1977 में भी एक ऐसा ही गठबंधन बनाया गया था! 1977 में कई दलों के मिलन से जनता पार्टी अस्तित्व में आई। तब जो चुनाव हुए, उसमें वह कांग्रेस पार्टी को पराजित करने में सफल हुई। लेकिन सरकार बनने के पहले दिन से ही तकरार का दौर शुरू हो गया। जनता पार्टी ने तब प्रधानमंत्री पद के लिए किसी की उम्मीदवारी की घोषणा नहीं की थी, लेकिन जेपी जयप्रकाश नारायण के मार्ग-निर्देशन में जो सियासी माहौल बना, उससे आंदोलन करने में बड़ी भूमिका निभाई। तब बेशक मोरारजी भाई सबसे वरिष्ठ राजनेता थे, जो पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के मंत्री परिषद में भी सबसे वरिष्ठ माने जाते थे। चुनावों की घोषणा के तुरंत बाद जगजीवन राम के नेतृत्व में कांग्रेस जनों के एक बड़े ग्रुप की ओर से पार्टी से त्यागपत्र और जनता पार्टी के समर्थन की घोषणा से माहौल बनाने में मदद मिली। हिंदी पट्टी में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाला लोकदल सबसे बड़ी पार्टी थी और 1977 वाली लोकसभा में 100 से अधिक सांसद उनके दल से संबंधित थे। कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिरकार मोरारजी भाई के नाम पर सहमति बनी, लेकिन यहां भी एक पेच पहले से फंसा हुआ था। दरअसल, मोरारजी देसाई के प्रति बाबू जगजीवन राम की नाराजगी जगजाहिर थी।
जब कांग्रेस ओ के 7 मंत्री नियुक्त हुए तो मंत्री परिषद के गठन को लेकर भी मतभेद उभरने लगे। यह मतभेद इसके बावजूद उभरे कि लोकदल और जनसंघ के सदस्य अनुपात के हिसाब से संख्या क्रम में अधिक थे। इसी प्रकार नए राज्यपालों की नियुक्ति को लेकर भी घटक दलों में भयंकर असंतोष था। मोरारजी भाई के घटक दल के सदस्य निरंतर नियुक्त किया जा रहे थे। तब कई राज्यों में विधानसभा की समयसीमा समाप्त होने से पूर्व ही विधानसभाओं को भंग कर सभी राज्यों में जनता पार्टी बहुमत पाने में कामयाब तो रही, लेकिन मुख्यमंत्री के चयन को लेकर मतभेद बिलकुल साफ दिखने लगे। लोकदल और जनसंघ ने मिलकर सभी राज्यों के अपने-अपने खेमे के मुख्यमंत्री निर्वाचित कर लिए। सत्ता प्रतिष्ठानों से दूर रहे लोग विपक्ष की भूमिका निभाने लगे और तभी असंतुष्टों के स्वर विपक्षी कांग्रेस के नेताओं से भी मेल खाने लगे।
1967 के दशक से ही समाजवादी और साम्यवादी सांसद मोरारजी भाई के पुत्र क्रांति देसाई के विरुद्ध सक्रिय रहे और उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद यह क्रम और जोर पकड़ने लगा। मामला जब अधिक तूल पकड़ने लगा तो गृहमंत्री के नाते चौधरी चरण सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को इस विषय में लिखा पत्र गंभीर रूप धारण करने लगा। बेशक, कांग्रेस पार्टी इस समूचे घटनाक्रम से खुश थी और सक्रिय भी। एक प्रसिद्ध उद्योगपति के आवास पर राजनारायण और संजय गांधी की मुलाकात राजधानी के सभी समाचार पत्रों की सुर्खियां बटोर रही थी। चौधरी चरण सिंह द्वारा इंदिरा गांधी के विरुद्ध कार्यवाही तेज करने को लेकर प्रधानमंत्री को लिखे पत्र ने एक गंभीर संवैधानिक संकट को जन्म दिया और शिमला में युवा जनता शिविर में रिज मैदान पर की गई जनसभा और शांता कुमार के लिए की गई टिप्पणी उनके विरुद्ध मंत्री परिषद से हटाने की प्रक्रिया को और तेज कर गई। प्रधानमंत्री ने 19 जून, 1978 को दोनों मंत्रियों से सामूहिक उत्तरदायित्व न निभाने के आरोपों में इस्तीफा मांग लिया। ऐसा लगता है कि चौधरी चरण सिंह और राजनारायण ऐसी ही किसी अवसर की तलाश में थे। अपने-अपने त्यागपत्रों में उन्होंने मोरारजी भाई की सरकार और परिवार पर गंभीर आरोपों की झड़ी लगा दी।
चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के अंदर रहते हुए ग्रामीण एवं कृषि संबंधी विचारों को लेकर काफी लोकप्रिय हो चुके थे। 1959 में नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने पंडित नेहरू के सामूहिक खेती प्रस्ताव का विरोध करके काफी लोकप्रियता हासिल की। कांग्रेस से अलग होकर भी किसान और कृषि कार्यों पर निरंतर उनके लेख और वक्तव्य उन्हें प्रसिद्ध बनाए हुए थे। लेकिन एक झटके में ग्रामीण भारत और किसानों को उनका मंत्री परिषद से अलग होना अखर गया। 23 दिसंबर चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन होता है और ‘किसान कामगार सम्मेलन’ ने घोषणा कर दी कि 23 दिसंबर, 1978 को बोट क्लब पर एक भव्य रैली का आयोजन किया जाएगा। आज का कर्तव्य पथ और इंडिया गेट के आगे का हिस्सा उसी का अंग है। हरियाणा में चौधरी देवीलाल, उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव, बिहार में कर्पूरी ठाकुर चौ. साहब समर्थक मुख्यमंत्री थे और अन्य कई राज्यों में भी उनके समर्थक मंत्री परिषद में शामिल थे। प्रेस वार्ता, जनसभा, किसान गोष्ठी के जरिए ऐसा संदेश जाने लगा कि ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व समाप्त हो गया है और सरकार बड़े औद्योगिक घरानों की कठपुतली बनकर रह गई है।
किसान दिवस की तैयारियां जनता पार्टी की सरकार के लिए चुनौती बन चुकी थीं। समूचे देश के किसान समर्थक संगठन 23 दिसंबर को दिल्ली कूच करने लगे। राजनीतिक पंडितों का आकलन है कि राजधानी के इतिहास की वह सबसे बड़ी रैली थी। मंच पर तीनों मुख्यमंत्रियों के अलावा बीजू पटनायक, मधु लिमये, चौ. कुम्भाराम आर्य, प्रकाश सिंह बादल समेत विभिन्न दलों के नेता उपस्थित थे। लग रहा था कि सरकार मोरारजी भाई की है और जनता चौ. चरण सिंह के साथ है। आमतौर पर भारतीय परंपरा है कि वैचारिक रूप से अलग-अलग मत होते हुए भी शुभकामनाएं प्रेषित होती हैं। इसी परंपरा की अपेक्षा में चरण सिंह और उनके समर्थकों के बीच समूचे दिन मोरारजी भाई के शुभकामना संदेश का इंतजार होता रहा। वहीं दूसरे मौके की तलाश में प्रयासरत इंदिरा गांधी ने सुबह ही अपने दूत भीष्म नारायण सिंह को एक गुलदस्ते के साथ भेज कर शुभकामनाएं भी प्रेषित कीं और राजनीतिक संकेत भी। चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन राजनीतिक संदेशों से भर गया और भविष्य की कई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दे गया।