आज हम आपको मोरबी ब्रिज की अटूट कहानी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं! गुजरात के मोरबी हादसे से पूरा देश शोक में है। रविवार शाम जिस केबल पुल के टूटने से 150 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है, वह 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। हाल में मरम्मत और नवीनीकरण के बाद इसे जनता के लिए खोला गया था। बताते हैं कि रविवार शाम करीब साढ़े छह बजे पुल पर क्षमता से अधिक लोग पहुंचे हुए थे। अचानक पुल टूटा और करीब 500 लोग माच्छू नदी में गिर गए थे। मरने वालों में कई बच्चे और महिलाएं भी हैं। इस हादसे के बाद पुल के इतिहास, उसकी मरम्मत और लापरवाही को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। एक प्राइवेट फर्म ने लगभग छह महीने तक मरम्मत का काम किया था और 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर इसे जनता के लिए फिर से खोला गया था।
यह कोई आम पुल नहीं था। 1887 के आसपास मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी ठाकोर ने इसे बनवाया था। मोरबी पर उनका शासन 1922 तक रहा। जब लकड़ी के इस पुल का निर्माण किया गया था तो इसमें यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ था। बताते हैं कि मोरबी के राजा इसी पुल से होकर दरबार जाते थे। यह पुल दरबारगढ़ पैलेस और नजरबाग पैलेस (शाही महल) को जोड़ता था। आज के समय में यह दरबारगढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच कनेक्टिविटी का प्रमुख मार्ग है।
1.25 मीटर चौड़ा और 233 मीटर लंबा यह पुल मोरबी की शान रहा है। लोग यहां पहुंचकर यूरोप की तकनीक का अनुभव किया करते थे। कैमरे वाले फोन आने के बाद सेल्फी का क्रेज बढ़ता गया। रविवार को लोग घूमने के लिए पुल पर पहुंचे थे।जैसे ही कोई मोरबी में प्रवेश करता, उसे यह सस्पेंशन ब्रिज आकर्षित करता था। नदी के किनारे का वो नजारा लोगों को विक्टोरियन लंदन का एहसास कराता था। राजकोट से 64 किमी दूर स्थित मोरबी में इमारतें 19वीं सदी के यूरोप के टक्कर की बनाई गई थीं। मोरबी के पूर्व शासक अंग्रेजों की तकनीक से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने पूरे शहर में उसका इस्तेमाल किया था। शहर में आगंतुक का वेलकम यही पुल करता था जो 100 साल से भी पहले से अपने विशाल और विहंगम स्वरूप से लोगों को आकर्षित कर रहा था। पूरे शहर में यूरोपीय शैली की छाप दिखती है। आगे बढ़ने पर ग्रीन चौक चौराहा है, जहां तीन गेट से पहुंचा जा सकता है और हर गेट में राजपूत और इटालियन तकनीक का अक्स दिखाई देता है।
सस्पेंशन ब्रिज शानदार इंजीनियरिंग का उदाहरण रहा है। यह बताता है कि आज से डेढ़ सौ साल से भी पहले मोरबी के राजा की सोच कितनी प्रगतिशील और साइंटिफिक हुआ करती थी। मोरबी की एक अलग पहचान बनाने के लिए इस यूनिक ब्रिज का निर्माण किया गया था।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अंग्रेजों के समय का यह ‘हैंगिंग ब्रिज’ जब टूटा तो उस समय कई महिलाएं और बच्चे वहां मौजूद थे। इससे लोग नीचे पानी में गिर गए।लोग यहां पहुंचकर यूरोप की तकनीक का अनुभव किया करते थे। कैमरे वाले फोन आने के बाद सेल्फी का क्रेज बढ़ता गया। रविवार को लोग घूमने के लिए पुल पर पहुंचे थे।जैसे ही कोई मोरबी में प्रवेश करता, उसे यह सस्पेंशन ब्रिज आकर्षित करता था। नदी के किनारे का वो नजारा लोगों को विक्टोरियन लंदन का एहसास कराता था। राजकोट से 64 किमी दूर स्थित मोरबी में इमारतें 19वीं सदी के यूरोप के टक्कर की बनाई गई थीं।
मोरबी के पूर्व शासक अंग्रेजों की तकनीक से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने पूरे शहर में उसका इस्तेमाल किया था। शहर में आगंतुक का वेलकम यही पुल करता था जो 100 साल से भी पहले से अपने विशाल और विहंगम स्वरूप से लोगों को आकर्षित कर रहा था। पूरे शहर में यूरोपीय शैली की छाप दिखती है। आगे बढ़ने पर ग्रीन चौक चौराहा है, जहां तीन गेट से पहुंचा जा सकता है और हर गेट में राजपूत और इटालियन तकनीक का अक्स दिखाई देता है। स्थानीय लोग बता रहे हैं कि हादसे से ठीक पहले कुछ लोग पुल पर कूद रहे थे और उसके बड़े तारों को खींच रहे थे। हो सकता है कि भारी भीड़ के कारण पुल टूटकर गिर गया हो। पुल गिरने के चलते लोग एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े। दीपावली की छुट्टी और रविवार होने के कारण इस मशहूर पुल पर पर्यटकों की भीड़ उमड़ी हुई थी।