एक ऐसा समय था जब 2005 में हत्याओं की संख्या से यूपी का इलाहाबाद पूरी तरह से घबरा गया था! हत्या अपने आप में सबसे संगीन जुर्म माना जाता है, लेकिन हत्या अगर राजनीतिक हो तो मामला और भी गंभीर हो जाता है। समय-समय पर हुई राजनेताओं की हत्याओं ने राजनीतिक तूल भी पकड़ा है। अब चाहे चर्चित बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का मामला हो या फिर बसपा नेता और विधायक राजू पाल हत्याकांड। दोनों ही नेताओं की हत्याओं में आतंक का पर्याय बने मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद पर आरोप लगा था। इसमें दोनों ही आरोपी दोषी भी पाए गए थे। वहीं अब इन दोनों माफियाओं मुख्तार और अतीक की हत्या या मौत का मामला गंभीर हो गया है। सिर्फ इतना ही नहीं, कभी राजनीतिक दलों को फायदा पहुंचाने वाले इन माफियाओं की मौत पर राजनीतिक दल अपनी-अपनी रोटियां सेंक रहे हैं।हत्याओं की बात करे तो साल 2005 में एक के बाद एक हुई हत्याओं से इलाहाबाद सहम गया था। जानकारों की माने तो इलाहाबाद में एक साल के भीतर एक-दो नहीं बल्कि आठ राजनीतिक हत्याएं हुई थी। जी हां, वही इलाहाबाद जिसका नाम बदलकर अब प्रयागराज कर दिया गया है। इनमें से पांच सिर्फ बहुजन समाज पार्टी के नेता मारे गए थे। साल 2005 के जनवरी महीने में बसपा नेता राजू पाल की हत्या के बाद नियमित अंतराल पर राजनीतिक दल से जुड़े नेता मारे जाते रहे थे। लगभग हर मामले में पुलिस ने इन हत्याओं को आपसी रंजिश का मामला बताया था। हालांकि बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के बाद ये उम्मीद लगाई जा रही थी कि अब हत्याओं का सिलसिला थम जाएगा। पुलिस ने भी यह दावा किया कि अब ऐसा कुछ नहीं हो पाएगा, लेकिन कुछ महीनों बाद झूसी में बसपा नेता गणेश यादव के करीबी की हत्या कर दी गई थी। ये हत्या भी सनसनीखेज रही थी।
बसपा नेता गणेश यादव के करीबी की हत्या में सपा विधायक के करीबियों पर आरोप लगे थे। इस हत्या में वे नामजद भी हुए थे। इसी क्रम में धूमनगंज क्षेत्र में बसपा नेता निरंजन पासी की दिनदहाड़े गोली मार दी गई थी। बसपा विधायक राजू पाल का बेहद करीबी निरंजन पासी की हत्या के बाद हालात बिगड़ गए थे। हत्या से नाराज लोगों ने पुलिस पर पथराव किया था और सिपाहियों से हाथापाई भी की गई थी। इसी साल मुंडेरा मंडी में बसपा नेता रामविशाल पाल की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। रामविशाल बसपा के इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के अध्यक्ष थे और राजू पाल के मीडिया प्रभारी भी थे। इसी दिन थरवई में सुरेश यादव को मौत के घाट उतार दिया गया था। सुरेश यादव भी बसपाई थे। उन्हें बसपा नेता अशोक यादव का बेहद करीबी माना जाता था।
इसी तरह 2005 में जनवरी से नवंबर तक पांच बसपाइयों की हत्या हो गई थी। राजू पाल को छोड़कर सभी मामलों में पुलिस का कहना था कि हत्याएं राजनीतिक नहीं है। बल्कि रंजिशन हत्या की गई हैं। राजनीति से इन हत्याओं का कोई लेना-देना नहीं है। यह चौंकाने वाली स्थिति थी। अगर यह हत्याएं राजनीतिक हैं तो स्थिति भयावह है, क्योंकि जब बैलट की जगह बुलेट से फैसला होगा तो लोकतंत्र को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
बताते चले कि हाल ही में बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड में लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने सभी सात आरोपियों को दोषी करार दिया है। अदालत ने 6 आरोपियों को उम्रकैद और एक को चार साल की सजा सुनाई है। इस हत्याकांड में अतीक और उसका भाई अशरफ भी नामजद थे। कोर्ट ने जिंदा सभी 7 आरोपियों को दोषी करार दिया है। इस मामले में कुल 9 आरोपी नामजद थे। वहीं बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की भी 2005 में हत्या कर दी गई थी। दावों के अनुसार बीजेपी विधायक पर 400 से 500 राउंड फायरिंग हुई थी। गोलियों को तड़तड़ाहट से लखनऊ से लेकर दिल्ली तक थर्रा गया था। इस हत्या का आरोप मुख्तार अंसारी पर लगा था।
वहीं ताजा मामला माफिया से माननीय बने मुख्तार अंसारी से जुड़ा है। यूपी की मऊ सदर सीट से 5 बार के विधायक मुख्तार अंसारी की मौत का मामला अब गहराता जा रहा है। मुख्तार की मौत को लेकर परिजनों के आरोप पर सपा समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। वहीं डॉक्टर दिल का दौरा पड़ने से मुख्तार की मौत होने का दावा कर रहे हैं। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने जल्द से जल्द इस मामले में सीबीआई जांच कराने की बात कही है, क्योंकि मुख्तार अंसारी ने मौत से 8-10 दिन पहले ही कोर्ट को पत्र लिखकर हत्या किए जाने की आशंका जताई थी। मुख्तार ने धीमा जहर दिए जाने का आरोप लगाया था। उधर, कई महीने पहले पुलिस हिरासत में माफिया अतीक अहमद की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पूर्व सांसद अतीक अहमद की मौत पर भी खूब राजनीति हुई थी।