना ने भारत से होते हुए अमेरिका में शरण ली है। स्वेतलाना सोवियत दूतावास में रह रही थीं। उन्हें लगातार सोवियत संघ वापस जाने को कहा जा रहा था।स्वेतलाना दूतावास से यह कह कर निकलीं कि वह सोवियत संघ जा रही हैं, लेकिन यहां से निकल कर वह कुछ दूर पर मौजूद अमेरिकी दूतावास में पहुंच गईं। रात का वक्त था और दूतावास बंद हो चुका था। उन्होंने गार्ड को अपना सोवियत पासपोर्ट दिखाया और उसे अपनी मंशा बताई। इस पर गार्ड ने रात में ही राजदूत चेस्टर बॉवल्स को फोन लगाया। बाद में अमेरिकी अधिकारियों ने लंबी बातचीत के बाद स्वेतलाना को अमेरिका का वीजा दिया और यूरोप पहुंचा दिया। इस सब की खबर अगली सुबह पूरी दुनिया को हुई।
सोवियत संघ यह कहते हुए भारत से नाराज हुआ कि एक खास मेहमान का सही से ख्याल नहीं रखा गया।स्वेतलाना जब भारत आईं तब देश में आम चुनाव का दौर चल रहा था। इसी कारण न तो पॉलिटीशियन और न ही मीडिया को स्वेतलाना के भारत में होने से कोई खास दिलचस्पी थी। लेकिन अचानक से एक खबर आती है कि स्वेतलाना ने भारत से होते हुए अमेरिका में शरण ली है। स्वेतलाना सोवियत दूतावास में रह रही थीं। उन्हें लगातार सोवियत संघ वापस जाने को कहा जा रहा था।स्वेतलाना दूतावास से यह कह कर निकलीं कि वह सोवियत संघ जा रही हैं, लेकिन यहां से निकल कर वह कुछ दूर पर मौजूद अमेरिकी दूतावास में पहुंच गईं। रात का वक्त था और दूतावास बंद हो चुका था। उन्होंने गार्ड को अपना सोवियत पासपोर्ट दिखाया और उसे अपनी मंशा बताई। इस पर गार्ड ने रात में ही राजदूत चेस्टर बॉवल्स को फोन लगाया। बाद में अमेरिकी अधिकारियों ने लंबी बातचीत के बाद स्वेतलाना को अमेरिका का वीजा दिया और यूरोप पहुंचा दिया। इस सब की खबर अगली सुबह पूरी दुनिया को हुई। सोवियत दूतावास ने अमेरिकी राजदूत और CIA को भी खरी खोटी सुनाई और अपहरण का आरोप लगाया।
सोवियत संघ की नाराजगी के कारण भारत ने अपना दूत स्विटज़रलैंड में स्वेतलाना के पास भेजा और एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराया, जिसमें लिखा था कि भारत ने उनकी अमेरिका जाने में कोई मदद नहीं की है।रात का वक्त था और दूतावास बंद हो चुका था। उन्होंने गार्ड को अपना सोवियत पासपोर्ट दिखाया और उसे अपनी मंशा बताई।रात का वक्त था और दूतावास बंद हो चुका था। उन्होंने गार्ड को अपना सोवियत पासपोर्ट दिखाया और उसे अपनी मंशा बताई। इस पर गार्ड ने रात में ही राजदूत चेस्टर बॉवल्स को फोन लगाया। बाद में अमेरिकी अधिकारियों ने लंबी बातचीत के बाद स्वेतलाना को अमेरिका का वीजा दिया और यूरोप पहुंचा दिया। इस सब की खबर अगली सुबह पूरी दुनिया को हुई। इस पर गार्ड ने रात में ही राजदूत चेस्टर बॉवल्स को फोन लगाया। बाद में अमेरिकी अधिकारियों ने लंबी बातचीत के बाद स्वेतलाना को अमेरिका का वीजा दिया और यूरोप पहुंचा दिया। इस सब की खबर अगली सुबह पूरी दुनिया को हुई। सोवियत संघ छोड़ने के फैसले को लेकर उन्होंने कहा कि वह बेकार जिंदगी नहीं जीना चाहती थीं। स्वेतलाना का अंत समय बेहद गरीबी में बीता और 22 नवंबर 2011 को उनका अमेरिका में निधन हो गया।