आज हम आपको बताएंगे कि यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और भारत में क्या समझौता हुआ! भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम उल्फा के बीच दिल्ली में एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। इस समझौते के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र के सबसे बड़े विद्रोही समूहों में से एक उल्फा के एक गुट की लंबी लड़ाई अब खत्म हो गई है। हालांकि, पारेष बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा स्वतंत्र गुट अभी भी बातचीत के खिलाफ है। दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि केंद्र सरकार उल्फा की सभी जायज मांगों को समयबद्ध तरीके से पूरा करेगी और उल्फा संगठन को भंग कर दिया जाएगा। असम के सबसे पुराने विद्रोही समूह के साथ हुए इस शांति समझौते का मकसद अवैध घुसपैठ, मूल निवासियों के लिए जमीन का अधिकार और असम के विकास के लिए एक वित्तीय पैकेज जैसे मुद्दों को सुलझाना है। उल्फा और भारत सरकार में समझौते के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि लंबे समय तक असम और पूरे उत्तर-पूर्व ने हिंसा झेली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में ही उग्रवाद, हिंसा और विवाद मुक्त उत्तर-पूर्व भारत की कल्पना लेकर गृह मंत्रालय चलता रहा है। भारत सरकार, असम सरकार और ULFA के बीच जो समझौता हुआ है, इससे असम के सभी हथियारी गुटों की बात को यहीं समाप्त करने में हमें सफलता मिल गई है। ये असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों की शांति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अमित शाह ने आगे कहा कि हम उल्फा के नेतृत्व को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि शांति प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए उन्होंने केंद्र पर जो भरोसा जताया है, उसका सम्मान किया जाएगा।
अमित शाह के साथ शांति समझौते के लिए मौजूद असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने भी अपनी बात रखी। सरमा ने कहा कि आज असम के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल और गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में असम की शांति प्रक्रिया निरंतर जारी है। इस पूरे मामले में बहुत कम समय लगेगा। मेरे हिसाब से इसके कार्यान्वयन में 1 साल से अधिक समय नहीं लगेगा। खुद गृह मंत्री भी 2-2 महीनें में मॉनिटर करते हैं कि जिस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं उस पर काम हो रहा है या नहीं।
उल्फा या यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में सक्रिय एक प्रमुख आतंकवादी और उग्रवादी संगठन है। इसका गठन 1979 में परेश बरुआ, अरबिंद राजखोवा और अनूप चेतिया जैसे युवा नेताओं ने किया था। उल्फा का उद्देश्य असम को एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य बनाना है। शुरुआत में, उल्फा को गरीबों और लाचारों की मदद करने वाले एक समूह के रूप में देखा जाता था। लेकिन जल्द ही उनके तरीके बदल गए और वे भारतीय सरकार के खिलाफ हथियारबंद लड़ाई करने लगे। ULFA को आतंकवादी संगठन घोषित करने का मुख्य कारण था चाय बागानों के एक मालिक सुरेंद्र पॉल की हत्या, वह लॉर्ड स्वराज पॉल के भाई थे। इसके बाद उल्फा ने दूसरे चाय बागान मालिकों को डरा-धमकाकर पैसे ऐंठने शुरू कर दिए। इन घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सरकार पर दबाव डाला, जिसके चलते ULFA के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई। भारत सरकार ने उल्फा को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया था।
सबसे पहले, हिंसा में बड़ी कमी आएगी। उल्फा ने असम में कई सालों तक हिंसा फैलाई है, जिससे कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और संपत्ति का भी नुकसान हुआ है। इस समझौते के बाद, उल्फा अपने हथियार डाल देगा और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को पूरा करने का प्रयास करेगा। दूसरा, विकास में तेजी आएगी। उल्फा के विद्रोह के कारण असम का विकास बाधित हुआ है। समझौते के बाद, असम सरकार को विकास के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध होंगे। सरकार अवैध घुसपैठ, मूल निवासियों के लिए जमीन का अधिकार और असम के आर्थिक विकास जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगी।
तीसरा, लोगों में शांति और स्थिरता की भावना बढ़ेगी। उल्फा के विद्रोह के कारण असम में लोगों में भय और अशांति का माहौल था। समझौते के बाद, लोगों को उम्मीद होगी कि असम में शांति और स्थिरता आएगी। चौथा इस समझौते के बाद से असम में लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा। यही नहीं स्वदेशी लोगों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार भी मिल पाएगा।