संसद के मानसून सत्र के शुरू होने से पहले एक संसदीय शब्दों की सूची तैयार की जाती है! जब से लोकसभा सचिवालय ने असंसदीय शब्दों की नई लिस्ट जारी की है, विपक्षी दल भड़के हुए हैं। वे कह रहे हैं कि भाजपा ने किस प्रकार से देश को बर्बाद किया, इसे बताने के लिए उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली हर अभिव्यक्ति को असंसदीय घोषित कर दिया गया है। मामले के तूल पकड़ने पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। उन्होंने साफ कहा कि संसदीय कार्यवाही के दौरान किसी शब्द के प्रयोग को प्रतिबंधित नहीं किया गया है बल्कि उन्हें संदर्भ के आधार पर कार्यवाही से हटाया जाता है। विपक्षी नेताओं के आरोपों पर उन्होंने कहा कि सभी सदस्य सदन की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। लोकसभा सचिवालय ने ‘असंसदीय शब्द 2021’ शीर्षक से ऐसे शब्दों और वाक्यों का नई फाइल तैयार की है जिसमें जुमलाजीवी, बाल बुद्धि सांसद, शकुनि, जयचंद, लॉलीपॉप, चाण्डाल चौकड़ी, गुल खिलाए, तानाशाह, भ्रष्ट, ड्रामा, अक्षम, पिठ्ठू, तुर्रम खां जैसे शब्द शामिल हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि पहली बार कुछ शब्दों को असंसदीय या अमर्यादित घोषित किया गया है। कुछ लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या यह लिस्ट पहली बार जारी की गई है?
क्या यह लिस्ट पहली बार जारी की गई है?
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि असंसदीय शब्दों वाली बुकलेट जारी करने की प्रथा 1954 से चली आ रही है और इसमें राज्य विधानसभाओं की कार्यवाही से हटाए गए शब्दों को भी शामिल किया जाता है। 1954 मतलब जब पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। दरअसल, विपक्ष यह कहकर आलोचना कर रहा था कि असंसदीय शब्दों के चयन में भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार का हाथ है। इस पर जवाब देते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि विधायिका स्वतंत्र है और कार्यपालिका संसद को निर्देश नहीं दे सकती है। उन्होंने कहा कि इसमें जिन शब्दों को कार्यवाही से हटाया गया है, उनमें सत्ता पक्ष द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द भी हैं।
बिरला ने कहा, ‘जिन शब्दों को कार्यवाही से हटाया गया है, उनमें विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों की ओर से उपयोग किए गए शब्द हैं। ऐसे में यह कहना उचित नहीं है कि विपक्ष द्वारा कहे गए शब्दों को चुनिंदा तरीके से हटाया गया है।’ उन्होंने कहा कि संदर्भ और अन्य सदस्यों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही से शब्दों को हटाने का निर्णय लिया गया।बिरला ने आलोचना करने वालों से कहा कि उन्हें 1100 पन्नों का वह शब्दकोष पढ़ना चाहिए जिसमें असंसदीय शब्द हैं। उन्होंने बताया कि कि ऐसे असंसदीय शब्दों की सूची 1954, 1986, 1992, 1999, 2004, 2009, 2010 में जारी की गई थी और 2010 के बाद से यह हर साल जारी की जाती है।
विपक्षी दलों ने ‘जुमलाजीवी’ और कई अन्य शब्दों को असंसदीय अभिव्यक्ति की श्रेणी में रखे जाने को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि वे पुस्तिका में असंसदीय शब्दों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने वाले आदेश को नहीं मानेंगे।
कहाँ से आया य़ह नियम?
दरअसल, संसदीय चर्चा के दौरान एक मानक रखा जाता है जिसमें कुछ शब्दों का इस्तेमाल करना अनुचित माना जाता है। इसे ही असंसदीय शब्द कहते हैं। यह नियम ब्रिटिश संसद में भी है। अपने देश में रूल वहीं से आया है। कई कॉमनवेल्थ देशों में यह परंपरा आज भी चली आ रही है। ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, न्यूजीलैंड की संसद में भी कुछ शब्दों को अशोभनीय माना गया है।अभी जिस लिस्ट पर बवाल मचा हुआ है कि वह 2021 की सूची है। ये लिस्ट हर साल अपडेट होती है। 1999 में पहली बार असंसदीय शब्दों की लिस्ट को किताब के रूप में तैयार किया गया। वैसे यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि किसी भी शब्द को अंससदीय घोषित नहीं कर दिया जाता बल्कि इसकी अपनी प्रक्रिया है। अगर स्पीकर को लगता है कि सदन में इस्तेमाल किए गए शब्द या वाक्य को पब्लिश करना ठीक या जनहित में नहीं है तो उसे कार्यवाही से हटाने का अधिकार है।असंसदीय शब्दों की लिस्ट आमतौर पर लोकसभा से निकलती है और राज्यसभा में भी इसका पालन होता है। इसी नियम को आगे सभी राज्यों की विधानसभाओं में फॉलो किया जाता है। फिर भी अगर किसी संसद सदस्य ने इस शब्द का इस्तेमाल किया तो उसे कार्यवाही से स्पीकर हटा सकते हैं। जो उनके ऊपर निर्भर करता है!