यूपी में योगी आदित्यनाथ के द्वारा महिला सुरक्षा हेतु एक और महत्वपूर्ण कदम उठा लिया गया है! उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने महिलाओं के विरूद्ध बलात्कार और बच्चों के विरूद्ध यौन हमलों के घृणित अपराधों के प्रति वर्तमान कानून को और अधिक कठोर करते हुए अब दुष्कर्म एवं पॉक्सो एक्ट से सम्बन्धित अपराध की धाराओं में संशोधन कर अपराधियों की अग्रिम जमानत की व्यवस्था को समाप्त कर दिया है। सरकार ने जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता का परिचय देते हुए ऐसे घृणित अपराधों के प्रति कठोर कदम उठाये हैं। सरकार का मानना है कि महिलाओं एवं बच्चों के न सिर्फ शरीर अपितु उनकी आत्मा तक को गम्भीर चोट पहुंचाने वाले ऐसे अपराधियों का मनोबल सरकार के इस निर्णय से तोड़ा जा सकेगा और समाज में महिलाओं एवं बालकों के मन में राज्य की विधि व्यवस्था के प्रति अटूट विश्वास उत्पन्न होगा।उत्तर प्रदेश शासन द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम, 2018 में संशोधन के माध्यम से धारा-438 की उपधारा-6 में उपखण्ड-5 के माध्यम से पाॅक्सों अधिनियम, 2012 तथा उपधारा-6 में उपखण्ड-सी के माध्यम से भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 376, 376ए, 376एबी, 376बी, 376सी, 376डी, 376डीए, 376डीबी, 376ई को सम्मिलित करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम, 2018 में संशोधन करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता उत्तर प्रदेश संशोधन विधेयक, 2022 के माध्यम से कार्यवाही की गई है।
प्रवक्ता ने बताया कि राज्य में महिला एवं बाल अपराधों से संबंधित अपराधियों के विरूद्ध दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 में दण्ड प्रक्रिया संहिता उत्तर प्रदेश संशोधन, 2018 द्वारा अंतः स्थापित की गयी धारा 438 की उपधारा 6 में अग्रिम जमानत के अपवादों में पाॅक्सो अधिनियम 2012 के अपराधों तथा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 में वर्णित बलात्कार से संबंधित समस्त अभियोगों को भी सम्मिलित कर दिया जाना समीचीन पाते हुए अग्रिम जमानत संबंधी धारा 438 मे उक्त आशय का संशोधन प्रस्तावित किया गया। सरकार के इस निर्णय से महिलाओं के प्रति बलात्कार एवं बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न जैसे जघन्य अपराधकर्ताओं को कड़ा संदेश दिया गया है कि इन अपराधों में प्रभावी कार्रवाही के लिए प्रदेश सरकार बहुत सख्त है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की बात करें तो देश में महिलाओं के विरूद्ध अपराध के अन्तर्गत वर्ष 2021 में 4,28्,278 भादवि व अधिनियम के अपराध पंजीकृत हुए है जबकि यूपी में यह संख्या 56,083 है। पूरे देश का क्राइम रेट 64.5 रहा वहीं यूपी में ये घटकर 50.5 रहा, जो देश में 16वें स्थान पर है। देश के अन्य राज्यों का क्राइम रेट केरल 73.3, पश्चिम बंगाल 74.6, राजस्थान 105.4, तेलंगाना 111.2 व दिल्ली 147.6 रहा है।
भारत में बलात्कार अपराध शीर्षक के अन्तर्गत वर्ष 2021 मे घटित अपराधों की कुल संख्या 31677 है जबकि यूपी में यह संख्या 2845 है। देश का क्राइम रेट 4.8 और यूपी का 2.6 है, जो देश में 23वें स्थान पर है। अन्य राज्यों का क्राइम रेट जैसे- केरल 4.2, तेलंगाना 4.4, छत्तीसगढ़ 7.4, दिल्ली 12.9 व राजस्थान 16.4 रहा है। इसी तरह शीलभंग (354 भादवि) अपराध शीर्षके तहत वर्ष 2021 में सम्पूर्ण भारत में इन अपराधों की कुल संख्या 89200 व क्राइम रेट 13.4 रहा है जबकि यूपी में यह संख्या 9393 रही है और क्राइम रेट देश की अपेक्षा कम 8.5 रहा है जो भारत में 19वें स्थान पर है। दिल्ली, केरल, तेलंगाना व राजस्थान का क्राइम रेट क्रमशः 21.4, 22.0, 23.3 व 23.5 रहा है।
वर्ष 2021 मे भारत में बच्चों के विरूद्ध (भादवि व अधिनियम शीर्षक) के अन्तर्गत 149404 अपराध घटित हुए हैं। यूपी की यह संख्या 16838 है। इस अपराध शीर्षक में भी सम्पूर्ण भारत के क्राइम रेट 33.6 की अपेक्षा यूपी का क्राइम रेट 19.7 है, जो देश में 28वें स्थान पर है। पश्चिम बंगाल 31.7, केरल 48.2, तेंलगाना 49.8, छत्तीसगढ़ 61.1 व दिल्ली 128.5 रहा है।
भारत में पॉक्सो अधिनियम शीर्षक के अन्तर्गत वर्ष 2021 मे 53874 अपराध घटित हुए हैं, जबकि यूपी की यह संख्या 7129 है। इसमें सम्पूर्ण भारत का अपराध दर 12.1 है जबकि यूपी का उससे कम 8.4 है। देश में यह 21वें स्थान पर है। पश्चिम बंगाल 8.7, तेलंगाना 23.7, छत्तीसगढ़ 23.9, दिल्ली 26.3 व केरल 28.1 है।
बता दें हाल ही में योगी सरकार ने विधानसभा में दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन ) विधेयक 2022 पास कराया है। इस सीआरपीसी संशोधन विधेयक के मुताबिक, महिलाओं से रेप और बच्चियों का यौन उत्पीड़न करने वालों को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने सदन को बताया कि बालिकाओं और महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं मिलने से आरोपियों द्वारा सबूत नष्ट करने की संभावना कम हो जाएगी। सुरेश कुमार खन्ना आगे कहा कि दावा याचिका दायर करने की अवधि को तीन महीने से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है। इसके अलावा, एक प्रावधान है कि ट्रिब्यूनल को मृत्यु के मामले में न्यूनतम 5 लाख रुपये और स्थायी विकलांगता के मामले में 1 लाख रुपये की मंजूरी का अधिकार होगा। हालांकि, अधिक रकम की मंजूरी पर ट्रिब्यूनल फैसला ले सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसके खिलाफ पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराई जाती है और कार्यवाही की जा सकती है। ये अपराध जमानती होता है और किसी निर्दोष व्यक्ति को यह आभास होता है, उसके विरुद्ध पुलिस द्वारा कार्यवाही की जा सकती है तो वह अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट में जा सकता है। दरअसल अग्रिम जमानत का अर्थ है कि गिरफ्तार होने से पहले कोर्ट द्वारा रिहा करना। अग्रिम जमानत में व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाता है। जमानत एक अस्थायी स्वतंत्रता है। आरोपों की गंभीरता को देखते हुए न्यायाधीश जमानत या अग्रिम जमानत प्रदान करते हैं। अग्रिम जमानत देने का उद्देश्य निर्दोष व्यक्ति की गरिमा को बचाना है। इसमें अपराध सिद्ध होने तक या न्यायाधीश के विवेकानुसार निश्चित समय तक अग्रिम जमानत प्रदान की जाती है।