कुछ फिल्में ऐसी होती जिनको देखकर हम इंटरटेन होते हैं, वही कुछ फिल्में ऐसी होती है जिन्हें देखकर हम कुछ नया सीखते हैं, हमारा दिमाग कुछ नया सोचने पर मजबूर हो जाता है.
पर मुझे सबसे ज्यादा पसंद ऐसी फिल्मे आती है जो हमे इंटरटेनमेंट तो देती ही है और साथ ही कुछ नया सीखने में मदद करती हैं. और लंबे समय बाद मैं एक ऐसी ही फिल्म देखी जिसका नाम है कांतारा.
कांतारा एक ऐसी फिल्म है जो भारत की लोकल सभ्यता से बहुत ही गहरे तरीके से जुड़ी हुई है. इस फिल्म को देखकर आप एक तरह से चौंक जाएंगे कि भाई यह था क्या. कुछ ऐसे भी लोग जिनको फिल्म समझ में ही नही आई या फिर कुछ लोग जिनको ऐसा लगता है कि यह फिल्म एक भूत-प्रेत या फिर अंधविश्वास की कहानी है. पर दोस्तों कंतारा फिल्म में जो मैसेज दिया गया है वह हमारे समाज के लिए और खासकर हमारे अस्तित्व के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी है.
प्रकृति का महत्व
इस फिल्म को देखकर पहली चीज जो मेरे समझ में आई वह है प्रकृति का महत्व. फिल्म में तीन अलग-अलग साइड दिखाया गया है. पहला लालची जमींदार का ग्रुप है जो जंगल के जमीन को खरीद कर पैसा कमाना चाहते हैं, दूसरा साइड है सरकार और पुलिस का जो जंगल को अपने नाम करके उसको वाइल्डलाइफ बनाना चाहती है और तीसरा ग्रुप है वहाँ के आदिवासी समाज का जो इस जंगल से पेट भरते हैं. यह फिल्म इन तीनों के झगड़े की ही कहानी है. अब फिल्म देखकर मुझे समझ में आ रहा है कि सही में जंगल की जमीन किसी की नही है. जंगल यानी की प्रकृति और प्रकृति के साथ छेडछाड़ यानि की भगवान के बनाए सिस्टम को बदलने का प्रयास. जब फिल्म में ऐसा होता है तब नुकसान तीनों ही साइड का होता है. लेकिन फिल्म दिखाती है कि जंगल पर पहला अधिकार वहाँ रहने वाले आदिवासियों का है. इसलिए फिल्म का लीड कैरेक्टर शिवा यानी ऋषभ शेट्टी जब जमींदारों के हाथों मारा जाता है तो उसके अंदर पंजुली देव के प्रोटेक्टर गुलीगा देवा आ जाते है जो आदिवासियों को बचाते हैं.
माइथोलाॅजी का महत्व
दूसरा प्वाइंट है फिल्मों में माइथोलाॅजी को दिखाना. आजकल बाॅलीवुड में एक हिन्दू माइथोलाॅजी या फिर कोई भी माइथोलाॅजी को स्पेस नही मिलती है. हिन्दी फिल्म इंडस्ट्रीज अमेरिकन फिल्मों की नकल में लगा है लेकिन भारत का साउथ सिनेमा अभी भी अपने माइथोलाॅजी को फिल्मों में जगह दे रहा है. फिल्म में जो ऋषभ शेट्टी का कैरेक्टर है उसका नाम शिवा है. और अगर आप ध्यान से देखे तो शिवा का जो कैरेक्टर है वह सच में भगवान शंकर के जैसे दिखाया गया है. जैसे भगवान शंकर को डीस्टट्रायर कहा जाता है वैसे ही फिल्म के शुरू में शिवा जंगल के पेड़ को नष्ट करता है जंगल में बसने वाले जानवरों को मारता है और जब आदिवासियो के अस्तित्व पर खतरा आता है तो फिर वह जंगल और जंगल के लोगों को बचाता भी है जैसे भगवान शंकर करते हैं. वही फिल्म में जो मुरली का कैरेक्टर है वह भगवान विष्णु के जैसे जंगल वालों को बचाने का यानी पालने का प्रयास करता है. जैसे हमारे यहाँ कुछ कहानियों में भगवान शंकर और भगवान विष्णु को एक दूसरे के खिलाफ दिखाया जाता है वैसे ही इस फिल्म में भी कुछ देर तक मुरली और शिवा एक-दूसरे के खिलाफ रहते है लेकिन अंत में वह मिलकर जमींदार यानी evil के खिलाफ लड़ते हैं.
लोकल सभ्यता का महत्व
दूसरी तीसरा है लोकल सभ्यता को दिखाना. यह फिल्म कर्नाटक राज्य के मैंगलोर शहर के सभ्यता को दिखाता है.
जैसे हमारे उत्तर भारत में कुछ जगहों पर आपने सुना होगा डीह बाबा की कहानी जो अपनी बात कहने के लिए वहाँ खड़े पुजारी पर एक तरह से आ जाते है. वैसे ही कर्नाटक में पुंजुरी देव को पूजा जाता है. पंजुली देव के लिए वहाँ तक उत्सव या फिर एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसे कोला कहते है. इस कार्यक्रम में एक परफार्मेस होता है जो पंजुली देव के ड्रेस में नृत्य करता है. लेकिन जब वह मन से नृत्य करने लगता है, जैसे हमलोग नृत्य को आराधना करते है वैसे ही जब वह आराधना करते हुए डूब जाता है तब उसके अंदर पंजुली देव प्रकट होते है.
ऋषभ शेट्टी का विश्वास
प्वाइंट नम्बर चार ऋषभ शेट्टी जो फिल्म के लीड एक्टर है यानी हीरो है. दिलचस्प है कि उन्होंने इस फिल्म को लिखा भी है और डायरेक्ट भी किया है. हैरानी की बात यह है कि शुरू में इस फिल्म को कोई प्रोड्यूसर नही मिल रहा था. सब बोल रहे थे कि यह तो माइथोलाॅजी है फिल्म फ्लॉप हो जाएगी. चलेगी नही. ठीक इसी प्रकार का सीन फिल्म लगान के साथ हुई थी. शुरू में किसी ने साथ नही दिया पर बाद में सफल होने के बाद सब तारीफ करने लगे. ऋषभ शेट्टी की मानसिकता हमे यह बताती है कि जब अब कोई काम बड़े मन से करते है तो जरूर पूरा होता है. वह कहता है कि फिल्म बनाते वक्त उनमें एक उपरी शक्ती का साथ मिल रहा था.