नोटों पर तस्वीर मामले में कई प्रकार के सुझाव दिए गए हैं! भारत में नोटबंदी के 6 साल बाद एक बार फिर करेंसी की चर्चा शुरू हो गई है। तब 500 और 1000 के नोट चलन से बाहर हो गए थे और नया नोट 2000 रुपये का आया था। अब 24 घंटे से लोग अपने पर्स में रखे नोटों को करीब से देख रहे हैं। आगे के हिस्से में गांधी जी की मुस्कुराती तस्वीर दिखती है और पीछे के हिस्से में दिल्ली का लाल किला, रानी की बाव, सांची स्तूप, एलोरा की गुफाएं आदि दिखाई देती हैं। वैसे, पीछे की तस्वीर अलग-अलग मूल्य के नोटों पर अलग-अलग छापी जाती है। नोटों पर डिबेट की बड़ी वजह है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने मांग की है कि करेंसी नोटों पर भगवान गणेश और लक्ष्मी के चित्र छापे जाएं तो देश तरक्की करेगा। उनका मानना है कि करेंसी नोटों पर देवताओं के चित्र प्रकाशित करने से लोगों को दैवीय आशीर्वाद मिलेगा, जिससे आर्थिक लाभ होगा। फिर क्या था कांग्रेस के मनीष तिवारी ने आंबेडकर की तस्वीर लगाने की मांग उछाली, उधर महाराष्ट्र के बीजेपी नेता नितेश राणे ने फोटोशॉप की गई तस्वीर शेयर कर दी जिसमें 200 रुपये के नोट पर शिवाजी दिखाई देते हैं।
आजकल हमारी जेब में मौजूद नोटों में महात्मा गांधी नजर आते हैं। हालांकि 75 साल से ऐसा नहीं है। 1947 में देश को आजादी मिली और 22 साल के बाद 1969 में राष्ट्रपिता की जन्म शताब्दी के मौके पर रिजर्व बैंक ने 100 रुपये के नोट पर पहली बार बापू की तस्वीर छापी। बताते हैं कि आजादी मिलने के फौरन बाद ही इस पर चर्चा शुरू हो गई थी लेकिन बापू की तस्वीर पर आम सहमति बनने में काफी टाइम लग गया। तब तक ब्रिटिश किंग की तस्वीर की जगह सारनाथ की तस्वीर प्रकाशित की जा रही थी।
1987 में 500 रुपये के नोट पर मुस्कुराते हुए गांधी की तस्वीर छापी गई और फिर यह चलन में आ गया। कम लोगों को पता होगा कि आजादी के बाद नोट पर काफी प्रयोग किए गए। 1949 में 1 रुपये के नोट के डिजाइन पर अशोक स्तंभ लाया गया। 1953 में नए नोटों पर हिंदी प्रमुखता से दिखी। इस पर भी डिबेट हुआ कि रुपया लिखें या रुपये। 1954 में तो 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट चलन में आ गए। इससे पहले 1938 में पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक ने सबसे ज्यादा मूल्य के 10,000 रुपये के नोट प्रिंट किए थे। 1996, 2005 और फिर 2016 में महात्मा गांधी सीरीज के नए नोट जारी किए गए।
RBI की वेबसाइट पर FAQ सेक्शन में 10वां सवाल यही है कि नए बैंक नोट पर किसकी तस्वीर छापी जाएगी, इसका फैसला कौन करता है। जवाब में बताया गया है कि आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन 25 के तगत बैंक नोट के डिजाइन, स्वरूप और सामग्री को लेकर फैसला सेंट्रल बोर्ड की सिफारिशों पर केंद्र सरकार लेती है। मतलब साफ है कि दोनों- सरकार और आरबीआई की संयुक्त टीम यह तय करती है।
आजादी के बाद जब महात्मा गांधी की तस्वीर छापने में दो दशक लग गए तो धर्मनिरपेक्ष स्वरूप वाले भारत देश में भगवान की तस्वीर लगाने का फैसला लेना आसान नहीं है।1987 में 500 रुपये के नोट पर मुस्कुराते हुए गांधी की तस्वीर छापी गई और फिर यह चलन में आ गया। कम लोगों को पता होगा कि आजादी के बाद नोट पर काफी प्रयोग किए गए। 1949 में 1 रुपये के नोट के डिजाइन पर अशोक स्तंभ लाया गया। 1953 में नए नोटों पर हिंदी प्रमुखता से दिखी। इस पर भी डिबेट हुआ कि रुपया लिखें या रुपये। 1954 में तो 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट चलन में आ गए। इससे पहले 1938 में पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक ने सबसे ज्यादा मूल्य के 10,000 रुपये के नोट प्रिंट किए थे। 1996, 2005 और फिर 2016 में महात्मा गांधी सीरीज के नए नोट जारी किए गए। अक्सर बापू की जगह आंबेडकर की तस्वीर लगाने की मांग होती रहती है।
हिंदू महासभा की ओर से सुभाष चंद्र बोस और कई लोगों की तरफ से रवींद्रनाथ टैगोर, एपीजे अब्दुल कलाम की तस्वीर लगाने की मांग उठती रही है।उन्होंने कहा था कि रिजर्व बैंक के पैनल ने नोटों पर किसी दूसरे नेशनल लीडर की तस्वीर छापने पर साफ कहा है कि महात्मा गांधी से बेहतर कोई दूसरी हस्ती देश के चरित्र को प्रदर्शित नहीं कर सकती है। इस संबंध में 2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली का लोकसभा में दिया गया बयान महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्होंने कहा था कि रिजर्व बैंक के पैनल ने नोटों पर किसी दूसरे नेशनल लीडर की तस्वीर छापने पर साफ कहा है कि महात्मा गांधी से बेहतर कोई दूसरी हस्ती देश के चरित्र को प्रदर्शित नहीं कर सकती है।