लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव मुसीबत खड़ी कर सकता है! लोकसभा चुनाव के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल और सिक्किम में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। लोकसभा चुनाव में एनडीए के लिए 400 से ज्यादा सीटें जीतने के मिशन के साथ बीजेपी ने ओडिशा और आंध्र प्रदेश पर खास फोकस किया है। आंध्र में तो टीडीपी-बीजेपी-जनसेना का गठबंधन हो गया है, लेकिन ओडिशा में बीजेपी और पिछले 25 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेडी के बीच समझौता नहीं हो सका है। वहीं आंध्र प्रदेश में इस वक्त जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में YSRCP की सरकार है। पिछले विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी के निशाने पर पूरी तरह चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP थी, वहीं इस बार टीडीपी एनडीए में साथ है। ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी संग बीजेपी के गठबंधन की बात नहीं बन पाई है। 1998 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल एक साथ लड़े थे। बीजेडी ने 12 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 पर जीत हासिल की, जबकि बीजेपी ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 पर जीत हासिल की। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजू जनता दल ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेडी को 20 और बीजेपी को 1 सीट मिली। उसके बाद राज्य में बीजेपी का कैडर मजबूत होता गया और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर ओडिशा की कुल 21 में से 8 सीटें जीती थीं। बीजेडी को 12 सीटों पर जीत मिली थी। एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। ओडिशा विधानसभा में भी बीजेपी के 23 विधायक हैं और बीजेडी के 112 विधायक हैं। कांग्रेस के राज्य में 9 विधायक हैं। केंद्र की मोदी सरकार के साथ बीजेडी सुप्रीमो नवीन पटनायक के संबंध अच्छे रहे हैं।
आंध्र प्रदेश में अभी जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में वाईएसआरसीपी की सरकार है। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी का गठबंधन टूट गया था। इस बार टीडीपी, बीजेपी और जनसेना पार्टी मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। जगन मोहन रेड्डी के पिता राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में 2004 और 2009 में सत्ता कब्जाई। 2009 में राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद जगन मोहन को लगा कि कांग्रेस में उनकी उपेक्षा हो रही है और फिर जगन ने 2011 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी बना ली। 2014 का चुनाव टीडीपी और बीजेपी ने मिलकर लड़ा था। तब भी जगन मोहन की पार्टी ने 70 सीटें जीती और 28 पर्सेंट वोट हासिल किए। कांग्रेस का सफाया तय हो चुका था। 2019 के चुनाव से पहले ही 2018 में टीडीपी ने आंध्र को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर बीजेपी से नाता तोड़ दिया और फिर 2019 का चुनाव अलग लड़ा। तब वाईएसआरसीपी 151 सीटों पर जीत के साथ सत्ता में आई। अब इस बार राज्य में मुकाबला वाईएसआरसीपी बनाम टीडीपी-बीजेपी-जनसेना गठबंधन का है। 2014 में जब टीडीपी-बीजेपी साथ थे तो टीडीपी ने 102 सीटें जीती थी, जबकि बीजेपी को 4 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं अलग होने के बाद 2019 के चुनाव में टीडीपी को विधानसभा चुनाव में 23 जबकि बीजेपी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। कांग्रेस भी अपना खाता नहीं खोल पाई। 2019 लोकसभा चुनाव में 25 सीटों वाले इस राज्य में वाईएसआर कांग्रेस ने 22 पर जीत दर्ज की है। टीडीपी के खाते में 3 सीटें गई थी।
ओडिशा में जहां बीजेपी मुख्य विपक्षी पार्टी है, वहीं आंध्र प्रदेश में बीजेपी गठबंधन में है। जिस तरह से बीजेपी ने ओडिशा में अपना कैडर मजबूत किया है, उसको देखते हुए ओडिशा में बीजेपी का प्रदर्शन पिछली बार के मुकाबले बेहतर रहेगा। हालांकि, राज्य विधानसभा में नवीन पटनायक अभी भी लोगों की पसंद हो सकते हैं और विधानसभा में उनकी पार्टी बीजेपी को बहुमत के आसार हैं। लोकसभा में पिछली बार की तुलना में बीजेपी 8 सीटों से ज्यादा हासिल कर सकती है। वह कहते हैं कि साउथ में अक्सर पांच साल बाद सरकारें बदल जाती है। तमिलनाडु में जयललिता को लगातार दो बार मौका मिला, लेफ्ट और टीआरएस भी दो बार जीती। आंध्र में भी 2004-2014 कांग्रेस की सरकार थी लेकिन इस बार का चुनाव वाईएसआरसीपी के लिए बड़ी चुनौती उभरकर आ गया है। टीडीपी अकेले कमजोर थी लेकिन बीजेपी और जनसेना के आने के बाद वो एक मजबूत पार्टी बनकर उभर रही है। पिछले चुनाव में वाईएसआरसीपी और टीडीपी के बीच में काफी गैप था। दूसरा आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के अलग होने के बाद वहां पर ग्रामीण सीटें बहुत है, जहां पर उसमें वाईएसआर का काफी प्रभाव है। टीडीपी का उभार शहरों तक देखने को मिल रहा है, ऐसे में लग रहा है कि बेशक वाईएसआर की सीटें कम होंगी लेकिन हो सकता है कि उन्हें एक बार फिर सीएम बनने का मौका मिले।