जयंत चौधरी के भाजपा में जुड़ने से क्या होगा फायदा?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि जयंत चौधरी के भाजपा में जुड़ने से आखिर कैसे फायदा होगा! उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति से विपक्षी दलों को हैरत में डाल दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीति में बड़ा बदलाव होता दिख रहा है। विपक्षी गठबंधन का साथ छोड़कर जयंत चौधरी भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने को लगभग तैयार दिख रहे हैं। किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के बाद जिस प्रकार से जयंत चौधरी के सुर में बदलाव आया है, वह एक बड़े राजनीतिक बदलाव के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। जयंत चौधरी अपने दादा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं। किसान नेताओं के बीच उनकी पकड़ पिछले दिनों मजबूत बनी है। उन्होंने लगातार रैलियां और जनसंपर्क के जरिए राष्ट्रीय लोक दल को एक बार फिर जनता के बीच स्थापित करने की कोशिश की है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय लोक दल को साथ जोड़ने की कवायद तेज कर दी थी। भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में मिशन 80 के दावे के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है। पिछले दिनों लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि लोकसभा चुनाव 2024 में हम 370 सीटों पर जीतेंगे और एनडीए 400 सीटों को पार करेगी। पीएम नरेंद्र मोदी के दावे को हकीकत में बदलने की कवायद में पार्टी जुट गई है। पार्टी क्षेत्रीय क्षत्रपों को साधकर जोड़ रही है। खासकर उन दलों को साथ लाया जा रहा है, जो कभी एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड को जोड़ा गया है। वहीं, उत्तर प्रदेश में कभी एनडीए के साथ रही राष्ट्रीय लोक दल को जोड़ने की कोशिश की गई। 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। किसान आंदोलन के बाद उपजे किसान आक्रोश को कम करने के लिए भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी जयंत को साधने की कोशिश की थी, लेकिन वे उन्हें जोड़्ने में कामयाब नहीं हो पाए। लोकसभा चुनाव में अपने मिशन को पूरा करने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की जरूरत भाजपा को महसूस हो रही थी। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के बाद यह अब यह पूरा होता दिख रहा है।

राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख जयंत चौधरी की एनडीए में शामिल होने की संभावनाओं की खूब चर्चा हो रही है। आरएलडी जल्द ही एनडीए का हिस्सा बन सकती है। अगर यह संभव होता है तो इसे भाजपा की बड़ी रणनीतिक जीत माना जाएगा। आरएलडी अब तक विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. का हिस्सा रही है। कुछ दिन पहले ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जयंत के साथ गठबंधन की घोषणा की थी। इसके बाद भी वे भाजपा के साथ जुड़ते दिख रहे हैं। दरअसल, पश्चिमी यूपी जाट और मुस्लिमों की बहुलता वाला इलाका है। यहां लोकसभा की 27 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, सपा- बसपा महागठबंधन को 8 सीटों पर जीत मिली थी। पश्चिमी यूपी की चार सीटों पर सपा और चार पर बसपा उम्मीदवारों को जीत मिली।

हालांकि, रालोद को इस चुनाव में कोई सीट नहीं मिल सकी। जाट समाज ने भी रालोद का साथ नहीं दिया। 2014 के बाद 2019 में भी आरएलडी को निराशा ही हाथ आई थी। जाट समाज के दिग्गज नेता अजित सिंह और जयंत चौधरी भी सपा- बसपा गठबंधन के साथ रहने के बाद भी अपली सीट नहीं बचा पाए थे। एनडीए के साथ आने से आरएलडी की उम्मीदें बढ़ती दिख रही हैं। फायदा भाजपा को भी होना तय माना जा रहा है।

पश्चिमी यूपी की 27 लोकसभा सीटों का गणित भाजपा- आरएलडी गठबंधन के बाद बदलना तय माना जा रहा है। दरअसल, जयंत चौधरी की स्वीकार्यता हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज में है। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के बीच अपनी राजनीति शुरू की थी। इसमें धर्म कहीं नहीं था। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद धार्मिक आधार पर मतों का विभाजन हुआ। इसने पश्चिमी यूपी की राजनीति को बदलकर रख दिया। जाट समाज भाजपा के पाले में आया। हालांकि, 2020 के किसान आंदोलन के बाद एक बार फिर किसान एकजुट होने लगे हैं। यूपी चुनाव 2022 में सपा- आरएलडी गठबंधन का पश्चिमी यूपी में प्रभाव कुछ इसी प्रकार की स्थिति को दिखाता है। ऐसे में भाजपा के साथ आरएलडी के आने के बाद विपक्षी गठबंधन को बड़ी परेशानी झेलनी पड़ सकती है। आइए पश्चिमी यूपी के लोकसभा सीटों का गणित समझने का प्रयास करते हैं!

उत्तर प्रदेश की पहली लोकसभा सीट सहारनपुर की है। मुस्लिम बाहुल्य सीट पर करीब 6 लाख से अधिक मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा 3 लाख एससी, 1.5 लाख गुर्जर, 3.5 लाख सवर्ण वोटर हैं। इनके अलावा भी कई जातियों के वोटर यहां रहते हैं। राजनीति के धुरंधरों का समीकरण बिगड़ाने और बनाने में मुस्लिम वोटरों का किरदार अहम माना जाता है। इसी कारण लोकसभा चुनाव 2019 में सहारनपुर ने मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव जिताकर लोकसभा तक पहुंचाया। वर्तमान में इस सीट से बसपा के हाजी फजुर्लरहमान इस सीट से सांसद हैं। इस बार भाजपा- रालोद गठबंधन से सीट का गणित बदल सकता है।

2009 में बिजनौर लोकसभा सीट को काटकर बनाई गई नगीना लोकसभा सीट पर किसी एक दल का कब्जा नहीं रहा है। यूपी की आरक्षित 17 लोकसभा सीटों में से एक नगीना लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यहां सबसे ज्यादा आबादी मुस्लिमों की है। इस सीट पर 21 फीसदी एससी वोटर हैं। नगीना लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा की बात करें तो यहां मुस्लिम वोटरों की आबादी करीब 50 फीसदी से भी अधिक है। 2014 में यहां से भाजपा को जीत मिली थी। 2019 में बसपा के गिरीश चंद्रा जीते। 2009 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इस सीट से सपा के यशवीर सिंह जीते। 2014 के चुनाव में भाजपा के यशवंत सिंह ने ये सीट अपने कब्जे में की थी। अब 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां के लोग फिर कोई बदलाव कर सकते हैं।

रामपुरी चाकू के लिए मशहूर रामपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है। लेकिन, लोसकभा उपचुनाव में भाजपा ने कब्जा जमाया। इस लोकसभा सीट के दायरे में पांच विधानसभा सीटें स्वार, चमरउआ, बिलासपुर, रामपुर और तिलक आती हैं। पूरे यूपी में सबसे अधिक रामपुर में मुस्लिम जनसंख्या है। मपुर क्षेत्र में कुल 50.57 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है, जबकि 45.97 प्रतिशत से अधिक हिंदुओं की जनसंख्या है। इस सीट पर हिंदू समुदाय के लोग अल्पसंख्यक में आते हैं। हालांकि, लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने मोदी लहर में सपा को हराया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के आजम खान जीते। लेकिन, सजा के ऐलान के बाद सीट गंवा दी। लोकसभा उप चुनाव 2022 में भाजपा ने इस सीट पर कब्जा जमाया। लोकसभा चुनाव 2024 में सपा के लिए इस सीट पर चुनौती बढ़ेगी।

पश्चिमी यूपी में लोकसभा चुनाव 2019 में भी भाजपा का जादू चला। क्षेत्र में मोदी लहर असरदार दिखी। सपा- बसपा- रालोद गठबंधन के बाद भी इलाके में महागठबंधन को उस स्तर की सफलता नहीं मिली। 19 सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। मुजफ्फरनगर सीट पर हर किसी की नजर थी। यहां से आरएलडी मुखिया अजीत सिंह चुनावी मैदान में थे। उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बागपत से उनके पुत्र और आरएलडी उम्मीदवार जयंत चौधरी को भी हार मिली। इसके अलावा कैराना सीट पर भी सभी की नजरें थीं। दरअसल, कैराना उप चुनाव में तबस्सुम हसन ने भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह को हरा दिया था। लोसकभा चुनाव 2019 में तबस्सुम हसन को हार मिली। अगर भाजपा- रालोद गठबंधन होता है तो इन 19 सीटों पर भाजपा की स्थिति और मजबूत हो जाएगी।