हाल ही में भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जिला वकीलों को एक संदेश दे दिया है! सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मंदिरों पर लगे ध्वजों से प्रेरणा लेते हुए जिला अदालतों के वकीलों से इस तरह काम करने के लिए कहा कि आने वाली पीढ़ियों तक ‘न्याय की ध्वजा’ फहराती रहे। उन्होंने कहा कि ऐसे समाज की कल्पना करें जहां हर एक नागरिक को इंसाफ का अधिकार मिले। लोग सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट नहीं आते। शुरुआत में लोग जिला अदालतों में जाते हैं। जिला अदालतें ही इंसाफ की पहली सीढ़ी के रूप में उभरती हैं। उन्होंने जिला अदालतों के वकीलों से कहा कि बार के सदस्यों के रूप में आपको नागरिकों में आत्मविश्वास पैदा करना होगा। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, जिला अदालत के वकील के रूप में यह हमारी दक्षता है कि हम वास्तव में यह सुनिश्चित करेंगे कि न्याय की यह ध्वजा आने वाली पीढ़ियों तक फहरती रहे। एक रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई चंद्रचूड़ ने राजकोट में जिला अदालतों के वकीलों को संबोधित कर रहे थे। द्वारका और सोमनाथ मंदिरों के ऊपर ध्वजा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं आज सुबह द्वारकाधीश जी में ध्वजा से प्रेरित हुआ। ऐसी ही ध्वजा मैंने जगन्नाथ पुरी में देखी थी। लेकिन हमारे देश की परंपरा की इस सार्वभौमिकता को देखिए, जो हम सभी को एक साथ बांधती है। इस ध्वजा का हमारे लिए विशेष अर्थ है। और वह अर्थ है – वकीलों के रूप में, जजों के रूप में या नागरिकों के रूप में हम सभी को एकजुट करने वाली शक्ति है। और वह एकीकृत शक्ति हमारी मानवता है, जो कानून के शासन और भारत के संविधान द्वारा शासित होती है।’
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने और समाधानों को खोजने के लिए महात्मा गांधी के जीवन और आदर्शों से प्रेरित होकर कई राज्यों का दौरा करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि उनकी दो दिवसीय गुजरात यात्रा उसी प्रयास का हिस्सा थी। सीजेआई ने कहा, ‘मैंने पिछले एक साल में कई राज्यों का दौरा करने की कोशिश की ताकि मैं हाई कोर्ट और जिला अदालतों के अधिकारियों से मिल सकूं, उनकी समस्याओं को सुन सकूं और इस तरह, हम न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान ढूंढ सकें… उनके साथ बातचीत करके, मैं उनकी समस्याओं को समझने और प्रभावी समाधानों को खोजने की कोशिश कर रहा हूं।’ चीफ जस्टिस ने बताया कि उनके दौरे का हाई कोर्ट के जजों और जिला अदालतों के अधिकारियों के साथ भारतीय न्यायपालिका की उपलब्धियों को साझा करना भी है।
बता दे कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ अक्सर हंसते-खिलखिलाते दिखते हैं। लेकिन, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में उनका जबर्दस्त गुस्सा देखने को मिला। एक वकील के बातचीत का लहजा उन्हें सख्त नागवार गुजरा। याचिका की लिस्टिंग पर तीखी नोकझोंक के दौरान सीजेआई ने उस वकील को कड़ी चेतावनी दी। वकील को फटकार लगाते हुए सीजेआई ने उसे अपनी आवाज धीमी करने को कहा। यह भी हिदायत दी कि वह कोर्ट को डराने-धमकाने की कोशिश नहीं करें। जब सीजेआई चंद्रचूड़ उस वकील से गुस्साकर बोले तो पूरी कोर्ट में अचानक सन्नाटा पसर गया। नोकझोंक याचिका की लिस्टिंग पर शुरू हुई। जस्टिस चंद्रचूड़ को वकील की बातचीत का लहजा कतई पसंद नहीं आ रहा था। फिर एक समय आया जब उनसे रहा नहीं गया। वकील को टोकते हुए सीजेआई ने उसे मर्यादा में रहने की नसीहत दी। नाराजगी जाहिर कर सीजेआई बोले, ‘एक सेकेंड, अपनी आवाज धीमी करें। आप सुप्रीम कोर्ट की फर्स्ट कोर्ट के सामने बहस कर रहे हैं; अपनी आवाज कम करें वरना मैं आपको अदालत से बाहर करवा दूंगा।’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने वकील की सामान्य कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए पूछा, ‘आप आम तौर पर कहां पेश होते हैं? क्या आप हर बार न्यायाधीशों पर इसी तरह चिल्लाते हैं?’ मुख्य न्यायाधीश ने कोर्टरूम में मर्यादा बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ‘कृपया पहले अपनी आवाज धीमी करें। अगर आपको लगता है कि आप अपनी आवाज उठाकर हमें डरा सकते हैं तो आप गलत हैं। ऐसा 23 सालों में नहीं हुआ है। मेरे करियर के आखिरी साल में भी ऐसा नहीं होगा।’ मुख्य न्यायाधीश की कड़ी चेतावनी से वकील चौंक गया। उसने तुरंत माफी मांगी। फिर और अधिक विनम्र तरीके से अपनी बात आगे बढ़ाई। आज की घटना पहली बार नहीं है जब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कोर्टरूम की मर्यादा बनाए रखने को कहा है। एक अन्य मौके पर मुख्य न्यायाधीश ने अपने कोर्टरूम के अंदर एक वकील के मोबाइल फोन पर बात करने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘क्या यह कोई मार्केट है कि आप फोन पर बात कर रहे हैं। इनका मोबाइल फोन जब्त कर लीजिए।’
पिछले साल मार्च में जस्टिस चंद्रचूड़ पर विकास सिंह नाम के सीनियर एडवोकेट चिल्लाए थे। वह सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के लिए भूमि से जुड़े एक मामले को आगे बढ़ाने की अपील कर रहे थे। तब मुख्य न्यायाधीश गुस्साकर बोले थे, ‘चुप रहिए। अभी इस अदालत को छोड़ दीजिए। आप हमें डरा नहीं सकते!’