Sunday, December 22, 2024
HomeIndian Newsसुपरटैक चेयरमैन का क्या आया बयान? जानिए!

सुपरटैक चेयरमैन का क्या आया बयान? जानिए!

हाल के दिनों में सुपरटैक के ट्विन टावर जमीनदोष हो चुके हैं! दिल्ली के कुतुब मीनार से भी ऊंचे दो टावर। एपेक्स और सियान। रविवार को ताश के पत्‍तों के माफिक धराशायी हो गए। 100 मीटर ऊंचे इन टावरों का ढहाया जाना कई मायनों में महत्‍वपूर्ण है। यह करप्‍शन पर प्रहार है। इसने बिल्डरों और विकास प्राधिकरणों का गुरूर ध्वस्त किया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस निर्माण को गैर-कानूनी बताया था। उसने फैसला दिया था कि बेईमानी और भ्रष्‍टाचार से बने इन टावरों को जमींदोज कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने भले सुपरटेक के खिलाफ दो-टूक फैसला सुनाया हो। लेकिन, कंपनी और इसके चेयरमैन खुद को पाक-साफ बताने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। दोनों मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि उन्‍होंने कोई गलती की है। इसकी बानगी रविवार को देखने को मिली। इन टावरों को गिराए जाने से पहले कंपनी की ओर से बयान जारी कर दिया गया। इसमें कहा कि उसने ट्विन टावर बनाने में कुछ भी गलत नहीं किया है। इनका निर्माण नोएडा विकास प्राधिकरण की ओर से मंजूर भवन (बिल्डिंग) योजना के मुताबिक ही किया गया था। इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया था। फिर सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा ने भी करीब-करीब यही बात दोहराई। उन्‍होंने कहा कि अदालत ने भले ही इन टावरों को गिराने का आदेश दिया। लेकिन, सुपरटेक ने प्राधिकरण की स्वीकृत योजना के अनुरूप ही इन्‍हें बनाया था। सवाल है कि सुपरटेक की इस योजना के खिलाफ फैसले पर फैसले आने के बाद भी यह कोशिश क्‍यों की जा रही है इनमें कुछ गड़बड़ नहीं था। कंपनी ने सभी नियमों का पालन किया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एपेक्स और सियान टावरों को गिराया गया है। शीर्ष न्‍यायालय ने एमराल्ड कोर्ट सोसायटी परिसर के बीच इस निर्माण को नियमों का उल्लंघन बताया था। रविवार टावरों को ढहाए जाने से पहले इन टावरों को बनाने वाली सुपरटेक ने एक बयान जारी किया। इसमें उसने कहा कि ट्विन टावरों को नोएडा विकास प्राधिकरण के प्‍लान के मुताबिक बनाया गया था। इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया था। ट्विन टावर सेक्टर 93ए में एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्‍ट का हिस्सा थे। कंपनी के मुताबिक, इन्हें प्राधिकरण की ओर से आवंटित जमीन पर बनाया गया। इन दो टावरों समेत बिल्डिंग प्‍लान को प्राधिकरण ने 2009 में मंजूरी दी थी। यह निर्माण राज्य सरकार की ओर से उस समय घोषित भवन उपनियमों के पूरी तरह से अनुरूप था। कंपनी ने कहा कि कोई भी काम नियमों से अलग हटकर नहीं किया गया। निर्माण प्राधिकरण को पूरा भुगतान करने के बाद ही किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण को तकनीकी आधार पर संतोषजनक नहीं पाया। इसके बाद इन दो टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा ने भी कहा कि सुपरटेक ने नोएडा विकास प्राधिकरण की तरफ से स्वीकृत भवन योजना के अनुरूप ही टावरों का निर्माण किया था।

इस सफाई का क्या मतलब

सुपरटेक और इसके चेयरमैन की सफाई का मतलब समझने की जरूरत है। अगर वे बार-बार खुद को पाक-साफ बता रहे हैं तो उसके पीछे कारण है। इन दो टावरों के ध्‍वस्‍त होने के बाद कंपनी के दूसरे प्रोजेक्‍टों पर असर पड़ने की आशंका है। कंपनी नहीं चाहती कि वह किसी भी तरह से मार्केट में दागदार दिखाई दे। शायद इसीलिए उसने बार-बार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अक्षरश: सम्‍मान करने की बात कही है। अपने बयान में कंपनी ने कहा है कि इस डेमोलिशन से उसकी अन्य रियल एस्टेट परियोजनाओं पर असर नहीं पड़ेगा। घर खरीदारों को उनके फ्लैट समय पर मुहैया करवाए जाएंगे। सुपरटेक ने यह भी कहा कि उसने घर खरीदारों को 70,000 से ज्‍यादा आवास मुहैया कराए हैं। बाकी के घर खरीदारों को भी तय समयसीमा में घर दिए जाएंगे। वह सभी घर खरीदारों को भरोसा दिलाना चाहती है कि न्यायालय के आदेश का अन्य परियोजनाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सभी परियोजनाएं जारी रहेंगी।

इस कदम के बाद सुपरटेक के चेयरमैन का दर्द भी छलका है। उन्‍होंने कंपनी का नुकसान गिनाया है। बताया है कि इससे करीब 500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इन टावर्स के निर्माण पर आई लागत और कर्ज पर देय ब्याज के रूप में कंपनी को यह लॉस होने का अनुमान है। घर खरीदारों की संस्था फोरम फॉर पीपल्स कलेक्टिव अफर्ट्स (एफपीसीई) ने नोएडा में सुपरटेक के ट्विन टॉवर गिराए जाने की कार्रवाई को फ्लैट मालिकों के लिए एक बड़ी जीत बताया और कहा कि इस कदम से बिल्डरों और विकास प्राधिकरणों का अहंकार भी ध्वस्त हुआ है। इसके उलट घर खरीदारों की संस्था फोरम फॉर पीपल्स कलेक्टिव अफर्ट्स (एफपीसीई) ने नोएडा में सुपरटेक के ट्विन टॉवर गिराए जाने की कार्रवाई को फ्लैट मालिकों के लिए एक बड़ी जीत बताया है। उसके मुताबिक, इस कदम से बिल्डरों और विकास प्राधिकरणों का अहंकार भी ध्वस्त हुआ है।

इस पूरे घटनाक्रम पर उद्योग जगत ने भी प्रतिक्रिया दी है। इसमें उनका कहना है कि इससे रियल एस्टेट उद्योग के सभी पक्षकारों को यह सबक मिलेगा कि भवन नियमों का उल्लंघन होने पर जवाबदेही तय की जाएगी। उद्योग जगत ने कहा कि रियल एस्टेट (नियमन और विकास) कानून, 2016 के तहत राज्य नियामक प्राधिकरणों को और सशक्त बनाना चाहिए। इससे वे उपभोक्ता हितों की रक्षा कर सकेंगे। चूक करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो सकेगी। रियल एस्टेट क्षेत्र की शीर्ष संस्था क्रेडाई (राष्ट्रीय) के अध्यक्ष हर्ष वर्धन पटोदिया ने कहा, ‘यह निर्णय उस नए भारत का प्रतीक है जिसमें हम रह रहे हैं, जो सर्वश्रेष्ठ गतिविधियों, शासन और कानून का पालन करने वाला है। इस निर्णय में हम सुप्रीम कोर्ट और अधिकारियों के साथ हैं।’ नाइट फ्रैंक इंडिया के सीएमडी शिशिर बैजल ने कहा कि यह रियल एस्टेट को पारदर्शी और एक जिम्मेदारी वाला कारोबार बनाने के लिए बड़ा और मजबूत कदम है।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments