Friday, November 22, 2024
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चंडीगढ़ एमएमएस लीक होने के बाद क्या सबक ले दुनिया?

हाल ही के दिनों में चंडीगढ़ एमएमएस के बारे में तो आपने सुना ही होगा! कई नौजवान जोड़ों की तरह राशी और अमित भी कोविड के दौरान वीडियो कॉल्‍स पर लगे रहते थे। दोनों एक ही जिले से होने के बावजूद मिल नहीं पा रहे थे। जब दोनों की मुलाकात हुई तब राशी को अहसास हुआ कि अमित वैसा नहीं है, जैसा स्‍क्रीन पर नजर आता था। उसने रिश्‍ता तोड़ने की कोशिश की तो उधर से सोशल मीडिया पर स्‍टाकिंग शुरू हो गई। अमित खुद को नुकसान पहुंचाने की धमकी देने लगा। आखिर में उसने राशी की बहन को वीडियो चैट्स के आपत्तिजनक स्‍क्रीनशॉट्स भेजे। रति फाउंडेशन नाम के एनजीओ की मदद से राशी उन अकाउंट्स को बंद करवाने में सफल रहीं जिनके जरिए अमित उसकी फोटोज वायरल कर रहा था। यह केवल राशी का अनुभव नहीं है। ऐसे कई नौजवान कपल हैं जिनके साथ यही कहानी दोहराई जा चुकी है। अपने पार्टनर को भेजी गईं न्‍यूड तस्‍वीरें बाद में उनकी नींद उड़ाने आ जाती हैं। बिना इजाजत इमेज शेयरिंग या रिवेंज पॉर्नोग्रफी के मामले बढ़ रहे हैं।

एक साधारण सी सर्च पर पता चल जाता है कि यह समस्‍या कितनी बड़ी है। निशाने पर बॉलिवुड, कोलीवुड और भोजपुरी फिल्‍मों की कई अभिनेत्रियां होती हैं। सबसे ताजा उदाहरण चंडीगढ़ MMS लीक का है जिसमें कथित रूप से एक स्‍टूडेंट ने अपने बॉयफ्रेंड से वीडियो साझा किया। NCRB का डेटा बताता है कि 2021 में बदला लेने की नीयत से 1,716 साइबर क्राइम हुए। McAfree का 2014 का एक सर्वे कहता है कि 28% भारतीयों ने अश्‍लील तस्‍वीरें सार्वजनिक करने की धमकी दी थी। इंटरनेट पर मौजूद बाकी चीजों की तरह, ऐसी तस्‍वीरें/वीडियो हटवाना भी आसान नहीं है।

एडवोकेट और लॉ प्रफेसर देबरती हलदर एक NGO (सेंटर फॉर साइबर विक्टिम काउंसलिंग) चलाती हैं। उनके एनजीओ ने पिछले डेढ़ साल में रिवेंज पॉर्न के 200 मामले देखे हैं। उन्‍होंने कहा, ‘मैं 2009 से काम कर रही हैं और मैंने ऐसे बहुत सारे मामले देखे हैं। इनमें से 99% मामले आपसी रिवेंज पॉर्न है- यानी प्रेमियों या पति-पत्‍नी के बीच बनाए गए वीडियो। ऐसे अपराधों का एक पैटर्न होता है। कई बार अपराधी अपने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक तस्‍वीरें डालता है। कुछ मामलों में महिला की फेक प्रोफाइल बनाकर उसपर तस्‍वीरें डाली जाती हैं जिससे लगे कि वह खुद यह सब कर रही है।

चिंता की बात यह है कि कई मौकों पर पीड़‍िता ने खुद ऐसी फोटो तक नहीं भेजी होती। हलदर के अनुसार, ‘मॉर्फिंग बेहद आम है। एक मामला था जिसमें महिला के कुलीग ने उसकी फोटो मॉर्फ की थी और ऐसा दिखाया था कि वह सेक्‍स कर रही है।’ रति फाउंडेशन के मेरी इंस्टिट्यूट में काम करने वाले सिद्धार्थ बताते हैं कि हेल्‍पलाइन पर नाबालिगों के अलावा वयस्‍कों के भी कॉल आते हैं। उन्‍होंने कहा, ‘हमने एक चीज नोटिस की है कि प्रेम संबंधों में इंन्‍फॉर्मेशन बड़ा मिसमैच होती है। लड़के को लड़की की पूरी हिस्‍ट्री पता होती है, उसके परिवार-दोस्‍तों सबके बारे में पता होता है जबकि लड़की को लड़के के बारे में काफी कम जानकारी होती है।

सेक्‍सटिंग के आम होने से भी ऐसे मामले बढ़े हैं। साइबरपीस फाउंडेशन के फाउंडर और ग्‍लोबल प्रेजिडेंट, मेजर विनीत कुमार कहते हैं कि ‘नौजवानों के बीच तस्‍वीरें करने का चलन बेहद आम है। ऐसा मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स पर भी हो रहा है जहां बातचीत के बाद संवेदनशील तस्‍वीरों और वीडियोज तक बात बढ़ती है। बाद में अपराधी उनका इस्‍तेमाल ब्‍लैकमेल करने के लिए करता है।’

सेक्‍स एजुकेटर लीजा मंगलदास को लगता है कि समस्‍या सेक्‍सटिंग नहीं है। उनके मुताबिक, समस्‍या कल्‍चर की है जो सोचना है कि एक नग्‍न शरीर, खासतौर से महिला का, किसी तरह की ‘नीचता’ है। लीजा के अनुसार, ‘ऐसे कॉन्‍टेंट की अपील और क्‍यों लोग किसी सेलिब्रिटी की लीक तस्‍वीरें सर्च करते हैं, यही होती है कि हम महिला की सेक्‍सुएलिटी को दिखाने के आइडिया तक को शर्म से जोड़ देते हैं।’

ऐसे मामलों में विक्टिम को ब्‍लेम करना आम है। यह एक बड़ी वजह है कि लोग पुलिस के पास नहीं जाते। हलदर के अनुसार, ‘अक्‍सर पुलिस इसे अपराध की तरह नहीं लेती।’ एक दिक्‍कत और है कि ऐसे मामलों के लिए कोई खास कानून नहीं है। ज्‍यादातर मामले आईटी एक्‍ट की धारा 67 के तहत दर्ज होती हैं। हलदर कहती हैं कि रिवेंज पॉर्न के लिए विशेष कानून बनना चाहिए। अपनी किताब ‘साइबर सेक्‍सी’ में रिचा कौल लिखती हैं कि धारा 67 में अश्‍लीलता की परिभाषा स्‍पष्‍ट नहीं है। बेहतर विकल्‍प सेक्‍शन 66E हो सकता है जो ‘बिना अनुमति व्‍यक्ति के निजी अंग की तस्‍वीर को कैप्‍चर, पब्लिश और ट्रांसमिट करने’ की सजा देता है।

सिद्धार्थ बताते हैं कि कई पीड़‍िताएं सबसे पहले सारे मेसेज डिलीट कर देती हैं। उनके मुताबिक, ‘सबूत नष्‍ट करने से कॉन्‍टेंट टेकडाउन और मुश्किल हो जाता है।’ आर्थिक रूप से कमजोर तबकों और ग्रामीण इलाकों में जागरूकता का भी अभाव है।

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